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उत्तरी और दक्षिणी आयरलैंड क्या एक हो पाएंगे?

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आयरलैंड और उत्तरी आयरलैंड का मसला ब्रिटेन और अब ब्रेक्सिट के बाद यूरोप के लिए भी विवाद का बड़ा मुद्दा बना हुआ है.

मगर आयरलैंड के लिए यह कहीं ज़्यादा गंभीर और महत्वपूर्ण विवाद रहा है जिसे सुलझाना उसके लिए बेहद चुनौतीपूर्ण भी रहा है.

मगर यह सवाल सौ साल से ज़्यादा समय से आयरलैंड की राजनीति में मुद्दा रहा है.

आज से लगभग सौ साल पहले आयरलैंड को विभाजित कर दो हिस्सों में बांट दिया गया था.

दक्षिणी हिस्सा कैथोलिक ईसाई बहुल आयरलैंड बना जो काफ़ी हद तक स्वायत्त राष्ट्र था और यूनाइटेड किंगडम यानी ब्रिटेन से अलग हो गया.

उत्तर-पूर्व का हिस्सा जहां प्रोटेस्टेंट ईसाई बहुसंख्यक थे वो हिस्सा उत्तरी आयरलैंड बन गया और ब्रिटन से जुड़ा रहा.

एक विभाजित आयरलैंड

आयरलैंड के कई राष्ट्रवादी कैथलिक लोगों के लिए ये मुद्दा दुखती रग जैसा बन गया था, जबकि उत्तरी आयरलैंड के लोग अपनी ब्रितानी पहचान बनाए रखना चाहते हैं. मगर समय के साथ यहां राजनीतिक सोच भी बदली है.

इस हफ़्ते हम ये समझने की कोशिश कर रहे हैं कि क्या आयरलैंड के दोनों हिस्से एक हो सकते हैं? क्या एक संयुक्त आयरलैंड बन सकता है?

आयरलैंड का इतिहास हिंसक विद्रोह और संघर्षों से पटा पड़ा है और इसके ज़्यादातर पहलुओं पर इतिहासकारों का एकमत होना कम ही नज़र आता है.

सैकड़ों सालों तक यहां के स्थानीय राजा एकदूसरे से लड़ते रहे या फिर वायकिंग और एंग्लो-सैक्सन आक्रमणकारियों से जूझते रहे. ब्रितानी राजाओं ने हिंसक तरीके से आयरलैंड पर अपनी पकड़ बना ली, विद्रोहों को क्रूरता से कुचल दिया.

कई इसे अपनी कॉलोनी या उपनिवेश की तरह देखते थे. सन् 1800 में राजनेताओं ने ब्रिटेन और आयरलैंड की संसदों में एक क़ानून पास करके यूनाइटेड किंगडम ऑफ़ ग्रेट ब्रिटेन एंड आयरलैंड यानी संयुक्त ब्रिटेन और आयरलैंड का गठन किया. यह एकता लगभग सौ सालों तक कायम रही लेकिन इसे लेकर विवाद कभी थमा नहीं था.

बेलफ़ास्ट की क्वीन्स यूनिवर्सिटी में आयरलैंड का इतिहास पढ़ाने वाली मैरी कोलमन आयरलैंड के इतिहास पर कहती हैं, “आयरलैंड में हमेशा ब्रिटेन के भीतर स्वायत्तता या किसी प्रकार की आज़ादी की मांग हमेशा बनी रही और पहले महायुद्ध तक वो पूर्ण स्वतंत्रता में बदल गयी थी.”

वो कहती हैं, “आयरलैंड का यूके में विलय कभी भी पूरी तरह से सर्वमान्य नहीं था. हमेशा ही आयरलैंड के राष्ट्रवादी गुट ब्रिटेन के भीतर रह कर भी स्वायत्तता या किसी प्रकार की आज़ादी की मांग करते रहते थे और पहले महायुद्ध तक वो पूर्ण स्वतंत्रता की मांग करने लगे थे.”

