देश के विभाजन के वक्त भारत के साथ रहने का फैसला करने वाले राजवाड़े के ‘राजा’ द्वारा घोषित की गई निजी संपत्तियों का हकदार उसके तमाम वारिश होंगे न कि सिर्फ वह, जिसने गद्दी संभाली हो, यह सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला है. सच कहा जाए तो सुप्रीम कोर्ट का 47 साल बाद ऐतिहासिक फैसला आया है.
कोर्ट ने कहा कि ऐसे राजवाड़े के राजाओं की निजी संपत्तियां की हिस्सेदारी पर्सनल लॉ के तहत होंगी.
कोर्ट ने कहा,’ यह ऐसी ‘गद्दी है जिसका न तो कई साम्राज्य है और न ही उसकी कोई प्रजा है.कोर्ट के मुताबिक विलय के बाद इन राजवाड़ों के ‘राजा’ राजा नहीं रहे, लिहाजा उनकी निजी संपत्तियां उनके तमाम वारिशों के बीच साझा होंगी.’
सुप्रीम कोर्ट ने कही ये बात सुप्रीम कोर्ट ने कहा है, ‘भारत में विलय होने का करार करने वाले राजवाड़े के राजाओं की संप्रभूता नहीं है. उनकी कोई सर्वोच्चता नहीं होती. निजी संपत्तियों के अलावा उनकी कोई भूमि नहीं है. उसकी कोई प्रजा नहीं है और वे सिर्फ नाम के राजा हैं.
साथ ही कोर्ट ने कहा कि ये राजा, सिर्फ नाम के राजा हैं. ये राजा या महाराजा बिना किसी साम्राज्य के हैं और न ही उनकी कोई प्रजा है. सुप्रीम कोर्ट ने यह व्यवस्था रामपुर के तत्कालीन ‘राजा’ नवाब राजा अली खान की निजी संपत्तियों उसके वारिशों के बीच बंटवारा करते हुए दी है. कोर्ट ने कहा है कि उनकी संपत्तियों का बंटवारा पर्सनल लॉ के तहत होगा.
कोर्ट ने कहा है कि नवाब राजा अली खान की संपत्तियों का हकदार उनके तमाम वारिश होंगे. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के उस आदेश को बदल दिया है जिसमें कहा गया कि नवाब राजा अली खान की संपत्तियों पर उसका अधिकार है, जिसे उनकी मौत के बाद गद्दी सौंपी गई थी. नवाब राजा अली खान की 1966 में मृत्यु हो गई थी. उन्होंने कोई वसीहतनामा नहीं बनाया था.
बाद में उनके बड़े बेटे नवाब सैयद मुर्तजा अली खान को राजवाड़े की ‘गद्दी’ सौंपी गई थी. सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद नवाब राजा अली खान की संपत्तियों पर उसके तमाम वारिशों का हक होगा.