पाकिस्तान ने कहा कि वह कश्मीर में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 को रद्द किया जाना स्वीकार नहीं करेगा क्योंकि यह संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों का उल्लंघन है. अनुच्छेद 370 जम्मू कश्मीर के संबंध में एक ‘अस्थायी प्रावधान’ है. यह केंद्रीय एवं समवर्ती सूचियों के तहत आने वाले विषयों पर कानून बनाने की संसद की शक्तियों को सीमित कर संविधान के विभिन्न प्रावधानों की व्यावहारिकता पर रोक लगाता है. पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता मोहम्मद फैसल ने कश्मीर में अनुच्छेद 370 को रद्द किए जाने के मुद्दे पर शुक्रवार को संवाददाताओं से कहा कि यह संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों का उल्लंघन होगा.
उन्होंने कहा, ‘भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 को खत्म करना संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों का उल्लंघन है. हम इसे किसी भी परिस्थिति में स्वीकार नहीं करेंगे और कश्मीर के लोग भी इसे स्वीकार नहीं करेंगे.’ गौरतलब है कि बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं ने राज्य में अनुच्छेद 370 को हटाने के प्रति पार्टी की प्रतिबद्धता बार- बार दोहराई है.
अनुच्छेद 370
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 370 एक `अस्थायी प्रबंध` के जरिए जम्मू और कश्मीर को एक विशेष स्वायत्ता वाला राज्य का दर्जा देता है. भारतीय संविधान के भाग 21 के तहत, जम्मू और कश्मीर को यह `अस्थायी, परिवर्ती और विशेष प्रबंध` वाले राज्य का दर्जा हासिल होता है. भारत के सभी राज्यों में लागू होने वाले कानून भी इस राज्य में लागू नहीं होते हैं. मिसाल के तौर पर 1965 तक जम्मू और कश्मीर में राज्यपाल की जगह सदर-ए-रियासत और मुख्यमंत्री की जगह प्रधानमंत्री हुआ करता था.
संविधान के अनुच्छेद 370 के प्रावधानों के अनुसार, संसद को जम्मू-कश्मीर के बारे में रक्षा, विदेश मामले और संचार के विषय में कानून बनाने का अधिकार है लेकिन किसी अन्य विषय से संबंधित कानून को लागू कराने के लिए केंद्र को राज्य सरकार का अनुमोदन चाहिए. जम्मू और कश्मीर के लिए यह प्रबंध शेख अब्दुल्ला ने वर्ष 1947 में किया था.
शेख अब्दुल्ला को राज्य का प्रधानमंत्री महाराज हरि सिंह और पंडित जवाहर लाल नेहरू ने नियुक्त किया था। तब शेख अब्दुल्ला ने अनुच्छेद 370 को लेकर यह दलील दी थी कि संविधान में इसका प्रबंध अस्थायी रूप में ना किया जाए। उन्होंने राज्य के लिए कभी ना टूटने वाली, `लोहे की तरह स्वायत्ता` की मांग की थी, जिसे केंद्र ने ठुकरा दिया था.