स्वायत्तता की मांग धीरे-धीरे तूल पकड़ती गई. और 1912 में एक होम रूल यानि स्वशासन का क़ानून बना. लेकिन ब्रिटेन में बने रहने का पक्षधर गुट जिन्हें यूनियनिस्ट कहा जाता है उनके सशस्त्र विद्रोह की आशंका से पहले महायुद्ध की समाप्ति तक यह क़ानून अमल में नहीं लाया गया.

प्रोफ़ेसर कोलमन का कहना है, “महायुद्ध की शुरुआत के समय लग रहा था कि राष्ट्रवादी कैथोलिक गुट के दबदबे वाले आयरलैंड के तीन चौथाई हिस्से में होमरूल लागू हो सकता था. लेकिन उत्तर-पूर्व के ज़्यादातर युनियनिस्ट यह नहीं चाहते थे. वो राजनीतिक और धार्मिक विचारधारा के आधार पर ब्रिटेन के क़रीब थे और उसके साथ बने रहना चाहते थे.”

1916 में राष्ट्रवादी गुटों ने बग़ावत कर दी. इसे ईस्टर अपराइसिंग के नाम से जाना जाता हैं. मगर यह असफल रही. लेकिन पहले महायुद्ध की समाप्ति के बात समझौता हो गया जिसके तहत एक आज़ाद आइरिश देश का गठन हुआ जिसमें आयरलैंड की 26 काउंटियां या कहें कि ज़िले शामिल थे.

उत्तरी आयरलैंड की ब्रिटेन का हिस्सा बनी रहीं. इसमें शेष छ काउंटियां थीं जहां युनियनिस्ट प्रोटेस्टेंट गुटों का वर्चस्व था.

तो सवाल यह उठता है कि राष्ट्रवादी रिपब्लिकन नेताओं ने इस समझौते को स्वीकार क्यों किया?

इस बारे में मैरी कोलमन कहती हैं, “उनके पास ज़्यादा विकल्प नहीं थे. कम से कम इसके तहत उन्हें काफ़ी हद तक संप्रभुता मिल रहा था जिसके तहत वो साल 1921 में स्वतंत्र आयरिश राष्ट्र बन सकते थे. और वो सोचते थे कि भविष्य में वो उत्तरी आयरलैंड को आयरलैंड में मिला लेंगे और उस समय जितना मिल रहा है कम से कम उतना ले लिया जाए. यह व्यवहारिक राजनीति थी.”

लेकिन अगले पचास सालों तक यह सपना ही रह गया था. उत्तरी आयरलैंड में कैथलिकों के साथ भेदभाव होता रहा. लेकिन इन आरोपों का खंडन भी होता रहा.

आज़ाद देश बनने के बावजूद आयरलैंड दोनों हिस्सों के एकीकरण के लिए कुछ खास नहीं कर पाया.

1960 के दशक में उत्तरी-आयरलैंड में चरमपंथी यूनियनिस्ट गुट और राष्ट्रवादी आयरिश गुट आईआरए के बीच हिंसक झड़पें शुरु हो गई.

पच्चीस साल तक चले इस संघर्ष में 3600 से ज़्यादा लोग मारे गए.आख़िरकार 1990 के दशक के मध्य में यह हिंसा ख़त्म हो गई.

इसकी वजह के बारे में मैरी कोलमन कहती हैं, “मेरे ख़्याल से लोग हिंसा से तंग आ गए थे. हिंसा का शिकार होने वालों की बढ़ती संख्या की वजह से दोनों मुख्य गुटों ने समझौते के बारे में गंभीरता से सोचना शुरू कर दिया था.”गुड फ़्राइडे एग्रीमेंट

गुड फ़्राइडे एग्रीमेंट

अंत में 1998 में एक समझौता हो गया जिसे गुड फ़्राइडे एग्रीमेंट कहा जाता है. इस समझौते के तहत आयरलैंड और उत्तरी-आयरलैंड के बीच सत्ता साझेदारी के सिद्धांत तय हुए और सभी चरमपंथी गुटों को हथियार डालने पड़े. बंदियों को रिहा कर दिया गया.

यह भी तय हुआ कि भविष्य में रिपब्लिक ऑफ़ आयरलैंड और उत्तरी आयरलैंड के लोग अगर दोनों हिस्सों के एकीकरण के लिए बहुमत दें तो संयुक्त आयरलैंड बन सकता है.

