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अयोध्या भूमि विवाद मामला: सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई शुरू

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सुप्रीम कोर्ट में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले में एक याचिका पर सुनवाई शुरू हो चुकी है. इस याचिका में मामले की जल्द सुनवाई की मांग की गई है. भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) रंजन गोगोई की अगुवाई वाली बेंच यह सुनवाई कर रही है. बता दें कि 9 जुलाई को एक वादकार गोपाल सिंह विशारद ने अयोध्या मामले की जल्द सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था.

सीजेआई रंजन गोगोई, जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की तीन सदस्यीय बेंच के सामने विशारद की तरफ से उनके वकील पीएस नरसिम्हा पेश हुए थे. नरसिम्हा ने कहा था कि इस विवाद को शीघ्र सुनवाई के लिए न्यायालय में सूचीबद्ध किए जाने की जरूरत है. इसके साथ ही उन्होंने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट ने इस विवाद का सर्वमान्य समाधान खोजने के लिए मध्यस्थता समिति का गठन किया था, लेकिन उससे इस मामले में बहुत कुछ नहीं हो रहा है.सुप्रीम कोर्ट ने 8 मार्च को शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश एफएमआई कलीफुल्ला की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय मध्यस्थता समिति गठित की थी. इस समिति में अध्यात्मिक गुरु, आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रविशंकर और जाने माने मध्यस्थता विशेषज्ञ, वरिष्ठ अधिवक्ता श्रीराम पंचू भी शामिल हैं. इस मध्यस्थता समिति को सीजेआई रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने गठित किया था.

सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता समिति का कार्यकाल मई में 15 अगस्त तक के लिए बढ़ा दिया था ताकि वह अपनी कार्यवाही पूरी कर सके. ऐसा करते हुए कोर्ट ने कहा था, ”अगर मध्यस्थता करने वाले नतीजों के बारे में आशान्वित हैं और 15 अगस्त तक का समय चाहते हैं तो समय देने में क्या नुकसान है? यह मुद्दा सालों से लंबित है. इसके लिए हमें समय क्यों नहीं देना चाहिए?”

इससे पहले शीर्ष सुप्रीम कोर्ट ने 8 मार्च के आदेश में मध्यस्थता समिति को 8 सप्ताह के अंदर अपना काम पूरा करने के लिए कहा था. इस समिति को अयोध्या से करीब सात किलोमीटर दूर फैजाबाद में अपना काम करना था. इसके लिए राज्य सरकार को पर्याप्त बंदोबस्त करने के निर्देश दिए गए थे.

अयोध्या भूमि विवाद पर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 2010 के अपने फैसले में कहा था कि अयोध्या में विवादित स्थल की 2.77 एकड़ भूमि तीन पक्षकारों- सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला के बीच बराबर-बराबर बांट दी जाए. हाई कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत में कुल 14 अर्जियां दायर की गई हैं.