रायपुर। छत्तीसगढ़ विधानसभा के अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह ने कल 10 मई की शाम यहाँ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में छत्तीसगढ़ और पश्चिम ओडि़शा के क्रांतिकारियों के योगदान पर केंद्रित पुस्तक ‘कोसल के क्रांतिवीर ‘ का विमोचन किया.ज्ञातव्य है कि हमारे देश के इतिहास में दस मई एक यादगार दिन है, क्योंकि सन 1857 में इसी दिन मेरठ की ब्रिटिश सैन्य छावनी में अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध भारतीय सैनिकों के विद्रोह की शुरुआत हुई थी, जो ‘सिपाही-विद्रोह’ और प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के नाम से इतिहास में दर्ज हुआ।
समारोह की अध्यक्षता छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ इतिहासकार और पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर के सेवानिवृत्त प्रोफेसर डॉ. लक्ष्मीशंकर निगम ने की महासमुंद की लोकसभा सांसद श्रीमती रूप कुमारी चौधरी और विधायक श्री योगेश्वर राजू सिन्हा विशेष अतिथि के रूप में समारोह में उपस्थित थे।
मुख्य अतिथि डॉ. रमन सिंह ने अपने सम्बोधन में पुस्तक प्रकाशन के लिए इसके लेखक महासमुन्द क्षेत्र के पूर्व लोकसभा सांसद श्री चुन्नीलाल साहू को बधाई दी.उल्लेखनीय है कि आजादी के बहुत पहले छत्तीसगढ़ और पश्चिम ओडि़शा को ‘कोसल प्रदेश ‘ के नाम से भी जाना जाता था।
विमोचन समारोह को सम्बोधित करते हुए डॉ. रमन सिंह ने पुस्तक ‘कोसल के क्रांतिवीर ‘ को इतिहास की दृष्टि से बहुत तथ्यात्मक और महत्वपूर्ण बताया.डॉ. सिंह ने स्वतंत्रता संग्राम के कठिन दौर में छत्तीसगढ़ में ईस्ट इंडिया कम्पनी की अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ़ समय -समय पर हुए जन – संघर्षो का उल्लेख किया।
उन्होंने कहा कि इतिहासकारों के अनुसार मंगल पाण्डेय की अमिट शहादत से भी पहले यानी 1857 से पहले छत्तीसगढ़ में क्रांति की चिंगारी सुलग उठी थी, जब 1792 में सरगुजा के अजीत सिंह ने ईस्ट इंडिया कम्पनी के खिलाफ़ विद्रोह किया था. इसी कड़ी में डॉ. सिंह ने वर्ष 1825 में परलकोट (पखांजूर )के ज़मींदार गैंद सिंह और वर्ष 1857 में सोनाखान के ज़मींदार वीर नारायण सिंह के संघर्ष और शहादत को तथा वर्ष 1910 में बस्तर के गुण्डाधुर जैसे महान क्रांतिकारियों के योगदान को भी याद किया.डॉ. सिंह ने कहा कि छत्तीसगढ़ और उससे लगे हुए ओडि़शा के सीमावर्ती इलाकों में हुए आज़ादी के संघर्षो पर तथ्यात्मक जानकारियों के साथ चुन्नीलाल साहू की यह पुस्तक आयी है.एक अच्छे सांसद और अच्छे विधायक रहे श्री साहू अब एक अच्छे लेखक भी साबित हुए हैं. उन्होंने इस पुस्तक को तैयार करने के लिए काफी रिसर्च किया है, बड़ी मेहनत की है और लेखक के रूप में अपनी पहचान बनाई है.पुस्तक में वर्ष 1857 के संग्राम के दौरान सोनाखान (छत्तीसगढ़)के वीर नारायण सिंह और पश्चिम ओडि़शा के बरगढ़ जिले में स्थित घेस ज़मींदारी के माधो सिंह बरिहा और सम्बलपुर के वीर सुरेन्द्र साय की शहादत के साथ -साथ इन क्रांतिकारियों के अनेक परिवारजनों द्वारा भी अपने प्राणों की आहुति दिए जाने का भी उल्लेख है।
समारोह की अध्यक्षता करते हुए इतिहासकार डॉ. लक्ष्मी शंकर निगम ने इस पुस्तक के संदर्भ में अनेक ऐतिहासिक घटनाओं की जानकारी दी.उन्होंने कहा कि आज दस मई का दिन ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि 1857 में इसी दिन मेरठ से भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम शुरु हुआ था।
विमोचन समारोह में पुस्तक के लेखक श्री चुन्नीलाल साहू ने स्वागत भाषण दिया. श्री साहू ने भी कहा कि इस पुस्तक के विमोचन के लिए आज दस मई का दिन इसलिए चुना गया कि यही वह ऐतिहासिक तारीख है, जब 1857 में भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की मेरठ से शुरुआत हुई थी.पुस्तक की विषय -वस्तु का उल्लेख करते हुए श्री साहू ने स्वतंत्रता संग्राम में छत्तीसगढ़ और पश्चिम ओडि़शा से संबंधित अनेक भूले -बिसरे प्रसंगों को याद किया.महासमुन्द की सांसद श्रीमती रूप कुमारी चौधरी और विधायक श्री योगेश्वर राजू सिन्हा ने भी अपने विचार व्यक्त किए. श्रीमती चौधरी ने कहा कि यह पुस्तक एक महत्वपूर्ण धरोहर है.इस अवसर पर डॉ. रमन सिंह ने घेस (ओडि़शा) के शहीद माधोसिंह की छठवीं पीढ़ी के श्री लोकेश्वर सिंह का स्वागत किया. घेस से आए श्री अशोक पुजारी ने भी समारोह को सम्बोधित किया।
आयोजन में छत्तीसगढ़ शासन के पूर्व मंत्री श्री चन्द्र शेखर साहू, इतिहासकार डॉ. रमेन्द्र नाथ मिश्रा,पुरातत्व विद श्री राहुल कुमार सिंह, और वरिष्ठ लेखक आशीष सिंह सहित सर्वश्री अशोक तिवारी, घनाराम साहू, , नारायण प्रसाद नैरोजी, देवराम बरिहा, शिशुपाल सोरी, नागेन्द्र दुबे, शकुंतला तरार और अन्य अनेक प्रबुद्धजन उपस्थित थे।
युद्ध विराम की जानकारी
विमोचन समारोह के दौरान मुख्य अतिथि डॉ. रमन सिंह ने लोगों को सूचित किया कि नई दिल्ली में भारत के विदेश सचिव ने यह जानकारी दी है कि भारत और पाकिस्तान के बीच विगत तीन दिनों से जारी संघर्ष में युद्ध विराम की घोषणा हो गयी है. भारत ने अपना काम पूरा कर लिया है. डॉ. सिंह ने इसके लिए भारतीय सेना को बधाई दी. सभी लोगों ने उनकी इस जानकारी पर भारत माता की जय के नारे लगाकर करतल ध्वनि से हर्ष प्रकट किया।