धर्मग्रंथों के अनुसार माहेश्वरी समाज के पूर्वज पूर्वकाल में क्षत्रिय वंश के थे। शिकार के दौरान वह ऋषियों के शाप से ग्रसित हुए। भगवान महेश और माता पार्वती की कृपा से 72 क्षत्रिय उमराव को पुनर्जीवन मिला और माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति हुई। जेष्ठ शुक्ल नवमी के दिन भगवान शंकर ने अपनी कृपा से उन्हें शाप से मुक्त कर न केवल पूर्वजों की रक्षा की, बल्कि इस समाज को अपना नाम भी दिया।
भगवान महेश और माता पार्वती को माहेश्वरी समाज का संस्थापक माना जाता है,भगवान की कृपा से ही यह समुदाय को ‘माहेश्वरी’ नाम से पहचाना जाता है ।
माहेश्वरी समाज के आराध्य भगवान शिव पृथ्वी,कमल पुष्प पर बेलपत्ती, त्रिपुंड्र, त्रिशूल, डमरू के साथ लिंग रूप में शोभायमान होते हैं। जिसमे त्याग, सेवा, सदाचार लिखा होता है।
भगवान शिव के इस बोध चिह्न के प्रत्येक प्रतीक का अपना महत्त्व है। इसको हम विस्तार से ऐसे भी जानते है, पृथ्वी – पृथ्वी गोल परिधि में है, परंतु भगवान महेश ऊपर हैं अर्थात पृथ्वी की परिधि भी जिन्हें नहीं बांध सकती। वह एक लिंग भगवान महेश संपूर्ण ब्रह्मांड में सबसे ऊपर हैं।