यहां के अखबारों में एक खबर बड़े जोरों से छपी है कि भिंड-मुरैना में सिंथेटिक दूध के कई कारखानों पर छापे मारे गए हैं. राजस्थान और उ.प्र. के पड़ोसी प्रांतों के सीमांतों पर भी नकली दूध की ये फैक्टरियां चल रही हैं. इस मिलावटी दूध के साथ-साथ घी, मक्खन, पनीर और मावे में भी मिलावट की जाती है. दिल्ली, अलवर तथा देश के कई अन्य शहरों से भी इस तरह की खबरें आती रही हैं. यह मिलावट सिर्फ दूध में ही नहीं होती. फलों को चमकदार बनाने के लिए उन पर रंग-रोगन भी चढ़ाया जाता है और सब्जियों को वजनदार बनाने के लिए उन्हें तरह-तरह की दवाइयों के इंजेक्शन भी दिए जाते हैं. यह मिलावट जानलेवा होती है.
दूध में पानी मिलाने की बात हम बचपन से सुनते आए हैं, लेकिन आजकल मिलावट में जहरीले रसायनों का भी इस्तेमाल किया जाता है. इसीलिए देश में लाखों लोग अकारण ही बीमार पड़ जाते हैं और कई बार जान भी गंवा बैठते हैं. अभी मिलावट करने वाले को पकड़ा जाए तो उसे ज्यादा से ज्यादा तीन महीने की सजा और उस पर एक लाख रु. जुर्माना होता है. कौन डरेगा इस तरह के अपराध करने से? मोदी सरकार को चाहिए था कि मिलावट-विरोधी विधेयक वह संसद की पहली बैठक में ही लाती और ऐसा विधेयक कि उसकी खबर पढ़ते ही मिलावटखोरों की हड्डियों में कंपकंपी दौड़ जाती. मिलावटखोरों को कम से कम 10 साल की सजा हो और उनसे 10 लाख रु. जुर्माना वसूलना चाहिए.
खतरनाक मिलावटखोरों को उम्रकैद और फांसी की सजा तो दी ही जानी चाहिए, उनका कारखाना और सारी चल-अचल संपत्ति जब्त कर ली जानी चाहिए. मिलावट करनेवाले कर्मचारियों के लिए भी समुचित सजा का प्रावधान होना चाहिए. मिलावट को रोकने का जिम्मा स्वास्थ्य मंत्नालय का है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्नी डॉ. हर्षवर्धन थोड़ा साहस दिखाएं तो हर सांसद, वह चाहे किसी भी पार्टी का हो, उनके इस कठोर विधेयक का स्वागत करेगा.