गुरु भक्ति की बदौलत मिलती है सारी दौलत -आचार्य श्री विमर्शसागरजी
गुरु से शुरू होती है एक यात्रा भक्ति की, गुरु से शुरू होती है एक यात्रा श्रद्धा की,गुरु से शुरू होती है एक यात्रा आनंद की, गुरु से शुरू होती है एक यात्रा आत्मा से परमात्मा बनने की। । गुरु सीडी की तरह होते हैं और परमात्मा मंजिल की तरह होते हैं। जिन्हें सीडी प्राप्त हो जाती है उनकी मंजिल को पाने की यात्रा सुगम, सहज और सरल हो जाया करती है। उक्त उद्गार परम पूज्य जिनागम पंथ प्रवर्तक आदर्श महाकवि भावलिंगी संत श्रमणाचार्य श्री विमर्शसागर जी महामुनिराज ने कृष्णानगर जैन मंदिर में धर्म सभा को संबोधित करते हुये व्यक्त किये। आचार्य श्री ने गुरुभक्ति की महिमा बताते हुये कहा कि -जिसके हृदय में गुरुभक्ति का वास होता है वह गुरु के प्रति इतने समर्पण के भाव से भरा होता है कि उससे अगर कोई पूछे कि तीन लोक कभी संपदा और गुरु चरण में से तुम किसे चुनोगे तो गुरु भक्ति से भरा हुआ बह गुरुभक्त तीन लोक की संपदा को छोड़कर गुरु चरणों भी उस दौलत को स्वीकार करेगा जिसकी बदौलत दुनिया की सारी दौलत प्राप्त होती है। गुरु भक्ति से जीवन फूलों की तरह महकने लगता है। आत्म हित की ओर कदम बढ़ाने से पहले गुरु की ओर कदम बढ़ाना जरूरी है। धन्य हैं वे जीव जिन्हें सुबह होते ही प्रभु और गुरु के पर भी याद आती है। प्रभु या गुरु के दर तक पहुँचना ती सरल है पर गुरु तक पहुंचने के बाद गुरु की पाना बहुत कठिन बात है। भगवान ऋषभदेव के ज्येष्ठपुत्र चकवर्ती भरत जिनके नाम से आज हमारा देश भारत कहलाता है उन प्रथम चक्की का पुत्र मारीचि साक्षात् समोशरण मे प्रभु को पाकर भी वह गुरु को नहीं पा सका। जब भी सद्गुरु के पास जाने का सौभाग्य जगे तो गुरु से अपना भविष्य मत पूछना, बरस इतना ही पूछना कि मैं आपकी भक्ति के लायक बन पाया है या नहीं। आप मुझे हमेशा अपने चरणों का सेवक बनाये रखना, ये वो भावना है जो आपके जीवन को श्रेष्ठ से श्रेष्ठतम बना देगी। आचार्य श्री के द्वारा प्रतिदिन भक्तामर महिमा भी विशेष व्याख्या प्रतिदिन प्रातः 8:45 पर शाम को टू डेज सोलूशन होता है