Home समाचार पेगासस स्पाईवेयर के जरिए भारत के 40 से ज़्यादा पत्रकारों की जासूसी...

पेगासस स्पाईवेयर के जरिए भारत के 40 से ज़्यादा पत्रकारों की जासूसी का दावा

43
0

देश के चर्चित लोगों के फ़ोन की कथित जासूसी से जुड़ी रिपोर्ट सामने आ गई है. इसे लेकर बीते कुछ वक़्त से सोशल मीडिया पर चर्चा थी.

इस रिपोर्ट में दावा किया गया है कि दुनिया भर में सैकड़ों पत्रकारों और दूसरे चर्चित लोगों के फ़ोन टैप किए गए हैं. इनमें भारत के कई लोग शामिल हैं.

रिपोर्ट आने के पहले बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने इसे लेकर ट्वीट किया था. उन्होंने लिखा था कि इस तरह की अफ़वाह है कि वॉशिंगटन पोस्ट और लंदन गार्डियन एक रिपोर्ट छापने जा रहे हैं. ‘जिसमें इसराइल की फर्म पेगासस को मोदी कैबिनेट के मंत्री, आरएसएस के नेता, सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश और पत्रकारों के फ़ोन टैप करने के लिए हायर किए जाने का भंडाफोड़ होगा.’

इस पर कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह समेत कई लोगों ने प्रतिक्रिया दी थी. दिग्विजय सिंह ने ट्विटर पर लिखा था कि ‘उम्मीद करता हूं कि वो (रिपोर्ट छापने वाले) मोदी शाह के दबाव में नहीं आएंगे.’

दिग्विजय सिंह ने साल 2019 में पेगासस से जुड़ा मामला राज्यसभा में उठाया था. उन्होंने अपने ट्वीट में इसका भी जिक्र किया.

इस बीच देर शाम ‘वॉशिंगटन पोस्ट’ और भारत में समाचार वेबसाइट ‘द वायर’ ने एक ख़बर प्रकाशित कर दावा किया कि दुनियाभर के कई पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के फोन हैक किए गए. लेकिन, पेगासस नाम के जिस स्पाई वेयर से फ़ोन हैक करने की बात सामने आ रही है उसे तैयार करने वाली कंपनी एनएसओ ने तमाम आरोपों से इनकार किया है.

ये कंपनी दावा करती रही है कि वो इस प्रोग्राम को केवल मान्यता प्राप्त सरकारी एजेंसियों को बेचती है और इसका उद्देश्य “आतंकवाद और अपराध के खिलाफ लड़ना” है

भविष्य में कई नाम सामने आ सकते हैं

पेरिस की एक मीडिया संस्था फॉरबिडेन स्टोरीज़ ने उन लोगों की एक सूची हासिल की थी जिनके फ़ोन की जासूसी करने का दावा किया गया है.

फॉरिबेडन स्टोरीज़ के संस्थापक लॉरें रिचर्ड ने बीबीसी के शशांक चौहान से फोन पर बातचीत में कहा, “दुनिया भर के सैकड़ों पत्रकार और मानवाधिकारों के हामी इस सर्विलेंस के शिकार हैं, यह दिखाता है कि दुनिया भर में लोकतंत्र पर हमला हो रहा है.”

उन्होंने इस पड़ताल के बारे में बताया, “हमें बहुत सारे टेलीफ़ोन नंबरों की सूची मिली थी, हम ये पता लगाने की कोशिश कर रहे थे कि यह सूची आखिर कहाँ से निकाली गई हैं, इस लिस्ट में जितने नंबर हैं उनका ये मतलब नहीं है कि वे सभी नंबर हैक किए गए हैं. हमें एमेनेस्टी इंटरनेशनल की मदद से पता लगा कि इनमें से कुछ नंबरों की निगरानी एनएसओ (पेगासस बनाने वाली इसराइली कंपनी) कर रहा था.”

रिचर्ड ने बीबीसी से कहा कि वे भविष्य में और नामों की सूची जारी करेंगे, उनका कहना था कि पचास से ज्यादा देशों में चलाए गए इस सर्विलेंस अभियान का दायरा बहुत बड़ा है.

उन्होंने कहा, “पैगासस स्पाइवेयर को इस मामले में हथियार की तरह इस्तेमाल किया गया है, आने वाले हफ़्तों में बहुत सारी दमदार रिपोर्टें और कई तरह के लोगों के नाम सामने आएँगे.”

बड़े नेताओं और पत्रकारों के नाम का दावा

द वायर के मुताबिक, “डेटाबेस में 40 पत्रकार, तीन विपक्ष के बड़े नेता, एक संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति, मोदी सरकार के दो मंत्री और सुरक्षा एजेंसियों के मौजूदा और पूर्व प्रमुख समेत कई बिजनेसमैन शामिल हैं.”

“डेटाबेस में इनका नाम होना इस बात की ओर इशारा करता है कि ये जासूसी का टार्गेट थे, लेकिन इसका फ़ोन वास्तव में हैक हुआ या नहीं, ये सिर्फ फ़ोन की फ़ोरेंसिक जांच के बाद ही पता चल सकता है.”

वायर की रिपोट में दावा किया गया है कि डेटा में हिंदुस्तान टाइम्स के संपादक शिशिर गुप्ता समेत इंडिया टुडे, नेटवर्क 18, द हिंदू और इंडियन एक्सप्रेस, द वायर के दो संस्थापक संपादक, तीन पत्रकारों, दो नियमित लेखक शामिल हैं. इसके अलावा पत्रकार रोहिणी सिंह, इंडियन एक्सप्रेस में डिप्टी एडिटर सुशांत सिंह का भी नाम सामने आया है. रोहिणी सिंह ने अमित शाह के बेटे जय शाह के कारोबार से जुड़ी खबरें लिखीं थी, और सुशांत सिंह रफ़ाल सौदे से जुड़ी पड़ताल पर लिखते रहे हैं.

खबर के मुताबिक, “इंडियन एक्सप्रेस के पूर्व पत्रकार सुशांत सिंह, टीवी 18 की पूर्व एंकर स्मिता शर्मा, ईपीडब्ल्यू के पूर्व संपादक परंजॉय गुहा ठाकुरता, आउटलुक के पूर्व पत्रकार एसएनएम आबिदी, द हिंदू की विजेता सिंह और द वायर के दो संस्थापक संपादकों सिद्धार्थ वरदराजन और एमके वेणु के फोन का विश्लेषण किया गया था.”

“एआई ने पाया कि इनमें से सुशांत, परंजॉय, आबिदी, सिद्धार्थ और वेणु के फोन में पेगासस से छेड़छाड़ की गई थी.”

एनएसओ समूह ने कहा है कि लीक हुआ डेटाबेस “पेगासस का उपयोग करने वाली सरकारों द्वारा टार्गेट किए गए लोगों का नहीं है.” कंपनी ने कहा कि मुमकिन है कि ये डेटा कंपनी की बड़ी ग्राहकों की लिस्ट से हो, जिनका इस्तेमाल दूसरे कारणों से किया गया.”

भारत सरकार की तरफ़ से इस मुद्दे पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है.