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सरदार पटेल कश्मीर, पाकिस्तान को देने को राज़ी थे..

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2018 में कश्मीर के भारत में विलय पर सरदार पटेल के विचारों के बारे में भारत प्रशासित कश्मीर के कांग्रेसी नेता सैफ़ुद्दीन सोज़ की किताब में की गई एक टिप्पणी से विवाद पैदा हुआ था। सोज़ का कहना था कि अगर पाकिस्तान भारत को हैदराबाद देने के लिए तैयार होता, तब सरदार पटेल को भी पाकिस्तान को कश्मीर देने में कोई दिक़्क़त नहीं होती।

सोज़ ने ये दावा अपनी किताब ‘कश्मीर : ग्लिम्प्स ऑफ़ हिस्ट्री एंड द स्टोरी ऑफ़ स्ट्रगल’ में किया जिसमें बंटवारे की बहुत सी घटनाओं का उल्लेख किया गया है। लेकिन क्या सरदार पटेल का वास्तव में कश्मीर पाकिस्तान को देने का विचार था?

क्या सोज़ के दावे में कोई सच्चाई है? : सोज़ ने अपनी किताब में लिखा कि पाकिस्तान के ‘कश्मीर ऑपरेशन’ के इंचार्ज सरदार हयात ख़ान को लॉर्ड माउंटबेटन ने सरदार का प्रस्ताव पेश किया। प्रस्ताव के अनुसार, सरदार पटेल की शर्त थी कि अगर पाकिस्तान हैदराबाद दक्कन को छोड़ने के लिए तैयार है तो भारत भी कश्मीर पाकिस्तान को देने के लिए तैयार है। (पेज 199, कश्मीर: ग्लिम्प्स ऑफ़ हिस्ट्री एंड द स्टोरी ऑफ़ स्ट्रगल)

हयात ने इस संदेश को पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाक़त अली ख़ान तक पहुंचाया। तब प्रधानमंत्री लियाक़त अली ख़ान ने कहा, “मैं पागल नहीं हूं कि कश्मीर और उसके पत्थरों के लिए एक ऐसे क्षेत्र (हैदराबाद) को जाने दूं जो पंजाब से भी ज़्यादा बड़ा है।”

सरदार कश्मीर देने को राज़ी थे : सोज़ ने अपनी किताब में कश्मीर और इसके इतिहास के विशेषज्ञ एजी नूरानी के एक लेख का भी ज़िक्र किया। इस लेख का नाम ‘अ टेल ऑफ़ टू स्टोरीज़’ है जिसका ज़िक्र करते हुए लिखा गया है: 1972 में एक आदिवासी पंचायत में पाकिस्तान के राष्ट्रपति ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो ने कहा था कि सरदार जूनागढ़ और हैदराबाद के बदले में कश्मीर देने को तैयार थे। (पेज 199, कश्मीर: ग्लिम्प्स ऑफ़ हिस्ट्री एंड द स्टोरी ऑफ़ स्ट्रगल)

भारत के पूर्व गृह सचिव और सरदार के क़रीबी सहयोगी रहे वीपी मेनन ने भी कहा था कि शुरुआत में सरदार कश्मीर को पाकिस्तान देने को राज़ी थे। मेनन अपनी किताब ‘इंटिग्रेशन ऑफ़ द इंडियन स्टेट’ में लिखते हैं, तीन जून 1947 को रियासतों को यह विकल्प दिया गया था कि वह चाहें तो पाकिस्तान के साथ विलय कर सकते हैं या भारत के साथ।

कश्मीर एक ऐसा मुस्लिम बहुल प्रांत था जिस पर हिंदू राजा हरि सिंह का शासन था। साफ़तौर पर हरि सिंह के लिए किसी को चुनना आसान नहीं था। इस मामले को सुलझाने के लिए लॉर्ड माउंटबेटन ने महाराजा हरि सिंह के साथ चार दिन बिताए थे। लॉर्ड माउंटबेटन ने महाराजा से कहा था कि सरदार पाकिस्तान के साथ जाने के कश्मीर के फ़ैसले का विरोध नहीं करेंगे।