मगर इसके लिए आवश्यक जनमत संग्रह कराने का अधिकार आयरलैंड संबंधी ब्रिटेन के विदेशमंत्री को दिया गया.

मैरी कोलमन कहती हैं, “किस हालात में वो जनमत संग्रह कराने की अनुमति दें यह जानबूझ कर अस्पष्ट रखा गया. मगर धीरे-धीरे लोगों की राय बदलती गई है.”आयरलैंड के पूर्वी तट पर स्थित आयरलैंड गणराज्य की राजधानी डबलिन शहर में एक व्यस्त साइड स्ट्रीट

संख्या का खेल

पिछले सौ सालों में आयरलैंड के दोनों हिस्सों की जनसांख्यिकी भी बदली है. 1921 में विभाजन के वक़्त उत्तरी आयरलैंड की छह काउंटियों में दो-तिहाई आबादी प्रोटेस्टेंट समुदाय की थी. ये ब्रिटेन में बने रहने के पक्के समर्थक थे.

लेकिन 2021 में हुए जनसर्वेक्षण के मुताबिक़ पहली बार कैथोलिक आबादी प्रोटेस्टेंट आबादी से बड़ी हो गई है. हालांकि वो अभी भी पूर्ण बहुमत से दूर है.

लेकिन इस बड़े बदलाव से एकीकृत आयरलैंड को लेकर सवाल खड़े हो गये हैं. अब इन समुदायों की क्या राय है यह जानने के लिए बीबीसी ने क्वीन्स यूनिवर्सिटी में राजनीति शास्त्र की प्रोफ़ेसर केटी हेवर्ड से बात की.

वो कहती हैं, “दो तिहाई कैथोलिक आबादी एकीकृत आयरलैंड चाहती है. मगर प्रोटेस्टेंट आबादी में हर दस में से आठ लोग यूके में बने रहना चाहते हैं.”

केटी हेवर्ड यह भी कहती हैं कि पिछले दस पंद्रह सालों में लोगों की राय बदली है. अब प्रोटेस्टेंट समुदाय में भी कई लोग पक्की राय नहीं बना पा रहे हैं कि उन्हें संयुक्त आयरलैंड का हिस्सा बनना है या ब्रिटेन में बने रहना है. मगर 2016 में ब्रेक्ज़िट यानि यूके के यूरोपीय संघ से अलग होने की बात से एक बड़ा परिवर्तन आया है.

जहां यूके में बहुमत ब्रेक्ज़िट के समर्थन में रहा वहीं आयरलैंड मे यूरोपीय संघ में बने रहने के फ़ैसले को बहुमत मिला था. अब यूके के यूरोपीय संघ से अलग होने के बाद उत्तरी आयरलैंड के मामले में जो दिक्कतें पेश आ रही हैं उससे भी लोगों की राय बदल रही है.

केटी हेवर्ड कहती हैं, “जनमत संग्रह से कुछ साल पहले उत्तरी आयरलैंड के पंद्रह फ़ीसदी लोग आयरलैंड के साथ अपना भविष्य देखते थे लेकिन 2021 के जनसर्वेक्षण के मुताबिक़ यह संख्या तीस प्रतिशत तक पहुंच गई है.”

यह एक बड़ा बदलाव है लेकिन मामला अभी काफ़ी पेचिदा है क्योंकि उत्तरी आयरलैंड की आबादी का एक बड़ा हिस्सा खुल कर यह नहीं कह पा रहा कि वो संयुक्त आयरलैंड चाहते हैं या ब्रिटेन में बने रहना चाहते हैं. लेकिन संयुक्त आयरलैंड के लिए अभियान चलाने वाला मुख्य राजनितिक दल शिन फ़ेन रिपब्लिक ऑफ़ आयरलैंड और उत्तरी आयरलैंड दोनों ही जगह ज़्यादा शक्तिशाली होता गया है.

