रामलला के वकील सीएस वैद्यनाथन ने इस पर ऐतराज जाहिर करते कहा- ये ग़लत, बेबुनियाद बात है.
विवादित इमारत पर हमेशा से मुसलमानों का कब्ज़ा बता रहे राजीव धवन से सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया कि जब बाहरी हिस्से में हिंदू राम चबूतरा, सीता रसोई बना कर पूजा करते थे फिर आपका पूरा कब्ज़ा कैसे हुआ? राजीव धवन ने कहा कि सारे सवाल हमसे किए जा रहे हैं और दूसरे पक्ष से कोर्ट सवाल नहीं करता. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह टिप्पणी अवांछित है.
इस बीच पूजा के अधिकार की अर्ज़ी देने वाले सुब्रमण्यम स्वामी को आगे बैठा देख मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने विरोध किया. कहा- ये जगह वकीलों की है और यहां किसी और को अधिकार नहीं है. अपने केस की खुद पैरवी करने वाले स्वामी आगे बैठते रहे हैं. राफेल केस में अरुण शौरी आगे बैठे थे.
राजीव धवन की दलीलें
पुरातत्व एक विज्ञान है. ये कोई विचार नहीं है. पुरातत्व विभाग का जो नोट सबूत के तौर पर कोर्ट ने स्वीकार किया, उसे कोर्ट द्वारा परखा जाना और ASI द्वारा उसकी सत्यता साबित किया जाना जरूरी है. इसे मुस्लिम पक्षकारों ने नकारा है. ब्रिटिश सरकार ने मस्जिद के रखरखाव के लिए 1854 से ग्रांट देना शुरू किया था. ये हमारे मालिकाना हक को दर्शाता है. यहां तक कि 1854 से 1989 तक किसी भी हिन्दू पक्षकार ने विवादित जमीन पर अपने मालिकाना हक का दावा कोर्ट में नहीं किया.
मुख्य मांग यह थी कि मस्जिद का उपयोग नहीं किया जाए. लेकिन मस्जिद पर अवैध कब्जा किया गया और उसके बावजूद उस पर कोई कार्रवाई नहीं की गई. धवन ने अवैध कब्जे पर सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला दिया. परंपरा और आस्था कोई दिमाग का खेल नहीं है. इन्हें अपने मुताबिक नहीं ढाला जा सकता है.
जस्टिस चंद्रचूड़ के सवाल पर जवाब देते हुए धवन ने कहा कि 1886 के रिकॉर्ड यह साफ करते हैं कि भूमि किसकी है. प्वाइंट ये है कि इसमें हमारा अधिकार है. जब हिन्दुओं की ओर से अधिकार का सवाल 1886 में उठाया गया तब मजिस्ट्रेट ने वह सिविल सूट खारिज कर दिया. लेकिन रेस ज्यूडी काटा होने के बाद फिर अवैध कब्जे के बाद दावा किया गया.
धवन ने कहा कि हिन्दू पक्ष के पास कोई मालिकाना हक का दस्तावेज़ नहीं है और ना ही था. यह वक्फ की संपत्ति अंग्रेजों के समय से है और हिन्दुओं ने जबरन अवैध कब्जा किया. धवन ने कहा कि क्यों उन्हें पूजा का और सेवादार होने का अधिकार दिया गया जबकि उनके पास मालिकाना हक नहीं था.
जस्टिस DY चन्द्रचूड़ ने राजीव धवन से हिंदुओं के बाहरी अहाते पर कब्ज़े के बारे में पूछा. जस्टिस DY चन्द्रचूड़ ने कहा कि 1858 के बाद के दस्तावेजों से पता चलता है कि राम चबूतरा की स्थापना की गई थी, उनके पास अधिकार था. राजीव धवन ने कहा कि दिलचस्प बात ये है कि इस केस की सुनवाई के दौरान सभी सवाल हमसे ही किये जाते है..कभी हिन्दू पक्ष से सवाल नहीं किया जाता, सुनवाई के दौरान यह बहुत विचित्र बात हुई है…
मुस्लिम पक्ष के वकील धवन ने कहा कि विवादित ज़मीन पर लगातार हमारा कब्जा रहा है. हिंदू पक्ष ने बहुत देर से दावा किया. 1989 से पहले हिंदू पक्ष ने कभी ज़मीन पर मालिकाना दावा पेश नहीं किया. 1986 में राम चबूतरे पर मंदिर बनाने की महंत धर्मदास की मांग को फैज़ाबाद कोर्ट खारिज कर चुका है..
जस्टिस SA बोबडे और जस्टिस DY चन्द्रचूड़ ने कहा कि क्या मुसलमानों का एकमात्र अधिकार होने का दावा करना उनकी दलील को हल्का नहीं करेगा.. जबकि हिंदुओं को बाहरी आंगन में प्रवेश करने का अधिकार था…धवन ने कहा कि इससे उन्हें अधिकार तो नहीं मिलता..
जस्टिस DY चन्द्रचूड़ ने कहा कि कई दस्तावेज़ है जो दिखाते है कि वह बाहरी आंगन में रहते थे.
