नांदणी। नांदणी में चातुर्मासिक धर्मसभा में श्रमण संस्कृती के महनीय संतो में अग्रणी देश के सर्वश्रेष्ठ आगम अनुकूल चर्या शिरोमणी आचार्य विशुद्ध सागर जी महाराज जी के परम शिष्य श्रमण मुनी श्री सहर्ष सागर जी महाराज जी ने कहा की – नांदणी समाज का अहो सौभाग्य मानो की आपके नगर में ऐसे महान संत आचार्य विशुद्ध सागर जी महाराज ससंघ का चातुर्मास हो रहा है | गुरूओं का सानिध्य मिल रहा है | गुरूओं का सानिध्य हर मनुष्य को जिने की कला सिखाते है | हर मनुष्य को प्राण छोडने की कला सिखाते है | चलना सिखाते है | बैठना सिखाते है |
ऐसे महान संत है जो सत्य के सत्यार्थ का बोध करा रहे है | सत्य के सत्यार्थ का मार्ग दिखा रहे है | और वस्तु के वस्तुत्व का बोध करा रहे है | ये सिर्फ नांदणी समाज को ही नहीं करा रहे है, पुरे विश्व को करा रहे है | अगर इस भुतल पर इस धरा पर जो कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक पुरे विश्व में माँ जिनवाणी का रसपान करा रहे हैं तो वे संत है |
विचार करो अपने जीवन में, अपने देह को कहा छोडना हैं | जिस घर में जन्म लिया था उसी घर में छोडना है क्या? पर प्रकृती का नियम ही हुआ करता है की इस धरा पर व्यक्ती को जन्म रोते रोते ही हुआ करता है | ये सत्य बात है |
जैसे भगवान महावीर, श्रीराम, श्रीकृष्ण, आचार्य कुंदकुंद स्वामी और आचार्य भगवन विराग सागर जी महामुनीराज जिन्होने जन्म जिया तो हसते हसते जिया| और इस देह से प्राण को छोडा तो वो भी हसते हसते ही छोडा | इसलिए हम उनका जन्म जयंती मनाते है |
व्यक्ती चल रहा है लेकिन उसे पता नही मुझे जाना कहा है | क्या पाना है और क्या खोना है | मनुष्य जीवन में निरउद्देश जीवन जी रहा है |
ज्ञानी जीव का जन्म जहाँ होता है, वो वहा अपने देह को उसी जगह नहीं छोडता | ज्ञानी जीव अपने देह से प्राण को छोडता है तो समाधी के स्तर पर ही छोडता है | वही ज्ञानी हुआ करता है | करो विचार अपने जीवन पर, मुझे कैसा जीवन जिना है और क्या करना है और क्या नही करना है |
काम करो ऐसा की पेहचान बन जाए |
हर कदम चलो ऐसा की निशान बन जाए |
जिंदगी तो सब काट लेते हैं |
जिंदगी जिओ ऐसी की मिसाल बन जाए |