इस विषय पर केटी हेवर्ड कहती हैं, “शिन फ़ेन का बढ़ता प्रभाव लोगों में आयरिश पहचान के प्रति बढ़ती आस्था को भी दर्शाता है. और काफ़ी हद तक वो उत्तरी आयरलैंड में आ रहे सामाजिक बदलाव की वजह से भी हुआ है.”मिशेल ओ’नील और मैरी लू मैकडॉनल्ड के नेतृत्व में शिन फ़ेन की मंशा है कि उत्तरी आयरलैंड यूके छोड़ दे और रिपब्लिक ऑफ़ आयरलैंड के साथ फिर से जुड़ जाए

शिन फ़ेन का उदय

शिन फ़ेन दरअसल चरमपंथी गुट आयरिश रिपब्लिकन आर्मी का राजनीतिक धड़ा था, जो हिंसक तरीके से उत्तरी आयरलैंड से ब्रितानी शासन को हटाना चाहता था.

गुड फ़्राइडे समझौते के बाद इसने हिंसा का रास्ता छोड़ कर समस्या का राजनीतिक समाधान ढ़ूंढने का मार्ग अपनाया. इस बदलाव पर हमने बात की जोनाथन टोंग से जो लिवरपुल यूनिवर्सिटी में राजनीति शास्त्र के प्रोफ़ेसर हैं.

वो मानते हैं कि शिन फ़ेन का राजनीतिक समाधान का रास्ता अपनाना पिछले पच्चीस सालों में उसकी राजनीतिक ताक़त बढ़ने का प्रमुख कारण है. अब यह उत्तरी आयरलैंड के मुख्य राजनीतिक दल सोशल डेमोक्रेटिक एंड लेबर पार्टी को चुनौती दे रही है. कैथोलिक और राष्ट्रवादी दोनों ही अपनी ओर वोट खींचना चाहती हैं.

जोनाथन टोंग कहते हैं, “शिन फ़ेन के मतदाता नाटकीय रूप से बदल रहे हैं. गुड फ़्राइडे समझौते के समय ज़्यादातर श्रमिक वर्ग के कैथोलिक लोग इसे वोट देते थे. अब कैथोलिक समुदाय के भिन्न वर्ग के लोग शिन फ़ेन को वोट देने लगे हैं. दो तिहाई कैथोलिक वोट शिन फ़ेन को मिलते हैं जब कि एक चौथाई कैथोलिक वोट एसडीएलपी को जाता है. यह बड़ा परिवर्तन है. गुड फ़्राइडे समझौते के समय मध्यवर्ग के कैथोलिक शिन फ़ेन से दूर रहते थे.”

“अब, वही लोग अन्य दलों के मुकाबले शिन फ़ेन को पसंद करते है. जनसांख्यिकी के हिसाब से भी शिन फ़ेन के लिए अच्छे आसार इसलिए हैं कि बुजुर्ग लोग जिन्होंने हिंसक विद्रोह का दौर देखा था शिन फ़ेन को भले ही उतना पसंद ना करते हों लेकिन युवा वर्ग के मतदाता उसे वोट देते हैं.”

लेकिन अगर उसका उद्देश्य संयुक्त आयरलैंड बनाने के लिए जनमत संग्रह जीतना है तो यह लड़ाई अभी अधूरी है. ज़्यादातर कैथोलिक तो संयुक्त आयरलैंड चाहते हैं.

तो क्या अब शिन फ़ेन को प्रोटेस्टेंट मतदाताओं के समर्थन की ज़रूरत है?

इसके जवाब में जोनाथन टोंग कहते हैं, “बिल्कुल सही. पिछले चुनावों में केवल दो प्रतिशत प्रोटेस्टेंट लोगों ने शिन फ़ेन को वोट दिया है. लेकिन एक बड़ा तबका है जो कहता है वो किसी धर्म का अनुयायी नहीं है. उत्तरी आयरलैंड में इस तबके की आबादी 17 प्रतिशत है. एक दूसरा तबका है जो ख़ुद को ना राष्ट्रवादी मानता है ना युनियनिस्ट या ब्रिटेन समर्थक. शिन फ़ेन को इन मतदाताओं का समर्थन हासिल करना है.”

इस में शिन फ़ेन को कुछ सफलता भी मिली है. पिछले साल उत्तरी आयरलैंड के असेंबली चुनावों में शिन फ़ेन ने सबसे अधिक सीटें जीती थीं.