धवन ने कहा कि यह दिखाने के लिए उनके पास कोई सबूत नहीं है कि हिंदू बाबरी मस्जिद की विवादित भूमि का मालिक है.. भूमि के उपयोग के अलावा कोई अधिकार हिंदुओं को नहीं दिया गया था.. उन्हें पूर्वी दरवाजे में प्रवेश करने और प्रार्थना करने का अधिकार दिया गया था.. और इससे ज्यादा कुछ नहीं था…
धवन ने कहा कि एक भी ऐसा दस्तवेज़ नहीं जो साबित करता हो कि हिंदुओं का वहां पर पहले कब्ज़ा रहा हो… हमने 6 दिसंबर 1992 को ढांचा गिराए जाने के बाद अपनी मांग बदली और हमारी यही मांग है कि हमें 5 दिसंबर 1992 की स्थिति में जिस तरह का ढ़ांचा था उसी स्थिति में हमें मस्जिद सौंपी जाय…
इससे पहले जब सोमवार को सुनवाई शुरू हुई तो सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील राजीव धवन ने कोर्ट से कहा कि आज जिरह पूरी करना संभव नहीं हो पायेगा. उन्होंने आज के बाद डेढ़ धंटे का और वक्त अपनी जिरह पूरी करने के लिए मांगा. कोर्ट ने कहा कि आज ही अपनी बात पूरी करने की कोशिश कीजिए. हालांकि तय तय शेड्यूल के मुताबिक सोमवार को मुस्लिम पक्ष के पास अपनी बात रखने का अंतिम मौका है. मंगलवार और बुधवार को हिंदू पक्ष को जवाब देने का आखिरी मौका मिलेगा और 17 अक्टूबर को सुनवाई पूरी होने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया जाएगा.
इस बीच अयोध्या में 17 अक्टूबर तक सुनवाई पूरी होने की संभावना के मद्देनजर अयोध्या का जिला प्रशासन अलर्ट हो गया है. 17 नवंबर से पहले संभावित फैसले को लेकर दीपोत्सव, चेहल्लुम व कार्तिक मेले को लेकर 2 महीने तक अयोध्या जनपद में धारा 144 लागू रहेगी. जिलाधिकारी अनुज कुमार झा ने जनपद में निषेधाज्ञा लगा दी है.
37वें दिन की सुनवाई
पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट में मुस्लिम पक्ष की ओर से राजीव धवन ने कहा था कि वह इनटरवीनर, मठ, लिमिटेशन पर दलीलें देंगे. उन्होंने कहा था कि न्यायिक व्यक्ति का मामला उठाकर हिन्दू मुख्य मामले से भटकाना चाह रहे हैं. हिन्दू पक्ष का कहना था कि जन्म स्थान अपने आप में न्यायिक व्यक्ति होता है. जस्टिस बोबड़े ने राजीव धवन से सवाल करते हुए पूछा था कि क्या इस्लामिक शिक्षाओं के मुताबिक सिर्फ अल्लाह ही पवित्र या दिव्य है, सिर्फ उनकी ही इबादत होती है और किसी की नहीं? ऐसे में बाकी वस्तु व जगह क्या पवित्र मानी जा सकती है. क्या मस्जिद (Mosque) की अपने आप में दिव्यता को लेकर किसी इस्लामिक विद्वान ने कुछ कहा है?
राजीव धवन ने जवाब दिया था कि एक मस्जिद हमेशा पवित्र और दिव्य है. यह वह जगह है जहां कोई अपने ख़ुदा की इबादत करता है. यहां पांचों वक़्त नमाज पढ़ी जाती है. जिस चीज़ के जरिए खुदा की इबादत हो, वो अपने आप में हर चीज़ पवित्र है. धवन ने कहा था कि हिंदुओं ने हमारी मस्जिद को गिरा दिया और हिंदुओं ने उलटा कहा कि उनको प्रताड़ित किया गया.
धवन ने निर्मोही अखाड़ा की याचिका का अंश पढ़ते हुए कहा कि याचिका में कहा गया था कि वहां पर तीन गुम्बद की कोई मस्जिद नहीं थी. भारतवर्ष में इस्लामिक कानून लागू नहीं होता. यह भी कहा गया कि गुम्बद वैदिक समयकाल से मिलता-जुलता है और बाबर ने नहीं मीर बाकी ने मन्दिर को गिराया. उसने ऐसा इसलिए किया क्योंकि वह एक फकीर से बहुत प्रभावित था.राजीव धवन ने कहा था कि हिंदू पक्ष मुस्लिमों पर सांप्रदायिक हिंसा का आरोप लगाता रहा है. वो मुस्लिम बादशाहों के हमले व विध्वंस की बात करते हैं लेकिन 6 दिसंबर 1992 को क्या हुआ, जब बाबरी मस्जिद गिरा दी गई. सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने के लिए ज़िम्मेदार वो भी हैं और ये कोई मुगलकाल की बात तो है नहीं.