नई दिल्ली। अयोध्या में राम जन्मभूमि विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को सुनवाई हुई। सर्वोच्च अदालत ने कहा, यह निजी जमीन को लेकर विवाद नहीं है। यह मामला अब बहुत विवादित हो चुका है। हम मध्यस्थता को एक और मौका देना चाहते हैं। यदि इस मुद्दे को बातचीत से हल करने की एक फीसदी भी संभावना है तो ऐसा किया जाना चाहिए।
जस्टिस एसए बोबडे ने कहा, सुप्रीम कोर्ट अगले मंगलवार को इस पर फैसला सुनाएगा कि क्या कोर्ट की निगरानी में सभी पक्षों के बीच बातचीत हो सकती है। इससे कोर्ट का समय बचेगा।
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस अब्दुल नजीर की पीठ में इस मामले पर सुनवाई हुई। इससे पहले कोर्ट अयोध्या राम जन्मभूमि मालिकाना हक मुकदमें से संबंधित अपीलों पर 29 जनवरी को सुनवाई करने वाला था लेकिन जस्टिस एसए बोबडे के उपलब्ध न होने के कारण सुनवाई टल गयी थी। इसके बाद 20 फरवरी को सुनवाई की नई तिथि 26 फरवरी तय हुई थी।
सुब्रमण्यम स्वामी ने सोमवार को प्रधान न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई और संजीव खन्ना की पीठ के समक्ष अपनी रिट याचिका का जिक्र करते हुए गुहार लगाई थी कि उनकी याचिका पर भी मुख्य मामले के साथ ही मंगलवार को सुनवाई की जाए। पीठ ने स्वामी से कहा कि वह मंगलवार को सुनवाई के दौरान कोर्ट में मौजूद रहें। स्वामी ने याचिका में कहा है कि जमीन पर अधिकार से बड़ा मौलिक अधिकार पूजा अर्चना का है। उन्हें अबाधित पूजा अर्चना का अधिकार मिलना चाहिए।
अयोध्या भूमि अधिग्रहण कानून 1993 को चुनौती देने वाली याचिका भी सुनवाई के लिए कोर्ट के सामने लगी है। हालांकि विवादित भूमि को छोड़ कर अधिगृहित जमीन का अतिरिक्त भाग भूस्वामियों को वापस लौटाने की अनुमति मांगने वाली केंद्र सरकार की अर्जी फिलहाल सुनवाई सूची में शामिल नहीं है। इसका कारण शायद यह है कि वह अर्जी अयोध्या राम जन्मभूमि पर मालिकाना हक के मुख्य मुकदमें में दाखिल नहीं की गई थी बल्कि पहले से निस्तारित हो चुके असलम भूरे मामले में दाखिल की गई है, जो कि एक अलग केस है।