आयरलैंड के संसदीय चुनाव में शिन फ़ेन को सफलता मिली थी लेकिन सरकार का हिस्सा बनने में वो नाकामयाब रही. लेकिन 2025 के चुनावों में शिन फ़ेन के दक्षिणी और उत्तरी आयरलैंड में सबसे आगे निकलने की प्रबल संभावना है. ऐसी सूरत में क्या दोनों जगह एक साथ चुनावों की मांग बल पकड़ सकती है?

जोनाथन टोंग कहते हैं, “ऐसा होने की संभावना कम हैं क्योंकि उत्तरी आयरलैंड के असेंबली चुनाव में शिन फ़ेन को कुल वोटों में से केवल 29 प्रतिशत वोट ही मिले थे. ताज़ा सर्वेक्षणों के मुताबिक़, हो सकता है अगले चुनाव में वो 35 प्रतिशत वोट पा जाए. मगर उसे पूर्ण बहुमत मिलने के संभावना नज़दीक भविष्य में दिखाई नहीं देती.”

“मगर संयुक्त आयरलैंड के बनने से लोगों को वर्तमान के मुक़ाबले ज़्यादा टैक्स देना पड़ सकता है जिसके बारे में भी लोग सोचेंगे. दूसरे, यूके में बने रहने के पक्षधर यूनियनिस्ट और प्रोटेस्टेंट समुदाय के लोग संयुक्त आयरलैंड के लिए तैयार ना हों. इस स्थिति में शिन फ़ेन लगातार चुनावी सफलता पाती रही तब भी इस बात की गारंटी नहीं है कि संयुक्त आयरलैंड बन पाएगा. मगर उसकी संभावना बढ़ सकती है.”मिशेल ओनिल और मैरी लू मैकडॉनल्ड

संयुक्त आयरलैंड बनने की संभावना बढ़ने का एक कारण और कारण है सीमा के दोनों तरफ़ शिन फ़ेन का नेत़त्व अब नयी पीढ़ी के नेता कर रहे हैं. उत्तरी आयरलैंड में उसके नेता हैं मिशेल ओनिल और दक्षिण में उसकी नेता हैं मैरी लू मैकडॉनल्ड.

जोनाथन टोंग कहते हैं,”मिशेल ओनिल और मैरी लू मैकडॉनल्ड का महत्व इसलिए है क्योंकि यह दोनों ही हिंसक संघर्ष के बाद की पीढ़ी के नेता हैं जबकि इससे पहले लगभग तीस साल तक शिन फ़ेन के अध्यक्ष जेरी एडम्स थे जो संघर्ष काल के नेता थे और उन्हें हिंसा के दौर के साथ जोड़ कर देखा जाता था.”

“हालांकि मिशेल ओनिल और मैरी लू मैकडॉनल्ड ने कभी आयरीश रिपब्लिकन आर्मी की हिंसक रणनीति की भर्त्सना नहीं की है. मगर वो शांतिपूर्ण तरीके से संयुक्त आयरलैंड बनाने की बात करते रहे हैं.”

मगर संयुक्त आयरलैंड बने या नहीं इस बारे में जनमत संग्रह कराने का फ़ैसला केवल आयरलैंड संबंधी ब्रितानी विदेश मंत्री ही कर सकते हैं जब उन्हें अलग-अलग चुनाव परिणामों को देख कर यह लगे कि आम मतदाता संयुक्त आयरलैंड के फ़ैसले के लिए जनमत संग्रह चाहते हैं. लेकिन वो यह किस आधार पर तय करेंगे यह बिल्कुल भी स्पष्ट या निश्चित नहीं है.

एक टला हुआ प्रस्ताव

आयरलैंड विवाद के हल के लिए जनमत संग्रह कब तक हो सकता है यह समझने के लिए बीबीसी ने बात की ब्रैनडन ओलिएरी से जो पेन्सिलवेनिया यूनिवर्सिटी में राजनीति शास्त्र के प्रोफ़ेसर हैं और उत्तरी आयरलैंड विवाद पर कई महत्वपूर्ण किताबें लिख चुके हैं.

