रायपुर । छत्तीसगढ़ में जातिगत आरक्षण एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है। विधानसभा चुनाव से पहले पिछले साल एससी (अनुसूचित जाति), एसटी (अनुसूचित जनजाति), ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) संयुक्त मोर्चा ने आबादी के अनुपात में आरक्षण की मांग चुनावी मुद्दा बन रहा है। इस मसले के बुनियादी पहलुओं और संगठनों की घेराबंदी पर नजर डाल रहे हैं अनिल मिश्रा….
मांग सौ प्रतिशत आरक्षण की पर यह संभव नहीं
केंद्र की मोदी सरकार ने सवर्णों को दस फीसद आरक्षण देने का कानून बनाया तो इन वर्गों का गुस्सा सतह पर आता दिखा। ओबीसी महासभा ने मांग कर डाली कि अब सभी वर्गों को उनकी आबादी के अनुपात में आरक्षण दे दिया जाए। सवर्ण करीब 15 फीसद हैं तो उन्हें 15 प्रतिशत आरक्षण मिले, शेष 85 फीसद आरक्षण आरक्षित समूहों एससी, एसटी, ओबीसी में उनकी जनसंख्या के अनुपात में बांट दिया जाए।
यानी कुल सौ प्रतिशत आरक्षण लागू कर दिया जाए। पिछड़ा वर्ग समूह इसे सामाजिक न्याय से जोड़कर देख रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने तय कर दिया था कि किसी भी सूरत में कुल आरक्षण 50 फीसद से ज्यादा नहीं होगा। हालांकि तमिलनाड़ू समेत दक्षिण भारत के कुछ राज्यों ने आरक्षण की सीमा 60 से 70 फीसद तक पहुंचा था।
तमिलनाड़ू में ओबीसी को 27 फीसद आरक्षण दिया जा रहा है। इसके बाद छत्तीसगढ़ में भी 27 फीसद आरक्षण देने की मांग उठी। छत्तीसगढ़ सरकार ने कुछ साल पहले आदिवासी आरक्षण 20 फीसद से बढ़ाकर 32 फीसद कर दिया। पहले छत्तीसगढ़ में कुल आरक्षण 50 फीसद की सीमा से कम यानी 46 फीसद था।
आदिवासी आरक्षण बढ़ाने के बाद यह 58 फीसद हो गया है। सवर्ण आरक्षण के मामले में तो 50 फीसद की सीमा वैसे भी हर जगह पार हो रही है। इसके बाद ओबीसी वर्ग का ही नहीं अनुसूचित जाति का गुस्सा भी बढ़ गया है। इसी साल फरवरी में ओबीसी आरक्षण 27 फीसद करने की मांग को लेकर कसडोल एक दिन के लिए बंद रहा।
ओबीसी महासभा ने जगह-जगह सम्मेलन बुलाकर अपनी आवाज बुलंद की। एससी वर्ग भी अपने आरक्षण का कोटा बढ़ाने की मांग पर अड़ गया है। मामला कोर्ट में लंबित है। आरक्षण के मुद्दे पर सरकार चौतरफा दबाव में है। यह बड़ा चुनावी मुद्दा है। जानकार मानते हैं कि एसटी, एससी, ओबीसी बहुल छत्तीसगढ़ में सवर्ण आरक्षण का फैसला इन वर्गों को नाराज करने वाला साबित हो सकता है।
बड़ा वोट बैंक है ओबीसी समुदाय का
छत्तीसगढ़ में ओबीसी समुदाय की 84 जातियां हैं। ये कई उपजातियों में बंटे हुए हैं। ओबीसी आंदोलन से जुड़े शांतनु साहू कहते हैं कि ओबीसी समुदाय की आबादी 52 फीसद है। उतना आरक्षण नहीं दे सकते तो 27 फीसद तो मिलना ही चाहिए। यहां 14 फीसद की सीमा तय की गई है हालांकि उतना भी नहीं दिया जा रहा है। ओबीसी समुदाय में सबसे बड़ा वर्ग साहू का है। ये करीब 20 फीसद हैं। इनके अलावा यादव, निषाद, कुर्मी, पटेल और अन्य जातियां हैं। ओबीसी वर्ग आरक्षण के मुद्दे पर बेहद आक्रामक और मुखर है।
एससी का आरक्षण घटाया तो बढ़ा विवाद
प्रदेश में पहले एससी वर्ग को 16 फीसद आरक्षण दिया जाता था। कुछ साल पहले राज्य सरकार ने आरक्षण की सीमा घटाकर 12 फीसद कर दी। इसके बाद से एससी वर्ग नाराज है। एससी और ओबीसी वर्ग के आरक्षण कोटे की मांग को आदिवासी समुदाय भी समर्थन करता है। एससी, एसटी, ओबीसी मोर्चे ने लगातार एकजुट होकर आरक्षण आंदोलन को हवा दी है। ळ
आदिवासी भी खुश नहीं
सरकार ने आदिवासियों को उनकी जनसंख्या के अनुपात में 32 फीसद आरक्षण भले ही दे रखा हो, आदिवासी भी खुश नहीं हैं। आदिवासियों की कई दूसरी मांगें हैं। आदिवासियों के लिए आरक्षित 29 विधानसभा सीटों में से 25 कांग्रेस ने जीती तो आदिवासी मुख्यमंत्री की मांग उठी। सत्ता में ज्यादा भागीदारी की मांग तो है ही, आदिवासी छात्रों की छात्रवृत्ति में क्रीमी लेयर तय करने का भी विरोध हो रहा है।
सरकार ने कमेटी बनाकर शांत किया माहौल
लोकसभा चुनाव के ऐन पहले राज्य सरकार ने ओबीसी को 27 फीसद आरक्षण देने, एससी, एसटी आरक्षण की सीमा का पुनर्निधारण करने और सवर्णों को दस फीसद आरक्षण देने की संभावनाओं की तलाश करने के लिए एक कमेटी का गठन किया है। इस कमेटी की रिपोर्ट को आने में अभी वक्त लगेगा, तब तक चुनाव निपट चुका होगा। ओबीसी को 27 फीसद आरक्षण देने की घोषणा मध्यप्रदेश सरकार ने भी की है। कांग्रेस ओबीसी आरक्षण को अपने घोषणापत्र में भी शामिल कर सकती है।