पृथ्वी के बाहर जीवन की तलाश के लिए जबभी खगोलविद किसी बाह्यग्रह का अध्ययन करते हैं तो उनके पास आदर्श स्थितियां पृथ्वी की होती हैं. तारे से पर्याप्त दूरी (जिसे गोल्डीलॉक दूरी कहते है), तापमान का एक दायरा, पथरीली सतह की उपस्थिति, जैसे कई कारक तलाशे जाते हैं.
लेकिन अभी तक खोजे गए 5 हजार से भी ज्यादा ग्रहों में एक में भी ऐसा कुछ नहीं दिखा है जिससे उम्मीद जगी हो की वहां जीवन हो सकता है, कभी था या भविष्य में कभी होगा. लेकिन नए अध्ययन में अब इन्हीं ग्रहों पर मौजूद टेर्मिनेटर जोन नाम के खास इलाके बताए गए हैं, जहां जीवन के अनुकूलता हो सकती है.
अभी तक कैसे ग्रह मिले हैं?
अभी तक हमें पृथ्वी की ही तरह का ग्रह नहीं मिला है जिसकी संरचना, आकार, और अन्य विशेषताएं भी हमारे नीले ग्रह की ही तरह हों. अब तक खोजे गए 5300 बाह्यग्रह ऐसे हैं जो अपने तारे के बहुत पास हैं जिससे वे अपनी धुरी पर नहीं घूम रहे हैं. यानि एक तरफ इनके हमेशा दिन होता है और एक तरफ हमेशा रात.
बहुत ही गर्म या बहुत ही ठंडा
ज्वारीय बल से बंधे होने के कारण इन ग्रहों का तारे की ओर का हिस्सा हमेशा बहुत ही गर्म होता है और तारे के पीछे की ओर का हिस्सा बहुत ही ज्यादा ठंडा ऐसे में वहां पृथ्वी की तरह जीवन की आशा करने का कोई अर्थ नहीं है. लेकिन अब वैज्ञानिकों को इन्हीं ग्रहों के कुछ खास इलाकों में उम्मीद की किरण नजर आई है जहां ना तो दिन होता है ना ही रात.
खास तरह की टर्मिनेटर जोन
इस ग्रहों पर कुछ इलाके ऐसे भी होते हैं जहां हमेशा या तो सुबह सुबह के जैसा महौल होता है या फिर सांझ ढलने जैसा. ऐसी जगहों पर तापमान नियंत्रित हालात में हो सकता है यानि ना तो बहुत ही ज्यादा और ना बहुत ही ठंडा. इन इलाकों को वैज्ञानिक टर्मिनेटर जोन कहते हैं और यहीं पर वैज्ञानिकों को जीवन मिलने की उम्मीदें बढ़ी दिख रही हैं.
आमतौर पर खोजे गए ग्रहों में एक ही तरफ दिन और एक ही तरफ रात होती है.
इरवाइन की यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया की जियोफिजिसिस्ट एना लोबो का कहना है कि हम ऐसे ही ग्रह की खोज करना चाहते हैं जहां तापमान ऐसा हो की तरल पानी मिल सके. ऐसे ग्रहों पर दिन में लावा जैसे हालात होते हैं तो वहीं रात को बर्फ से ढंके और ग्लेशियर वाली स्थितियां. लेकिन सच ही है कि हमारी खोज सीमित है और इसकी वजह हमारी तकनीकी सीमाएं हैं.
ये हैं प्रमुख समस्याएं
दिक्कत यह है कि हमारी अभी की सर्वश्रेष्ठ तकनीक से हम ऐसे ही संसार खोज सके हैं जो अपने तारे के बहुत ही पास हैं जो उसका चक्कर 100 दिन के अंदर ही पूरा कर लेते हैं. अगर हम केवल सूर्य जैसे तारे ही देखते तो इससे भी आवासीय ग्रह खोजने में समस्या आती क्योंकि बहुत सारे, दो तिहाई से ज्यादा, तारे लाल बौने हैं जो हमारे सूर्य से छोटे, कम रोशनी देने वाले और सूर्य से काफी ठंडे हैं.
ऐसे बाह्यग्रहों में ऐसे इलाके भी होते हैं जहां माहौल शाम की तरह होता है जिससे चरम तापमान की स्थितियां नहीं बन पाती हैं.
लाल बौनों के साथ एक समस्या है कि वे ग्रह को ज्वारीय तौर पर बांध लेते हैं जिससे एक हिस्से में हमेशा दिन होता है और एक हिस्से में हमेशा रात, जैसा कि चंद्रमा और पृथ्वी के बीच का संबंध है कि चंद्रमा का एक ही हिस्सा पृथ्वी की ओर रहता है. उसके उनका एक फायदा होता है कि गोल्डीलॉक दूरी कम हो जाती है जिससे इममें पथरीले ग्रहों के होने की संभावना बढ़ जाती है.
जिन ग्रहों में एक तरफ हमेशा दिन रहता है उन्हें आइबॉल ग्रह कहते हैं लेकिन ऐसे ग्रहों में कहीं आवासीयता हो सकती है कि लोबो और उनकी टीम ने एक परीष्कृत जलवायु प्रतिमान सॉफ्टवेयर का उपयोग किया जो पृथ्वी के लिए इस्तेमाल किया जाता है. शोधकर्ताओं का कहना है कि वे कम पानी वाले ग्रहों के अध्ययन पर जोर देना चाहते हैं जहां झील जैसी संरचनाएं हैं. यहां जीवन होने की उम्मीद कहीं ज्यादा हो सकती है.