छत्तीसगढ़ में कुपोषण के खिलाफ जंग में काफी हद तक सफलता मिली है। राज्य में कुपोषण की दर धीर-धीरे घट रही है। बीते 12-13 वर्षों में कुपोषण की दर में करीब 10 फीसद की कमी आई है। इसकी वजह से राज्य कुपोषित राज्यों की सूची में दूसरे से सातवें नंबर पर आ गया है।
छत्तीसगढ़ में वर्ष 2006 में यहां कुपोषण की दर 47 फीसद थी। 2018 में जारी रिपोर्ट के अनुसार अब यहां कुपोषण की दर 37.7 फीसद रह गई है। यह राष्ट्रीय स्तर के आंकडों से अधिक है। हालांकि 2017 के 38 फीसद की तुलना में यह महज 0.3 फीसद ही कम है। यही वजह है कि छत्तीसगढ़ देश के सर्वाधिक कुपोषित राज्यों की सूची में सातवें स्थान पर बना हुआ है। इस सूची में झारखंड पहले नंबर पर है। वहां कुपोषण की दर 47 फीसद है। बिहार 43, मध्यप्रदेश 42, उत्तर प्रदेश 39.5 और गुजरात में यह दर 39.3 है।
नक्सल हिंसा बनी बड़ी बाधा
महिला एवं बाल विकास विभाग के अफसरों के अनुसार राज्य के आदिवासी क्षेत्रों की तुलना में मैदानी क्षेत्रों की स्थिति बेहतर है। आदिवासी क्षेत्रों में कुपोषण की दर अधिक होने की सबसे बड़ी वजह नक्सल खतरा है। नक्सली आतंक की वजह से योजनाओं का लाभ लोगों तक नहीं पहुंच पाता है। हालांकि राज्य निर्माण के बाद से कुपोषण की स्थिति में लगातार बदलाव आ रहा है। बीते कुछ वर्षों में नक्सलवाद में कमी आने से प्रशासन की पहुंच बढ़ी है। इससे अब वहां भी कुपोषण की दर में कमी आने की उम्मीद बढ़ी है।
विभिन्न राज्यों में कुपोषण की स्थिति
झारखंड 47.8 45.3
बिहार 43.9 48.3
मध्यप्रदेश 42.8 42.0
उत्तर प्रदेश 39.5 46.2
गुजरात 39.3 38.5
दादर-नगर हवेली 38.8 41.7
छत्तीसगढ़ 37.7 37.6
राजस्थान 36.7 39.1
महाराष्ट्र 36.0 34.4
कर्नाटक 35.2 36.2