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छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में एक परिवार के 11 बहुएं जिन्होंने अपनी सास का मंदिर बनवाया, सोने के गहनों से किया श्रृंगार, रोज…

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छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में एक ऐसा भी परिवार है, जिनकी बहुओं को अपनी सास से इतना प्रेम था कि उनके देहांत के बाद उनकी यादों को संजोए रखने के लिए सास का मंदिर बनवा लिया। इतना ही नहीं वे रोज उनकी पूजा करने के साथ आरती भी उतारती हैं। माह में एक बार मंदिर के सामने बैठकर भजन-कीर्तन करतीं हैं। सास-बहुओं के बीच ऐसा प्रेम शायद ही आपने कहीं और देखा होगा।

बिलासपुर जिला मुख्यालय से 25 किलोमीटर दूर बिलासपुर-कोरबा मार्ग पर रतनपुर में यह मंदिर 2010 से बना है। रतनपुर में महामाया देवी का मंदिर विश्वप्रसिद्ध है। यहां पर रिटायर्ड शिक्षक शिवप्रसाद तंबोली 77 वर्ष का 39 सदस्यों वाला संयुक्त परिवार है। उनकी 11 बहुएं हैं। बहुओं की सास गीता देवी का 2010 में स्वर्गवास हो गया, वे जीवित थीं तो बहुओं से अगाध प्रेम करती थीं। उन्हें अपनी बेटियों की तरह स्नेह करती थीं। बहुओं को पूरी आजादी दे रखी थी।

गीता को भी ये संस्कार अपनी सास से मिले थे। उनके जमाने में सास-बहुओं के झगड़े चरम पर थे, पर वे अपनी बहुओं को एकता का पाठ पढ़ाती थीं। बहुओं को भी उनसे कभी शिकायत नहीं रही। गीता के पति शिव प्रसाद कहते हैं कि गीता के अच्छे संस्कार और धार्मिक सदाचार ने ही आज तक परिवार को जोड़कर रखा है। तंबोली परिवार को उनसे बिछडऩे का आज भी बहुत दुख है। उनका मानना है कि गीता देवी के प्रयासों से ही परिवार में सुख, समृद्धि और एकता है।

परिवार में कभी झगड़ा नहीं हुआ। हर काम सलाह से करते हैं। बहुओं ने सास की मूर्ति का सोने के गहनों से श्रृंगार किया है। गीता की तीन बहुएं हैं। इनमें बेटे संतोष की पत्नी ऊषा 51वर्ष, प्रकाश की पत्नी वर्षा 41 वर्ष और प्रमोद की पत्नी रजनी 37 वर्ष शामिल है। संयुक्त परिवार में गीता देवी के देवर केदार की पत्नी कलीबाई 65 वर्ष, कौशल की मीराबाई 31 वर्ष, पुरुषोत्तम की गिरिजा बाई 55 वर्ष और सुभाष की अंजनी 50 वर्ष भी हैं। बड़ी जेठानी गीता ने कभी उन्हें देवरानी नहीं माना, बल्कि बहनों की तरह ही दुलार किया।

सभी को मिलजुलकर साथ रहने की शिक्षा दी। इधर शिव प्रसाद ने बेटे और भाइयों में भेदभाव नहीं किया। रिटायर होने के बाद उन्हें सरकार से जो राशि मिली, उसे सभी को बांट दिया। पेंशन की रकम को घर खर्च में लगाते हैं। शिवप्रसाद आपस में पांच भाई हैं। शिवप्रसाद ही सबसे बड़े हैं।

दूसरे नंबर पर केदारनाथ तीसरे कौशलनाथ का निधन हो चुका है। बाकी मुन्ना व सुभाष भी व्यवसाय करते हैं। तीनों परिवार का जिम्मा वे खुद ही संभालते हैं। केदारनाथ के चार, कौशल के दो, पुरुषोत्तम के दो बेटे हैं। भाइयों की पत्नियों को मिलाकर 11 बहुएं तंबोली परिवार की आधार स्तंभ हैं। 14 बच्चों वाले इस परिवार के हर सदस्य को अपनी पसंद से कपड़े, ज्वैलरी आदि पहनने और भोजन की छूट है।

पढ़ी-लिखी हैं सभी बहुएं, रखती हैं हिसाब

तंबोली परिवार की सभी बहुएं पढ़ी-लिखी हैं। सभी पोस्ट ग्रेजुएट हैं। वे पुरुषों के कारोबार का हिसाब-किताब रखने में मदद करती हैं। शिव प्रसाद रिटायर होने के बाद पान दुकान चलाते हैं। तंबोली परिवार के पास होटल के अलावा दो किराना दुकान, दो पान दुकान और साबुन की फैक्टरी है। उनकी 20 एकड़ जमीन है, जिनमें खेती करते हैं। तंबोली परिवार की एक ही रसोई है। यहां बहुएं मिलकर खाना पकाती हैं।