वो कहते हैं संयुक्त आयरलैंड के गठन के लिए जनमत संग्रह 2030 से पहले मुश्किल है क्योंकि जो लोग संयुक्त आयरलैंड चाहते हैं उन्हें जनमत संग्रह की तैयारी के लिए पांच साल का वक़्त लगेगा, वहीं उन्हें संयुक्त आयरलैंड का नया संविधान बनाने के लिए भी काम करना होगा.

ब्रैनडन ओलिएरी कहते हैं, “इस समय संयुक्त आयरलैंड के गठन के दो प्रस्तावित व्यवहारिक मॉडल मौजू़द हैं. पहले के तहत उत्तरी आयरलैंड का पूरी तरह से रिपब्लिक ऑफ़ आयरलैंड में विलय हो जाएगा और उसका अलग राजनीतिक अस्तित्व ख़त्म हो जाएगा. दूसरा जिसका प्रावधान रिपब्लिक ऑफ़ आयरलैंड के मौजू़दा संविधान में है और गुड फ़्राइडे समझौते में भी था कि वो रिपब्लिक ऑफ़ आयरलैंड का हिस्सा बन जाएगा. उसे अलग से प्रशासनिक अधिकार दिए जाएंगे. मगर वो संप्रभु रिपब्लिक ऑफ़ आयरलैंड का अंग बन जाएगा.”

कुछ बातें बिल्कुल स्पष्ट हैं कि ब्रितानी और आयरिश सरकार दोनों ही इस बात के लिए तत्पर हैं कि जो भी ब्रितानी नागरिक बन कर रहना चाहता वो ब्रितानी नागरिक बना रह सकता है.

मगर यूरोपीय संघ कह चुका है कि अगर उत्तरी आयरलैंड संयुक्त आयरलैंड का हिस्सा बनता है तो वो यूरोपीय संघ का सदस्य बन जाएगा. इसका मतलब यह है कि संयुक्त आयरलैंड का जनमत संग्रह दरअसल दोबारा यूरोपीय संघ से जुड़ने का जनमत संग्रह भी बन जाएगा.

इसके साथ ही कुछ आर्थिक सवाल भी हैं. पहला यह कि क्या दक्षिण उत्तरी आयरलैंड का आर्थिक भार उठा पाएगा?

ब्रैनडन ओलिएरी कहते हैं, “अगर दक्षिण को यह मानना पड़ जाए कि उसे आने वाले तीस सालों तक उत्तरी भाग का खर्च उठाना पड़ सकता है तो संयुक्त आयरलैंड को ले कर उनका उत्साह कुछ ठंडा पड़ सकता है.”

“लेकिन जिस तरह दक्षिण उत्तरी आयरलैंड से अधिक धनी है उसी तरह पश्चिमी जर्मनी पूर्वी जर्मनी से ज़्यादा धनी था फिर भी उनका एकीकरण हो गया तो ऐसा आयरलैंड में क्यों नहीं हो सकता?”

मगर क्या यूके के साथ जुड़े रहने का पक्षधर यूनियनिस्ट समुदाय इसे स्वीकार कर लेगा? क्या इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ फिर से हिंसा नहीं भड़केगी?

इसके जवाब में ब्रैनडन ओलिएरी कहते हैं, “अगर यूनियनिस्ट इसका हिंसक तरीके से विरोध करेंगे या बहिष्कार करेंगे तो यह साबित होगा कि वो लोकतांत्रिक मूल्यों पर विश्वास नहीं करते जिसके आधार पर उत्तरी आयरलैंड अस्तित्व में है. ऐसा करने से वो अलग-थलग पड़ जाएंगे. कुछ लोग इसे हार की तरह देखें और कुछ हिंसा भी हो लेकिन वो जारी नहीं रह पाएगी.”

तो आते हैं अपने मुख्य सवाल पर कि उत्तरी और दक्षिणी आयरलैंड क्या एक हो पाएंगे?

बीबीसी ने जिन जानकारों से बात की उनकी राय में आने वाले कुछ सालों में ऐसा कुछ होता नहीं लगती.

हालांकि कम से कम दस साल बाद सभी आयरिश लोगों से यह सवाल पूछा जाएगा. यह चुनौती भरा होगा और उस जवाब की छाप आयरलैंड के भविष्य पर पड़ेगी.