मीडिया में रोज आत्महत्या की खबरें आती थीं। एक संवेदनशील अफसर को इससे तकलीफ हुई। उनके जेहन में एक सवाल आया-जीवन प्रकृति की अनुपम देन है। इसे खत्म करने का अधिकार न तो कानून देता है और न ही प्रकृति। फिर भी न जाने लोग क्यों खुद को खत्म कर लेते हैं? कारण जानने और इसे रोकने की ठानी। फिर शुरू हुआ नवजीवन कार्यक्रम।
आत्महत्या के बढ़ते आंकड़ों को रोकने और जनजागरूकता से नवजीवन का संकल्प कराने की ठानी है महासमुंद जिले के कलेक्टर सुनील कुमार जैन ने। उन्हें जब पता चला कि भारत में आत्महत्या के मामले में छत्तीसगढ़ चौथे नंबर पर है और छत्तीसगढ़ के 28 जिलों में खुदकुशी के मामले में महासमुंद जिला अव्वल है। तब उन्होंने एक नई शुरूआत करने की ठानी। महासमुंद जिले में आत्महत्या की रोकथाम के लिए नवपहल करते हुए नवजीवन कार्यक्रम का जून-2019 में आगाज हुआ। इससे राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम को जोड़कर जनजागरूकता से आत्मघाती कदम को रोकने हर संभव प्रयास किया जा रहा है।
ढाई साल में सात सौ ने दी जान
2017 से लेकर मई 2019 तक ढाई साल में करीब सात सौ आत्महत्याएं अकेले महासमुंद जिले में हुई है। आंकड़ा चौकाने वाला था। इनमें मरने वाले सर्वाधिक सवा दो सौ लोग तो 21 से 30 साल के युवा थे। तब तय किया गया कि युवाओं की जान बचाने और मानसिक परेशानी, अवसाद को दूर करने अभियान चलाया जाए। बीते तीन महीने में ढाई हजार से अधिक कार्यशाला और प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया जा चुका है। इसमें तनाव प्रबंधन के गुर सीखाना, ग्राम पंचायत स्तर पर नवजीवन केंद्र की स्थापना कर वहां मनोरंजन के पर्याप्त साधन और खेल सामग्री की व्यवस्था, विशेषज्ञ चिकित्सों द्वारा निःशुल्क परामर्श से निराशा के भाव को खत्म करने और गांव स्तर पर सखा-सखी, नवजीवन प्रेरक को चिन्हांकित करके उनके माध्यम से लोगों को हर परिस्थिति में जीवन जीने के लिए प्रेरित किया जा रहा है।
570 नवजीवन केंद्रों की स्थापना
महासमुंद जिले में जनसामान्य को अवसाद से बचाने और मनोरंजन के माध्यम से आत्मघाती कदमों को रोकने के लिए 569 नवजीवन केंद्र अब तक स्थापित किए जा चुके हैं। इन केंद्रों में आउटडोर और इनडोर खेल सामग्री के अलावा प्रेरणादायक और ज्ञानवर्धक पुस्तकें उपलब्ध कराई जा रही है। जिससे कि हर गांव-शहर स्तर पर कोई भी अवसादग्रस्त न होकर स्वस्थ मनोरंजन कर सकें।
अब हर मौत की होती है गहन जांच
जहर पीने, फांसी लगाने, आग लगाकर जीवनलीला समाप्त करने जैसे आत्मघाती कदमों की महासमुंद जिले में विशेष जांच की जा रही है। पुलिस की रूटीन जांच के अतिरिक्त तहसीलदार और डाक्टरों की टीम संबंधित व्यक्ति के घर पहुंचकर यह पड़ताल करती है कि आखिर मरने वाले ने आत्मघाती कदम क्यों उठाया? इस तरह खुदकुशी के मामलों को रोकने के लिए महासमुंद जिले में किया जा रहा यह प्रयोग अब पूरे प्रदेश के लिए माडल बन गया है। इसका अनुशरण अन्य जिलों में होने लगा है।
आखिर लोग क्यों करते हैं आत्महत्या ?
अब तक के अध्ययन में तनाव और अवसाद ही आत्महत्या के प्रमुख कारणों में चिन्हांकित किया गया है। छोटी-बड़ी समस्याएं सभी के जीवन में है। इन समस्याओं का समाधान नहीं ढूंढ पाने की वजह से लोग जान दे देते हैं। आत्महत्या को रोकने की दिशा में नवजीवन सखा-सखी और प्रेरक तनावग्रस्त लोगों को चिन्हांकित करने और उन्हें समुचित उपचार के लिए प्रेरित कर रहे हैं। एकाकीपन, आत्महत्या के बारे में अक्सर बातचीत करना, नकारात्मक दृष्टिकोंण, चिड़चिड़ापन और आक्रामकता, खुद से नफरत करना, भविष्य के लिए कोई उम्मीद नहीं होना, गुमशुम रहना, घातक वस्तुओं की तलाश करना, आत्महत्या करने के तरीके ढूंढना, आत्मविनाशकारी व्यवहार, मरने के पूर्व परिजनों के लिए व्यवस्था करना, अप्रत्याशित रूप से अलविदा कहना आदि लक्षण दिखने पर सखी-सखा ऐसे लोगों को चिन्हांकित कर जिला अस्पताल तक उपचार के लिए पहुंचाने का प्रबंध कर रहे हैं। जिससे कि आत्महत्या के दर में कमी आ सके।