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अतिशय क्षेत्र” तिजारा जी” में द्वय आचार्यों संघों के सानिध्य में मनायी गयी 2623 वीं जन्मजयन्ती !

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  • विश्वमैत्री के आधार हैं भगवान महावीर के पंचशील सिद्धांत
  • भावलिंगी संत आचार्य श्री विमर्श सागर जी महामुनिराज
वर्तमान शासन नायक जैन धर्म के 24 वें तीर्थकर भगवान महावीर स्वामी का जन्म कल्याणक महोत्सव आज सम्पूर्ण विश्व बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है। भारतीय वसुन्धरा के अतिशय क्षेत्र “देहरा-तिजारा” में इय आचार्य संघों के ससंघ सानिध्य में भगवान महावीर स्वामी का 2623 वाँ जन्म कल्याणक महामहोत्सव विविध धार्मिक आयोजनों के साथ सानन्द सम्पन्न किया गया ।
20 अप्रैल की शुभ प्रातः बेला में भावलिंगों संत आचार्य श्री विमर्शसागर जी महामुनिराज का ससंघ भव्य मंगल प्रवेश अतिशय क्षेत्र तिजारा की धरा पर हुआ। क्षेत्र पर विराजमान आचार्य श्री वसुनंदी जी मुनिराज ससंघ ने आगंतुक आचार्य संघ की भव्य मंगल आगवानी की। द्वय आचार्य संघों का वात्सल्य पूर्ण मिलन देखकर उपस्थित श्रद्धालुओं का मन-मयूर नाच उठा। सभी श्रद्धालु भक्तगण मुक्तकंठ से वात्सल्य मिलन की प्रशंसा करते हुए नजर आ रहे थे।
21 अप्रैल को सम्पूर्ण विश्व में आयोजित श्री महावीर जयंती महापर्व पर भावलिंगी संत आचार्यश्री विमर्शसागर जी महामुनिराज ने भगवान महावीर क्वामी के दिव्य सूत्रों का शंखनाद करते हुए कहा – – भगवान महावीर ने हमें अहिंसा धर्म का उपदेश दिया है। अहिंसा का व्यापक स्वरूप समझने योग्य है। भगवान महावीर ने हमें अहिंसक बनाया है पर ध्यान रखना भगवान महावीर ने हमें कायर और नपुंसक नहीं बनाया। भगवान महावीर का अनुयायी अहिंसक जीवन शैली अपनाता है, न्याय नीति से अपना जीवन जीता है किन्तु कोई अन्याय-अनीति करता है तो उसका विरोध करना भी अहिंसा है। भगवान महावीर ने दो प्रकार की अहिंसा का उपदेश दिया – द्रव्य अहिंसा और भाव अहिंसा । आज आप द्रव्य अहिंसक बनने में तो अपना गौरख समझते हैं
किन्तु भाव अहिंसा पर आपका विचार नहीं है। निरंतर आपसी राग-द्वेष बड़ते चले जा रहे हैं। बन्धुओं। ध्यान रखना, भाव अहिंसा जहाँ है वहाँ निश्चित रूप से द्रव्य अहिंसा कायम है। किन्तु जहाँ भाव अहिंसा नहीं है वहाँ भगवान महावीर स्वामी का “अहिंसा परमो धर्म: यह सूत्र चरितार्थ नहीं हो सकता। आप नारा लगाते हो – ” जिओ और जीने दो” किन्तु सही मायने में देखा जाए तो आप न तो स्वयं जीते हो न जीने देते हो। आपके परिवार में ही दो भाईयों में राग-द्वेष गैर भाव जन्म ले लेता है । अदालतों तक आपका रिश्ता कठघरों में खड़ा दिखाई देता है। ये कैसा आपका अहिंसा धर्म है? बन्धुओ ! भगवान महावीर ने पंचशील सिद्धांत का संविधान दिया। अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह यह पंच शील सिद्धांत विश्व मैत्री की आधारशिला है। आज भी यदि भगवान महावीर के पंचशील सिद्धांतों का अनुशरण किया जाए तो सम्पूर्ण विश्व में मैत्री स्थापित की जा सकती है !