राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने 18 साल पहले ही 2001 में भी पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी को आदिवासी नहीं मानकर उनके जाति प्रमाण पत्र को फर्जी करार दिया था। आयोग ने अपने फैसले में जोगी को सतनामी बताकर उनके खिलाफ आपराधिक प्रकरण दर्ज करने के भी आदेश दिए थे, लेकिन जोगी इसके खिलाफ हाईकोर्ट से स्टे आर्डर ले आए थे।
गौरतलब है कि पूर्व मुख्यमंत्री जोगी बतौर सांसद रायगढ़ से पहला चुनाव लड़ा था। साल 1998 में लोकसभा चुनाव में अजीत जोगी कांग्रेस की टिकट से सांसद बने तो चुनाव के दौरान ही उनके प्रतिद्वंदी रहे भाजपा के नंद कुमार साय की ओर से उनकी जाति को लेकर आपत्ति की गई थी। साय के निर्वाचन अभिकर्ता रहे सुगनचंद फरमानिया ने बताया कि पार्टी ने सभी रिकॉर्ड एकत्र कर रिटर्निंग अफसर के पास शिकायत की थी, लेकिन अंतिम समय बीत जाने के कारण उस पर कुछ नहीं हो सका। इसके बाद भाजपा नेता गिरधर गुप्ता ने जबलपुर हाईकोर्ट में याचिका भी लगाई लेकिन हाईकोर्ट में लिस्टिंग के बाद नंबर आने से पहले ही केन्द्र सरकार गिर गई। ऐसे में कोर्ट ने पार्टी की इस याचिका को औचित्यहीन बताकर खारिज कर दिया था।
13 महीने की दिल्ली सरकार के इस कार्यकाल में सासंद बने जोगी इसके बाद रायगढ़ लोकसभा सीट छोड़कर शहडोल चले गए थे। वहीं जोगी के सीएम बनने के बाद राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग में भी संत कुमार नेताम ने शिकायत की थी। इस पर आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष दिलीप सिंह भूरिया ने 16 अक्टूबर 2001 को आदेश पारित कर जोगी को सतनामी बताया था। इसके बाद आदिवासी प्रमाण पत्र को खारिज कर उनके खिलाफ आपराधिक प्रकरण दर्ज करने के आदेश दिए थे।
अफसरों ने रोकी थी जांच
आयोग ने उस वक्त 26 बिंदुओं में दिए अपने फैसले में कई चौंकाने वाले खुलासे किए थे। आयोग ने साफ कहा था कि नोटिस देने के बाद भी राज्य सरकार के अफसरों ने जांच में पूरा सहयोग नहीं किया, लेकिन इसके बाद भी राजस्व के दस्तावेजों को एकत्र करने में आयोग कामयाब रहा। उस वक्त सीएम के कानूनी सलाहकार रहे आरएन शर्मा ने जोगी की ओर से जवाब पेश किया था। आयोग ने 1929 के मिशल, राजस्व रिकॉर्ड एवं आठ अप्रैल 1977 के अतिरिक्त तहसीलदार की जांच रिपोर्ट के आधार पर जोगी को कंवर जाति का नहीं होना बताकर सतनामी बताया था।
ऐसे खारिज हुए थे जोगी के दावे
मप्र हाई कोर्ट में प्रकरण क्रमांक 1417-1988 में भी एक याचिकाकर्ता ने जोगी की जाति वाला मामला उठाया था, लेकिन तकनीकी कारणों से दूसरे पक्ष को नोटिस दिए बिना ही कोर्ट से यह खारिज हो गया था। इसी तरह प्रकरण क्रमांक 1039-2001 में भी दूसरे आवेदक ने जोगी की जाति को चैलेंज करने के बाद आश्चर्यजनक रूप से सुनवाई के दौरान ही याचिका वापस ले ली थी। जोगी ने इन दोनों को ही आधार बताकर अपना बचाव प्रस्तुत किया था, लेकिन आयोग ने दोनों प्रकरणों में जोगी को क्लीन चिट नहीं मिलने की बात कहकर सवाल उठाए थे।