हैदराबाद। इसलिए संसार कीचड़ है, यह कहकर उसे ठुकरा मत देना, वरना कमल के खिलने की संभावना खत्म हो जाएगी। संसार कीचड़ है। इसीलिए इसे दुत्कार कर, दुत्कार मत देना, वरना जीवन के सत्य से वंचित रह जाओगे।
संसार कहाँ नहीं है-? पूरब, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, सब दिशाओं में तो संसार है। वह तो दूर-दूर तक फैला हुआ है। संसार से भागना नहीं है। भाग कर जाओगे भी कहाँ-? क्योंकि संसार से बाहर कुछ भी नहीं है। और तो और मोक्ष भी संसार में ही है। यह बात अलग है कि मोक्ष में संसार नहीं है। इसलिए मैंने कहा कि संसार से भागना नहीं अपितु जागना है। जागरण ही जीवन है। जिन्होंने भी पाया है, जाग कर ही पाया है। जो भी पहुँचा है, जाग कर ही पहुँचा है।
जो दिख रहा है, वह संसार तो कम है। इच्छाओं का, वासनाओं का, कामनाओं का, हमारा अनंत संसार है, जिसने हमें परेशान और दु:खी करके रखा है…!!!।