Home धर्म अन्तर्मना आचार्य प्रसन्न सागरजी महाराज कलचाराम हैदराबाद औरंगाबाद

अन्तर्मना आचार्य प्रसन्न सागरजी महाराज कलचाराम हैदराबाद औरंगाबाद

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शिखर की ऊंचाई पर वो ही पहुँच पाते हैं..
जो प्रतिशोध के बजाय परिवर्तन की सोच रखते हैं..!
तीन तरह के लोग है इस दुनिया में —
एक वो – जो मन को मार कर जी रहे हैं।
दूसरे वो – जो जीवन को बोझ समझ कर ढ़ो रहे हैं।
तीसरे वो – जो सोच समझ कर, विवेक पूर्वक जी रहे हैं।
इसमें पहले व्यक्ति को भगवान भी सुखी नहीं कर सकते। क्योंकि उसने सोच रखा है कि मैं कुछ नहीं कर सकता। मुझसे कुछ नहीं होता। जो दिन भर में सौ बार मन से मर रहा हो, वो क्या करेगा ज़िन्दगी में-? ऊंची सोच – पुण्य का पथ है, तो नीची सोच – पाप का मार्ग। इसलिए — हार से डर जाने से बेहतर है, जीत की कोशिशों में मर जाना..!
दूसरे वे लोग हैं – जो जीवन को बोझ समझ कर ढ़ो रहे हैं। बाबू – बोझ कौन ढ़ोता है-? इंसान या गधा? सफलता के लिये सोये हुए पुरूषार्थ को जगाना पड़ेगा। मन की कमजोरियों पर विजय प्राप्त करें। मन की अपंगता हमें अपाहिज कर रही है। घर बैठे भाग्य नहीं बदलता। संघर्ष तो करना ही होगा। हमें दीपक की तरह जलना और जूझना है। क्योंकि आशा, विश्वास और उम्मीदों के चिराग आंधियों से नहीं बुझते।
तीसरे वे लोग हैं – जो स्वयं जी रहे हैं और सबको जीने की प्रेरणा दे रहे हैं। अच्छा मन, अच्छा नजरिया हमारे जीवन को उत्साह और प्रेम, सदभाव, मैत्री से भर सकता है। जो आज तक हुआ सो हुआ। अब ऐसा कोई काम मत करो, जिससे मन की शान्ति, समृद्धि, और सूकून मन को चिन्ताओं से दबा दे। क्योंकि सुबह का भूला दोपहर को घर आ जाये तो भूला ना कहलाये…!!!।