छत्तीसगढ़ में बस्तर से लेकर सरगुजा तक सरकार ने कृषि साख सहकारी समितियों को भंग करके नए सिरे से पुनर्गठन करने की घोषणा की। सरकार ने बकायदा अधिसूचना जारी करके नए सिरे से पुनर्गठन का आदेश जारी किया। पिछले 15 साल से भाजपा की सरकार होने के कारण प्रदेश की अधिकांश सहकारी समितियों में भाजपा का कब्जा है। कांग्रेस सरकार आने के बाद इसे नए सिरे से गठित करने का काम शुरू किया गया है। सरकार के कदम को भाजपा ने अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक करार दिया है।
भाजपा सहकारिता प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष अशोक बजाज ने कहा कि वर्ष 2011 में डॉ. मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्रित्व कार्यकाल में संविधान के 97 वें संविधान संशोधन के द्वारा सहकारी समितियों के बोर्ड का कार्यकाल पांच वर्ष निर्धारित किया है। लेकिन दुख की बात है कि प्रदेश की कांग्रेस सरकार यूपीए सरकार के कार्यकाल के समय किए प्रावधान को नहीं मान रही है।
अधिकांश समितियों का निर्वाचन जुलाई 2017 में हुआ है। उनका कार्यकाल अभी तीन वर्ष बाकी है। जबकि कतिपय समितियों का निर्वाचन अभी छह माह के अंदर हुआ है। बजाज ने कहा कि राज्य सरकार संविधान और अधिनियम के विरूद्ध कोई नियम नहीं बना सकती और ना ही योजना लागू कर सकती है।
नियमों के हवाले से बताया गलत
बजाज ने कहा कि सहकारी सोसाइटी अधिनियम 1960 की धारा 16ग में सरकार को केवल पुनर्गठन की स्कीम बनाने की शक्ति प्रदान की गई है। लेकिन राज्य शासन ने 16ग को गलत ढंग से परिभाषित कर निर्वाचित संचालन मंडल को भंग करने का प्रावधान कर लिया है। सहकारी समितियां स्वेच्छिक एवं स्वायत्त संस्थायें हैं, जिसमें लोकतांत्रिक व्यवस्था एवं प्रावधानों के तहत निर्वाचित संचालन मंडलों को भंग करना पूर्णत: अलोकतांत्रिक कदम है।