पूर्व वित्तमंत्री अरुण जेटली और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाता बेहद आत्मीय रहा. मोदी 2.0 का स्वास्थ्य कारणों से आधिकारिक रूप से हिस्सा न बन सके जेटली लगातार सरकार का पक्ष अपनी राय के साथ रखते रहे. लोगों को साथ लाने में माहिर रहे जेटली को बहुत से लोग मोदी का असली ‘चाणक्य’ मानते हैं.
90 के दशक से ही मोदी और जेटली करीब रहे. जब संघ में प्रचारक रहे मोदी को दिल्ली बुलाकर बीजेपी का महासचिव बनाया गया, तो वह अरुण जेटली के 9, अशोका रोड स्थित आधिकारिक बंगले में रुके.
जेटली को गुजरात में केशुभाई पटेल को हटाकर नरेंद्र मोदी को मुख्यमंत्री बनाने की प्रक्रिया का हिस्सा माना जाता है. मोदी के लिए जेटली 2002 में तब बेहद अहम हो गए, जब गुजरात दंगों की वजह से उनकी कुर्सी खतरे में थी. 2002 दंगों के बाद, जेटली ने मोदी का पार्टी में हर स्तर पर बचाव किया. जेटली ने कानूनी रूप से भी मोदी की मदद में कोई कसर नहीं छोड़ी.
अरुण जेटली के टैलेंट को मोदी ने पीएम बन भुनाया
2014 में मोदी को केंद्र की राजनीति में प्रोजेक्ट किए जाने से पहले वो जेटली ही थे जो मोदी के नाम पर राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी और राजनाथ सिंह को साथ ले आए थे. अरुण जेटली की प्रतिभा का नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद बखूबी इस्तेमाल किया.
मोदी के लिए जेटली ‘गो-टू मैन’ जैसे थे. पहले कार्यकाल के दौरान सरकार की उपलब्धियों का बखान करना हो या विवादित नीतियों का बचाव, मोदी ने जेटली पर ही भरोसा दिलाया. जब मोदी सरकार ने तीन तलाक जैसे महत्वपूर्ण विषय पर संसद में अपना पक्ष रखना चाहा तो उन्हें जेटली ही नजर आए.
अरुण जेटली का निधन निश्चित तौर पर बीजेपी के लिए एक बड़ा झटका है, मगर उससे बड़ा झटका मोदी के लिए है. उनका एक दोस्त/सलाहकार/संकटमोचक चला गया है.