अंतागढ़ कांड में सुर्खियों में आए मंतूराम पवार ने एक बार फिर भाजपा नेताओं पर सवालों की बौछार की है। मंतूराम ने पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह पर आरोप लगाया कि उपचुनाव से नाम वापस लेने के बाद उनका सिर्फ इस्तेमाल किया गया। भाजपा ने न तो कोई पद दिया, न ही उनको कोई पैसा मिला। मंतूराम ने कहा कि डॉ रमन सिंह उपचुनाव के बाद भी चार साल सरकार में थे, लेकिन उन्होंने निगम-मंडल से लेकर विधानसभा और लोकसभा चुनाव में कोई जिम्मेदारी नहीं दी। मैं विधानसभा चुनाव में विजेता उम्मीदवार था, लेकिन पार्टी ने टिकट तक देना उचित नहीं समझा। जब मैं पार्टी में शामिल हुआ था, तो बड़े-बड़े वादे किए गए थे। चुनाव में मेरा इस्तेमाल करके मुझे किनारे कर दिया गया। मंतूराम ने भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व से मांग की कि वे पूरे मामले की जांच करें। क्या अंतागढ़ कांड के कारण ही पार्टी को 90 फीसदी सीट पर हार का सामना करना पड़ा। इसके लिए कौन-कौन से नेता जिम्मेदार हैं, इसकी भी समीक्षा करनी चाहिए।
मंतूराम ने कांग्रेस छोड़ने के सवाल पर कहा कि वे भाजपा के कार्यकर्ता हैं। पार्टी कोई जवाबदेही देती है, तो उसे निभाएंगे। उनका कांग्रेस से कोई संपर्क नहीं है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से भी कोई मुलाकात नहीं हुई है, न की कांग्रेस प्रवेश को लेकर किसी ने संपर्क किया है। मंतूराम ने एक बार फिर दोहराया कि अगर अंतागढ़ कांड में साढ़े सात करोड़ की डील हुई है, तो उसकी भी जांच होनी चाहिए। प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है। सरकार को उन नौ सदस्यों से भी पूछताछ करनी चाहिए, जिन लोगों ने नामांकन वापस लिया। उस समय कांकेर के एसपी रहे आरएन दास से भी पूछताछ होनी चाहिए कि उन्होंने किसके इशारे पर मुझे धमकाया। एसपी को कौन निर्देश दे रहा था कि वो बोलें कि नामांकन वापस नहीं लेने पर झीरम जैसी घटना हो सकती है।
चारों तरफ से घिरते जा रहे हैं डॉ रमन
मंतूराम ने कहा कि डॉ रमन सिंह चारों तरफ से घिरते जा रहे हैं। उनके बेटे और दामाद पर अलग से मामला चल रहा है। नान घोटाले में भी उनकी भूमिका नजर आ रही है। इस पर केंद्रीय नेतृत्व को देखना चाहिए और विचार करना चाहिए। मंतूराम ने कहा कि अंतागढ़ उपचुनाव के बाद की परिस्थितियों की भी केंद्रीय संगठन को समीक्षा करनी चाहिए।
21 वर्ष में कांग्रेस ने पांच बार दिया टिकट, एक बार बने विधायक
1987 में शिक्षक के रुप में कैरियर की शुरुआत करने वाले मंगतूराम ने 1993 में कांग्रेस की सदस्यता ली थी। 2014 में भाजपा प्रवेश करने से पहले तक कांग्रेस ने 21 वर्षों में उन्हें पांच बार विधानसभा का टिकट दिया। इसमें से एक बार जीते और तीन बार हारे। पांचवीं बार उन्होंने मैदान ही छोड़ दिया। भाजपा प्रदेवश किए उन्हें करीब पांच वर्ष हो गए हैं, लेकिन पार्टी में अब भी केवल प्राथमिक सदस्य हैं।
कांग्रेस ने उनके पार्टी में आने के पांच वर्ष बाद 1998 में हुए विधानसभा चुनाव में नारायणपुर सीट से टिकट दिया। मंगतूराम यह चुनाव जीत गए। 2003 में फिर कांग्रेस ने उन्हें नारायणपुर सीट से ही प्रत्याशी बनाया, लेकिन भाजपा के विक्रम उसेंडी से हार गए। 2008 के विधानसभा चुनाव से अंतागढ़ सीट अस्तित्व में आई। कांग्रेस ने फिर टिकट दिया, इस बार भी वे हार गए। 2013 के चुनाव में फिर पार्टी ने अंतागढ़ सीट से ही मंगतूराम पर दांव खेला लेकिन फिर वे इस बार भी हार गए। इसके बावजूद 2014 के उपचुनाव में कांग्रेस ने मंगतूराम पर भरोसा जताया। इस बार वे मैदान ही छोड़कर बाहर हो गए।