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भारत की रूस चिंता

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विदेश मंत्री जयशंकर के हालिया भाषणों से भारत की यह इच्छा जाहिर होती है कि पश्चिमी देश भारतीय जरूरतों के मुताबिक अपनी नीतियों को ढालें। वे ऐसा रुख ना अपनाएं, जिससे रूस ज्यादा से ज्यादा चीन के करीब चला जाए।
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने पिछले हफ्ते एक जर्मन अखबार को दिए इंटरव्यू में पश्चिमी प्रतिबंधों के बावजूद रूस से तेल खरीदने के भारत के फैसले का बचाव किया। कहा कि मॉस्को ने कभी भी भारत के हितों को नुकसान नहीं पहुंचाया है। दोनों देशों के बीच हमेशा स्थिर और दोस्ताना संबंध रहे हैं। ये बात जयशंकर ने ठीक उस समय कही, जब रूसी विपक्षी नेता एलेक्सी नवालनी की मौत से पश्चिमी देश भडक़े हुए थे। साथ ही यूक्रेन युद्ध के दो साल पूरा होने वाले थे।
इस मौके पर अमेरिका और यूरोपीय देशों ने रूस पर पांच सौ नए प्रतिबंध लगाने का एलान किया, जिसके दायरे में रूस से कारोबार करने वाली कुछ भारतीय कंपनियां भी आ गई हैं। उसी माहौल के बीच नई दिल्ली में रायसीना डायलॉग को संबोधित करते हुए जयशंकर ने कहा कि पश्चिमी देशों को चाहिए कि वे दरवाजे बंद करने के बजाय रूस को अधिक विकल्प उपलब्ध कराएं, ताकि वह चीन के ज्यादा करीब ना चला जाए।
विदेश मंत्री ने यहां चीन के खिलाफ अपनी नाराजगी फिर जताई। कहा कि चीन को ‘माइंड गेम’ खेलने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए, जो अन्य देशों को सहभागियों के साथ मिलकर काम करने से रोकना चाहता है। निहितार्थ यह कि चूंकि भारत ने अमेरिका के साथ सहभागिता बनाई है, इसलिए चीन ने भारत के खिलाफ सख्त रुख अपना रखा है। वह चाहता है कि भारत अमेरिका से दूरी बनाए, तब वह 2020 में सीमा पर बने गतिरोध को दूर करने पर राजी होगा।
जयशंकर के इन भाषणों से भारत की यह इच्छा जाहिर होती है कि पश्चिमी देश भारतीय जरूरतों के मुताबिक अपनी नीतियों को ढालें। संभवत: भारत सरकार की समझ यह है कि अमेरिका की चीन विरोधी रणनीति में भारत की महत्त्वपूर्ण भूमिका है, इसलिए वह पश्चिमी नीति को प्रभावित कर सकने की स्थिति में है। मगर असल में ऐसा होता नहीं दिख रहा है। निज्जर और पन्नूं मुद्दों के बाद तो स्थितियां और प्रतिकूल हो गई हैं। ऐसे में रूस भले भारत के लिए महत्त्वपूर्ण हो, लेकिन उस वजह से पश्चिम की सोच ढलेगी, इसकी न्यूनतम संभावना ही है।