राम भगवान चाहते, तो इसका विरोध कर सकते थे, किंतु उन्होंने ऐसा नहीं किया। इसीलिए तो कहा जाता है, कि रघुकुल रीत सदा चली आई प्राण जाए पर वचन न जाए।
अब सोचने वाली बात यह है, कि कैकयी माता ने राम भगवान के लिए 14 वर्ष का ही वनवास क्यों मांगा? तो इसका उत्तर यह है कि इसके पीछे प्रशासनिक कारण माना जाता है। दरअसल त्रेता युग में प्रशासनिक नियम अनुसार अगर कोई राजा अपनी राजगद्दी 14 साल के लिए छोड़ देता है, तो उसे बाद में राजा नहीं बनाया जाता है। लेकिन अपने भाई से असीम प्रेम करने वाले भरत ने ऐसा नहीं होने दिया।
उन्होंने खुद राजगद्दी त्याग दिया और वन में अपना जीवन व्यतीत करने लगे, बाद में जब श्री राम अपना वनवास पूरा करके आए, तो उन्होंने उन्हें राजा बना दिया।
कहां जाता है, कि भगवान श्री राम को वनवास भेजने में असल में देवताओं का हाथ था, क्योंकि अगर वह वनवास नहीं जाते तो रावण का वध कैसे करते? क्योंकि उनके जन्म का उद्देश्य ही था रावण वध।