Home हैदराबाद महान व्यक्तित्व का स्वर्गारोहण, मुनि श्री वांग्मय सागरजी ने सल्लेखनापूर्वक समाधि ली

महान व्यक्तित्व का स्वर्गारोहण, मुनि श्री वांग्मय सागरजी ने सल्लेखनापूर्वक समाधि ली

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हैदराबाद। आर्षमार्ग, श्रमण परंपरा को बड़ा योगदान, एकांतवाद के निरसन में बड़ी भूमिका निभाते अनेक पुरस्कारों, उपाधियों से विभूषित पंडित श्री शिवचरण लाल जी वर्तमान में पूज्य मुनिश्री वाङ्गमय सागर जी की सल्लेखना पूर्वक समाधि तेलांगाना के मेडक जनपद के कुलचारम में विघ्नहरण पार्शवनाथ अतिशय क्षेत्र में कल सोमवार 9 सितंबर को रात्रि 9.47 पर अन्तर्मना तपाचार्य श्री प्रसन्नसागर जी महामुनिराज के संघ सानिध्य में हो गयी। विगत 28 अगस्त को अन्तर्मना ने उनको मुनिदीक्षा प्रदान कर महाव्रतों का आरोपण किया था व 19 अगस्त रक्षाबंधन के दिन उनकी क्षुल्लक दीक्षा हुई थी व उन्हें वांग्मय सागर नाम दिया गया था।
पूरे देश के प्रमुख स्थानों के साथ ही अमेरिका जाकर उन्होंने धर्म की प्रभावना की तो जयपुर के श्री हुकुम चंद्र जी भारिल्ल को कोलकाता में शास्वार्थ में हराकर धर्म का ध्वज फहराया। श्रमण भारती मैनपुरी के संस्थापक सदस्य के साथ ही मैनपुरी जैन समाज के लिए बहुत योगदान दिया। उन्होंने जम्बूद्वीप हस्तिनापुर में एक कमरे का भी निर्माण कराया। 2002 के कम्पिल पंचकल्याणक में वह समिति के अध्यक्ष रहे। मुनि श्री सहज सागर जी ने बताया कि मैंनें 77 और 79 में उनके साथ ही अहमदाबाद व सूरत साथ जाकर ज्ञान प्राप्त किया था व उनके बड़ा मंदिर व नेमिनाथ जिनालय में उनकी स्वाध्याय सभा से बहुत लाभ मिला। अंतिम समय में उनकी धर्मपत्नी उनके सुपुत्र प्रशांत, पुत्रवधु
अन्तर्मना के प्रिय शिष्य प्रवर्तक मुनिश्री सहज सागर जी, जो पंडित जी के गृहस्थाश्रम के भाई भी हैं, ने जानकारी देते हुए बताया कि मैनपुरी के पंडित जी 25 जुलाई को अपने सुपुत्र प्रशांत के पास से अपनी धर्मपत्नी व पुत्र के समधी श्री राकेश जी के साथ यहां पधारे थे व 30 जुलाई को उन्होंने 85 वर्ष की आयु में पूरी चेतना व निरोगावस्था में सल्लेखना हेतु आचार्य श्री को श्री फल अर्पित किया था जिस पर विचार कर उन्हें दीक्षा प्रदान की थी। पंडित जी बहुत विद्वान थे। पांच हजार से ज्यादा श्लोक व गाथायें उन्हें कंठस्त थीं। घिरोर के पास नगला इंद में श्री बटेश्वरीलाल जी के परिवार में जन्में 1970 में मैनपुरी आये। आपका कपड़े का बड़ा व्यापार था उसके साथ ही आपने खुद स्वाध्याय के बल पर बहुत ज्ञान का अर्जन कर सोनगढ़ व एकांतवाद का पर्दाफाश कर श्रमण परंपरा के लिए अपना महती योगदान दिया। शास्वी परिषद के सरंक्षक व त्रयभ विद्वत महासंघ के अध्यक्ष अनेक पुरस्कारों व उपाधियों से विभूषित किये गए। दश लक्षण पर्व पर
अर्चना, समधी राकेश जी सुपुत्रियां संध्या, प्रतिमा, कविता सपरिवार, श्रीमती साधना मातेश्वरी डॉ सौरभ उनके साथ ही थे।
अन्तर्मना प्रसन्न सागर जी ने अपने शिष्य को श्रद्धासुमन अर्पित करते हुये कहा कि पंडित जी ने ये पुरुषार्थ कर
अपना जीवन तो सुधार ही लिया अपितु विद्वानों के लिए बहुत बड़ा संदेश दिया है कि ज्ञान का फल ऐसा चारित्र अंगीकार कर सल्लेखना लेना है न कि अस्पताल में जाकर मरना। उन्होंने कहा कि विद्वानो की संस्थाओं के पदाधिकारी यहां आकर उनके इस पुरुषार्थ की अनुमोदना करेंगे, अपना कल्याण करेंगें ऐसी आशा थी। आचार्य श्री ने कहा भरत काला मुंबई, डॉ सुशील जैन मैनपुरी, पंडित दीपचंद जी जयपुर व अब पंडित शिवचरण लाल जी ने जो आदर्श प्रस्तुत किया वह बहुत बड़ी बात है।