केशवरायपाटन | परम पूजनीय भारत गौरव गणिनी आर्यिका 105 स्वस्ति भूषण माताजी ने अपने मंगल प्रवचन में दान देने की बात कही।
माताजी ने अपने उद्बोधन में कहा कि पाँव तो तिर्यंच को भी मिले हैं मनुष्यों के पास तो मात्र 2 पाँव है। तिर्यंच के पास तो 4 पाँव भी हैं! पाँव 10 भी मिल जाते वह महत्वपूर्ण नहीं है महत्वपूर्ण यह है की वह दस पाँव आपको मंजिल की तरफ ले गये क्या?
माताजी ने कहा की मंजिल तक ले जाने के लिए 2 पाँव ही काफ़ी है! और मंजिल तक नहीं ले जा सकते तो 10 पाँव भी व्यर्थ हैं! तिर्यंच को पाँव तो इतने सारे मिल गये लेकिन उन्हें हाथ नहीं मिले! और पुरुषार्थ हाथों से होता है अभिषेक हाथो से किया जाता है! पूजा हाथो से की जाती है! वैयावृत्ती हाथों से की जाती है! आहार हाथो से कराया जाता है! ये हाथ वरदान हैं!
इन हाथों में पुरुषार्थ करने की सामर्थ है! पाँव तो केवल चलने का काम करते हैं लेकिन तो बहुत सारे कार्य करते हैं! अगर इस जन्म में इन हाथों से अच्छे कार्य नहीं किये तो अगले जन्म में यह हाथ पाँव बन जायेंगे! और यदि इस जन्म अच्छे काम किये तो इससे और मजबूत हाथ मिलेंगे! हमे आहार दान अवश्य करना चाहिए! आहार देने का अवसर प्राप्त नहीं हो पा रहा है तो भी आहार दान के लिए रोज दान राशि अवश्य निकालना चाहिए! क्योंकि आहार दान में चारों दान आ जाते हैं! और जैन धर्म की परम्परा तब तक चलेगी जब तक आहार दान चलता रहेगा!
उन्होंने कहा जिस दिन आहार दान बंद हो जायेगा उस दिन छटम काल आ जायेगा!इसलिए आहार दान की परम्परा को कभी बंद मत होने देना!