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केंद्रीय खनिज मंत्रालय ने लगाई रोक:डीएमएफ की रकम अब राज्य नहीं खर्च कर सकेगा, कलेक्टरों को दिया पावर; कई राज्य कर रहे थे दुरुपयोग

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राज्य सरकारें अब डीएमएफ (जिला खनिज फंड) की राशि अपने यानी मंत्रालय के आदेश से किसी भी योजना में खर्च नहीं कर सकेंगी। खर्च का अधिकार कलेक्टरों को ही होगा। इसे से लेकर पिछले कुछ महीनों से राज्यों के साथ चल रही खींचतान के बीच केंद्रीय खान मंत्रालय ने यह आदेश जारी कर दिया है।

केंद्र ने कहा है कि डीएमएफ की रकम के उपयोग के लिए जो प्रावधान तय किये गए हैं, उससे हटकर किसी भी मद या राज्य सरकार की किसी भी योजना में फंड का उपयोग नहीं किया जा सकेगा। खर्च का अधिकार कलेक्टरों की जिला स्तरीय कमेटी को ही होगा। इसमें सांसद, विधायक सदस्य होते हैं।

केंद्र सरकार ने 2015 में प्रधानमंत्री खदान क्षेत्र कल्याण योजना के कानूनी प्रावधानों के तहत देशभर के राज्यों में जिला खनिज न्यास (डीएमएफ) का कानून बनाया था। इसके तहत प्रदेश से निकलने वाले गौण खनिज की रॉयल्टी के अनुपात में एक निश्चित रकम डीएमएफ में जमा होती है। इसकी रकम संबंधित खदान क्षेत्र के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रभावितों पर खर्च की जाती है।

दूसरी जगह हो रहा था खर्च केंद्र ने ये लिखा आदेश में

केंद्रीय खनिज मंत्रालय की संयुक्त सचिव डॉ. डी.वीना कुमारी ने 12 जुलाई को खनिज एक्ट डी 1957 की धारा-9 बी के हवाले से कहा है कि कुछ राज्यों में डीएमएफ की रकम का इस धारा में किये गए प्रावधान से हटकर दूसरे कार्यों अथवा योजनाओं में खर्च किया जा रहा है। केंद्र के संज्ञान में आया है कि कुछ राज्यों में डीएमएफ के फंड को राजकोष या राज्य स्तरीय फण्ड जैसे “मुख्यमंत्री राहत कोष” में सीधे जमा किया जा रहा है। ऐसा करना केंद्रीय के कानून के विरुद्ध है।

एमपी, गुजरात और झारखंड के कारण नया आदेश जारी

आधिकारिक सूत्रों के अनुसार यह आदेश पड़ोसी राज्यों मध्यप्रदेश, झारखंड और गुजरात सरकारों द्वारा हाल ही बदली गई व्यवस्था के कारण जारी करना पड़ा है। इन राज्यों ने जिलों को मिल रहे डीएमएफ फंड में से 5 करोड़ से अधिक की राशि की स्वीकृति के अधिकार मंत्रालय या राज्य स्तरीय मानिटरिंग कमेटी को दे दिए थे। एमपी में तो करीब इस फंड में से करीब 500 करोड़ का हिसाब-किताब नहीं मिल रहा है। यह राशि जिलों के बजाए सीधे वित्त विभाग ने अपने खाते में ले रखे थे।

छत्तीसगढ़ में विवाद दूसरा

इधर डीएमएफ को लेकर छत्तीसगढ़ का केंद्र के साथ दूसरे ही विषय पर विवाद चल रहा है। साल 2015 में बने डीएमएफ कानून के तहत पिछली सरकार ने जिला कलेक्टरों की अध्यक्षता में कमेटियों का गठन किया था। साल-18 में कांग्रेस सरकार आने के बाद इस व्यवस्था को बदल दिया गया है। इसके मुताबिक अब जिला कमेटियों की अध्यक्षता जिला प्रभारी मंत्री को दी गई।

इस पर प्रदेश के सांसदों ने केंद्र से शिकायत कर रखी है। इसे लेकर भी राज्य और केंद्र के बीच लगातार चिट्ठी-पत्री चल रही है। छत्तीसगढ़ में हर साल औसतन 1 हजार करोड़ रुपए इस फंड के जरिए सीधे जिलों को दिए जाते हैं।

छत्तीसगढ़ में साल -15 से राज्य सरकार एक प्रतिशत राशि राज्य स्तरीय मानिटरिंग कमेटी के फंड में रखती रही है। इसका उपयोग इस फंड के संचालन और उसकी जिलेवार निगरानी पर किया जता रहा है। अब इस आदेश के बाद इस एक फीसदी हिस्सेदारी के नए सिरे से इंतजाम के लिए नए सिरे से व्यवस्था करनी होगी।