राज्य के जनजातीय जिलों में प्रमुख तौर पर घरों में बनने वाली अंगूरी व चुली वाइन (शराब) को प्रदेश सरकार अंतर्राष्ट्रीय पहचान देगी। इसके लिए इस कारोबार से जुड़े लोगों के लिए वर्ष, 2020-21 की नई आबकारी नीति में लाइसैंस देने का प्रावधान किया जा रहा है। इससे सरकारी खजाने के लिए अधिक राजस्व जुटाने के साथ-साथ कारोबार से जुड़े लोगों को भी लाभ मिलेगा, साथ ही सरकार शिमला की तर्ज पर मंडी व सोलन में माइक्रो ब्रूरी खोलने की योजना पर भी काम कर रही है।
उल्लेखनीय है कि किन्नौर व लाहौल-स्पीति में कई ग्रामीण अंगूर व चुली से शराब बनाते हैं। क्षेत्र के लोग लाइसैंस न मिलने के कारण इसे सिर्फ निजी उपयोग के लिए बनाते हैं। अब सरकार की तरफ से ऐसे लोगों को लाइसैंस जारी करने से उनको लाभ मिलेगा। शराब के कारोबार से जुड़े कई लोग मानते हैं कि हिमाचल की अंगूरी व चुली वाइन फ्रांस की शैंपेन से बेहतर मानते हैं।
हालांकि इसको लाइसैंस देने से पहले सरकार को इसके परीक्षण की व्यवस्था करनी होगी ताकि इसकी गुणवत्ता को कायम रखा जा सके। इसके अलावा वर्तमान में शिमला में माइक्रो ब्रूरी खोलने की सरकार ने अनुमति दी है। अब इस प्रयोग के सफल रहने पर सोलन और मंडी में भी इसी तरह की ब्रूरी खोलने का लाइसैंस देने की योजना पर विचार किया जा रहा है।
1,625 करोड़ के मुकाबले 1,800 करोड़ का राजस्व आया
राज्य सरकार की तरफ से वर्ष 2019-2020 की आबकारी नीति के तहत 1,625 करोड़ रुपए राजस्व जुटाने का लक्ष्य रखा गया था। इससे पहले गत वित्त वर्ष में यह लक्ष्य 1,425 करोड़ रुपए था। हालांकि मौजूदा वित्त वर्ष में 1,625 करोड़ रुपए के मुकाबले 1,800 करोड़ रुपए सरकारी खजाने के लिए जुटा लिए गए हैं, जिसकी मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने भी सराहना की है। अब आबकारी नीति में नए प्रयोग से सरकारी खजाने में और अधिक राजस्व को जुटाया जा सकता है।
राजस्व जुटाने के लिए नए विकल्पों पर विचार : कुंडू
प्रधान सचिव संजय कुंडू का कहना है कि आबकारी शुल्क से सरकारी खजाने के लिए राजस्व जुटाने को लेकर नए विकल्पों पर विचार किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि जी.एस.टी. के बाद राजस्व जुटाने का यह महत्वपूर्ण माध्यम है। ऐसे में माइक्रो ब्रूरी खोलने के अलावा अंगूरी व चुली वाइन की बिक्री के लाइसैंस देने की योजना पर विचार किया जा रहा है।