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आधी रात को पास हुआ नागरिकता संशोधन बिल, मुसलमानों को मिला ये दर्जा…

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नागरिकता (Citizenship) एक विशेष सामाजिक, राजनैतिक, राष्ट्रीय, या मानव संसाधन समुदाय का एक नागरिक होने की अवस्था है।
सामाजिक अनुबंध के सिद्धांत के तहत नागरिकता की अवस्था में अधिकार और उत्तरदायित्व दोनों शामिल होते हैं। “सक्रिय नागरिकता” का दर्शन अर्थात् नागरिकों को सभी नागरिकों के जीवन में सुधार करने के लिए आर्थिक सहभागिता, सार्वजनिक, स्वयंसेवी कार्य और इसी प्रकार के प्रयासों के माध्यम से अपने समुदाय को बेहतर बनाने की दिशा में कार्य करना चाहिए. इस दिशा में, कुछ देशों में स्कूल नागरिकता शिक्षा उपलब्ध करते हैं। वर्जीनिया लिएरी (1999) के द्वारा नागरिकता को “अधिकारों के एक समुच्चय-के रूप में परिभाषित किया गया है- उनके अनुसार नागरिकता की अवस्था में प्राथमिक रूप से सामुदायिक जीवन में राजनैतिक भागीदारी, मतदान का अधिकार, समुदाय से विशेष संरक्षण प्राप्त करने का अधिकार और दायित्व शामिल हैं
9 दिसंबर की आधी रात को लोकसभा से पास हुए नागरिकता संशोधन बिल (CAB) मुसलमानो के साथ भेदभाव करता है, यह वो सवाल है जिस पर लोकसभा में जम कर बहस हुई. इस सवाल पर सरकार को सुप्रीम कोर्ट में भी जवाब देना पड़ सकता है. इस क़ानून के प्रावधान के अनुसार पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़गानिस्तान से आने वाले शर्णार्थियों को धर्म के आधार पर अलग अलग देखा गया है, यह प्रावधान संविधान के अनुच्थेद 14 का उल्लंघन करता है. अनुच्छेद 14 सभी नागरिकों को बराबरी का हक़ देता है.
सरकार ने इस मामले में तर्क दिया है कि जिन अल्पसंख्यकों के लिए यह क़ानून लाया जा रहा है वो पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़गानिस्तान में सताए जा रहे हैं. ये तीनों देश मुस्लिम बुहसंख्यक देश हैं. हांलाकि सरकार ने इस बात का कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया कि बर्मा में सताए जा रहे हिंदूओ, श्रीलंका में सताए जा रहे हिंदू तमिल या इसाई के बारे में प्रावधान क्यों नहीं किया गया. इसके अलावा पाकिस्तान में शिया मुसलमानों के साथ भेदभाव की घटनाएं भी आम हैं. फिर उनके लिए इस क़ानून में प्रावधान क्यों नहीं किया जा रहा है.
गृहमंत्री अमित शाह ने नागरिकता संशोधन बिल का बचाव करते हुए कहा कि 1947 में देश का बंटवारा ही धर्म के आधार पर किया गया था. जबकि सच्चाई यह है कि भारत धर्म के आधार पर नहीं बना था. पाकिस्तान धर्म के आधार पर बना था. उस समय मुस्लिम लीग और कुछ दक्षिणपंथी हिंदू संगठन टू नेशन थ्योरी (Two Nation Theory) की वकालत कर रहे थे.
भारत के उस समय के सभी नेता और संविधान निर्माताओं ने एक धर्म निरपेक्ष भारत की कल्पना की थी. वैसे भी अफ़गानिस्तान तो भारत के बंटवारे से पहले उसका हिस्सा था ही नहीं तो यह तर्क बेहद कमज़ोर है.
इस क़ानून के प्रावधानों से मौटे तौर पर पूर्वोत्तर राज्यों को बाहर रखा गया है. इन राज्यों में नागरिकता संशोधन विधेयक का हिंसक विरोध हुआ था. छठी अनुसूचि के क्षेत्रों और जिन राज्यों में इनरलाईन परमिट का प्रावधान है उन राज्यों को इस क़ानून के दायरे से बाहर रखा गया है.
संविधान की छठी अनुसूचि पूर्वोत्तर राज्यों के आदिवासी इलाक़ों में प्रशासन के विशेष प्रावधान करती है. इस लिाहज़ से मिज़ोरम, मेघालय, त्रिपुरा के आदिवासी इलाके और असम के कुछ इलाक़े इस क़ानून के दायरे से बाहर रहेंगे.
इस बिल पर हुई बहस के दौरान अमित शाह ने बार बार नॉर्थइस्ट के राज्यों को आश्वासन दिया कि वहां यह क़ानून लागू नहीं होगा.