मौसम विभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ रंजीत सिंह का मानना है कि पिछले कुछ दिनों में मॉनसून की सक्रियता ने देश में बारिश की कमी के स्तर को कम किया है. पांच अगस्त तक इसकी काफी हद तक भरपाई होने की उम्मीद है. मॉनसून की अनियमित गति पर डॉ सिंह ने कहा कि इस सप्ताह के शुरू में दक्षिण-पश्चिम मॉनसून की बारिश में कमी का देशव्यापी स्तर 19 प्रतिशत था, जो शनिवार को घटकर 14 प्रतिशत रह गया.
उन्होंने कहा कि जून में मॉनसून सक्रिय होने के बाद बारिश की कमी का स्तर 33 प्रतिशत था. यह कमी लगातार घट रही है. यह मॉनसून की शुरुआती सक्रियता में कमी के कारण हुआ है. यह सही है कि पिछले सालों की तुलना में मॉनसून के सक्रिय होने की गति इस साल थोड़ी धीमी रही. इसके कारण बारिश में कमी दर्ज की गयी है, लेकिन पिछले एक सप्ताह से लेकर अगले एक सप्ताह तक मॉनसून की सक्रियता, बारिश की कमी को पूरा कर देगी.
डॉ रंजीत सिंह ने कहा कि मौसम संबंधी गतिविधियों के लिहाज से देखें, तो यह बहुत असामान्य नहीं है. मौसम विज्ञान में इसे जलवायु के उतार-चढ़ाव के रूप में देखा जाता है. इसके अंतर्गत भारत में पिछले एक दशक से बारिश की पूर्ति की नकारात्मकता का दौर चल रहा है, जिसकी वजह से मॉनसून के वितरण में असमानता की प्रवृत्ति के कारण एक ही इलाके में कहीं ज्यादा बारिश होती है, कहीं बिल्कुल भी नहीं.
उन्होंने कहा कि स्थान विशेष पर हवा के कम दबाव का पर्याप्त क्षेत्र नहीं बन पाने के कारण बादल तो घिर जाते हैं, लेकिन बारिश नहीं होती. बारिश नहीं होने से तापमान में जरूरी गिरावट नहीं आ पाने से उमस बढ़ती है. यह स्थिति इस साल उत्तरी क्षेत्र में कुछ ज्यादा देखने को मिली. हालांकि, इससे अब राहत मिल जायेगी.
साल दर साल मॉनसून के बढ़ते असमान वितरण के बारे में डॉ सिंह ने कहा कि विश्व मौसम संगठन ने हाल ही में मौसम की अतिवादी गतिविधियों (एक्स्ट्रीम इवेंट) का वैश्विक अध्ययन किया था. दुनिया भर में भीषण गर्मी, भयंकर सर्दी और अतिवृष्टि जैसी मौसम की अतिवादी गतिविधियों के पिछले 50 सालों के आंकड़ों के आधार पर यह कहा जा सकता है वैश्विक स्तर पर एक्स्ट्रीम इवेंट की संख्या बढ़ रही है. इसकी एक संभावित वजह जलवायु परिवर्तन को माना जा सकता है.
उन्होंने कहा कि इसमें गर्मी, सर्दी और बरसात के मौसम का लंबा चलना और मॉनसून का असमान वितरण भी शामिल है. भारत में भी पिछले दो सालों में गर्मी और सर्दी लंबे समय तक चलने के कारण पिछले साल मॉनसून की वापसी भी देर से हुई थी. इस साल भी इस संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता है.
खेती के लिए कृत्रिम बारिश लाभ का सौदा नहीं
मॉनसून के असमान वितरण के कारण महाराष्ट्र और पड़ोसी राज्यों के कुछ जिलों में कृत्रिम बारिश कराने के फैसले पर डॉ रंजीत ने कहा कि महाराष्ट्र एवं पड़ोसी इलाके के सूखा प्रभावित लगभग दो दर्जन जिलों में विभाग के पुणे शोध केंद्र की मदद से कृत्रिम बारिश की पहल की गयी है.
उन्होंने कहा कि मॉनसून की संभावित गति को देखते हुए उत्तर प्रदेश और राजस्थान के सूखा प्रभावित इलाकों में कृत्रिम बारिश कराने की कोई जरूरत नहीं होनी चाहिए. वैसे भी यह बहुत लाभप्रद और कारगर तरीका नहीं है. इसे कृषि के अवश्यंभावी नुकसान को देखते हुए अपनाया जाता है. कृत्रिम बारिश से खेती के नुकसान की जितनी मात्रा की भरपाई होती है, उससे ज्यादा कृत्रिम बारिश पर खर्च हो जाता है. इसलिए यह लाभ का सौदा नहीं है.
5 अगस्त तक सक्रिय रहेगा मॉनसून
मौसम वैज्ञानिक ने कहा कि पिछले एक सप्ताह से महाराष्ट्र के समुद्री तट से बने कम दबाव के क्षेत्र ने मॉनसून को उत्तर की तरफ सक्रिय किया है, जिसके कारण पिछले चार दिनों में उत्तरी राज्यों में बारिश का स्तर बढ़ा है. शनिवार (27 जुलाई) को ओड़िशा तट पर कम दबाव का क्षेत्र बन गया है, यह पांच अगस्त तक मॉनसून को सक्रिय रखेगा. इससे दिल्ली, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश सहित उत्तर के मैदानी एवं पहाड़ी इलाकों में अच्छी बारिश होगी.
उन्होंने कहा कि पिछले चार दिन में मॉनसून की सक्रियता में सकारात्मक बदलाव हुआ है. यह बारिश की कमी की भरपाई करेगा. इस बीच दिल्ली एनसीआर क्षेत्र में बारिश की कमी का स्तर 80 प्रतिशत से घटकर 33 प्रतिशत पर आ गया है. आने वाले दिनों में इसमें तेजी से गिरावट का पूर्वानुमान है.