चायवाले गुरु के नाम से फेमस रहे ओडिशा कटक के डी प्रकाश राव ने चाय दुकान की आधी कमाई जोड़कर झुग्गी व जरूरतमंद बच्चों के लिए स्कूल खोला था, उन्हें पढ़ाने के साथ खाना खुद बनाकर देते थे। पिछले महीने जनवरी में कोरोना व ब्रेन स्ट्रोक आने से उनकी मौत हो गई।
बीमार पिता का साथ देने करीब सालभर दिल्ली की नौकरी छोड़कर आई उनकी बेटी भानुप्रिया अब स्कूल का जिम्मा संभाल रही है। उनका कहना है कि इस स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों का भविष्य और पिताजी के सपनों को मुझे ही साकार के साथ संवारना है। 70 साल के डी प्रकाश राव कटक के वे शख्स थे, जिन्हें 2019 में पद्मश्री मिलने के बाद पूरा देश जानने लगा। 12 साल की उम्र से सड़क किनारे चाय की छोटी सी दुकान खोलकर एक दिन जरूरतमंद बच्चों के लिए स्कूल खोलने का सपना देखा। उनकी बेटी भानुप्रिया बताती हैं कि पिताजी का कहना था कि हालातवश वे तो नहीं पढ़ पाए लेकिन दूसरे बच्चों को ऐसा नहीं देखना चाहते।
इसी मकसद से वे सन 2000 में घर में ही आसपास स्लम एरिया के 30 बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। उन्हें चाय बिस्किट देने के साथ कॉपी पुस्तक व अन्य पढ़ाई के सामान चाय बेचने की कमाई के आधे पैसे से देने लगे।
बच्चों को दाल चावल भी पिता जी ही खुद बनाकर खिलाते थे। चाय की दुकान की कमाई जोड़कर 2008 में उन्होंने स्कूल की स्थापना की, पापा का मकसद देख यहाँ की डॉ मीनाक्षी व उनके कुछ साथी डॉक्टर्स ने भी मदद की। पिछले 13 साल से नर्सरी से क्लास 4वीं तक के करीब 140 बच्चों को मुफ्त शिक्षा व खाने की व्यवस्था की जा रही है। उनके काम व स्कूल को देखने 2 साल पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी आए थे और बच्चों से मिले।
पद्मश्री पेंशन भी लेने से मना कर दिया, मदद से स्कूल चलेगा
प्रकाश राव ने पद्मश्री सम्मान मिलने के बाद उसकी पेंशन राशि लेने से इंकार कर दिया। उनका कहना था कि अपनी मेहनत और कुछ लोगों के सहयोग से वे स्कूल चला लेंगे। पिता के गुजरने के बाद अब भानुप्रिया ने 1 फरवरी से ओडिशा शासन के आदेश अनुसार स्कूल लगाना शुरू कर दिया है। वे पिता के स्कूल में पढ़ा रही हैं।
लॉकडाउन के दौरान भी उनके स्कूल की टीचर्स बच्चों के मोहल्ले में जाकर उन्हें पढ़ा रही थी। भानुप्रिया का कहना है कि पेंशन व चाय की दुकान ना होने से किसी भी तरह आर्थिक मदद नहीं रही। अभी हर महीने 8 टीचर्स, ऑटो चालक व आया का करीब 40 हजार रुपए वेतन देना होता है। इसके लिए कुछ संस्थाएं व लोग मदद कर देते हैं। अभी स्कूल खुलने के बाद बच्चों को दोपहर का खाना नहीं मिल पा रहा है, इसके लिए प्रशासन से मांग की है। बेंगलुरू व पुणे से मुजगे अच्छे जॉब ऑफर आए लेकिन अब अब मैं इस स्कूल को समर्पित हूं। जितना बेहतर हो सकता है, इसके लिए करूंगी।
पहले मलेशिया फिर दिल्ली की नौकरी छोड़ पापा का साथ देने आए
भानुप्रिया ने बताया कि उन्होंने सिंगापुर से हॉस्पिटैलिटी की पढ़ाई की और मलेशिया में भी जॉब किया। इसके बाद दिल्ली में जॉब करने के साथ स्पेनिश लैंग्वेज की पढ़ाई की। 2019 मई में पापा को ब्रेन स्टोक हुआ, उनकी तबियत को देख मैं नौकरी छोड़कर उनकी देखरेख करने आ गई।