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सभी जीवो में सिद्ध बनने की क्षमता है – आचार्य श्री वर्धमान सागर जी

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उदयपुर – सच्चा सुख प्राप्त करने के लिए भौतिक सुख छोड़कर आध्यात्मिक स्वरूप सुख प्राप्त करना लक्ष्य होना चाहिए, साधु भी दीक्षा लेकर समाधि की भावना कर नियम और यम  संलेखना के माध्यम से तप ,त्याग नियम ,से सच्चा सुख प्राप्त करने की अभिलाषा करते हैं। इंद्रीय सुख केवल सुख का आभास है इससे किए गए कार्य अनुसार कर्म बंधन होता है। मोक्ष में स्थाई शाश्वत सुख मिलेगा  इसके लिए संत समागम ,देव, शास्त्र ,गुरु के सानिध्य में समय का उपयोग कर धर्म की आराधना करना चाहिए। अच्छे कार्य से अच्छी गति मिलेगी पाप कर्म बंधन से खराब गति मिलेगी ।सभी जीवो में सिद्ध करने की क्षमता है ।कर्मों का आश्रव संवर रोक कर  तप,त्याग,संयम  नियम व्रत से कर्मों की निर्जरा करने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है ।यह मंगल देशना उदयपुर में आचार्य शिरोमणि श्री वर्धमान सागर जी ने धर्म सभा में प्रकट की। आचार्य श्री ने प्रवचन में आगे बताया कि कर्मों की निर्जरा के लिए इच्छाओं का सीमित करना, रोकना जरूरी है क्योंकि इच्छाएं असीमित होती हैं आप लोगों की इच्छा तीनों  लोक  का धन संपदा पाने की  तृष्णा है। पुण्य और पाप का फल संसार में भोगना होता है, इसलिए तप से इच्छा कम कर इच्छाओं को सुखाना होगा क्योंकि सभी आत्मा में परमात्मा बनने की क्षमता है। शांति लाल वेलावत पारस चितोड़ा सुरेश पद्मावत अनुसार आचार्य श्री के प्रवचन के पूर्व मुनि श्री चिन्मय सागर जी ने प्रवचन में बताया कि अभी आप लोगों ने उपवास किया इससे आपका सम्मान हुआ यश,कीर्ति नाम हुआ कुछ दिनों के उपवास से जब यह फल मिल सकता है, तो स्थाई रूप से अगर आप संयम व्रत नियम धारण करते हैं तो इस जन्म में नहीं अनेक जन्मों में इसका लाभ मिलता है ।श्रावक को श्रद्धा वान,विवेक वान और क्रियावान बनना होगा क्योंकि मनुष्य जन्म कीमती रत्न है जिस प्रकार रत्न खो  जाने पर मिलता नहीं है ,इस प्रकार मनुष्य जन्म रूपी रत्न को संसार रूपी चौराहे पर इसकी रक्षा तप ,त्याग ,संयम से कर्मों की निर्जरा  करना चाहिए

मुनि श्री चिन्मय सागर जी ने बताया कि श्रावक  धर्म सभा में नियत समय से देरी पर आते हैं किंतु मनोरंजन स्थल टॉकीज माल आदि में समय से पूर्व पहुंच जाते हैं ।आत्मा का सच्चा मित्र कौन है इस बारे में एक कथा के माध्यम से मुनिश्री  ने बताया कि तीन तरह के मित्र होते हैं एक राजा ने सच्चे मित्र की पहचान करने के लिए अपने पुत्र को देश निकाला दे दिया साथ में यह आज्ञा दी   जो राजकुमार को शरण देगा उसे मृत्यु दण्ड दिया जाएगा राजकुमार अनेक मित्रों के पास गया पहले मित्र ने दरवाजा खोलने से मना कर दिया कि मैं तुम्हें शरण नहीं दे सकता मैं तुम्हें सहयोग नहीं कर सकता दूसरे मित्र ने कहा कि मैं शरण नहीं दे सकता किंतु कुछ धनराशि देकर सहयोग कर सकता हूं किंतु घर में स्थान नहीं दूंगा तीसरे मित्र ने राजा की आज्ञा का उल्लंघन कर मित्र की मित्रता को वरीयता प्राथमिकता दी और राजकुमार को घर में शरण विश्राम कराया खाना खिलाया ।राजा के गुप्तचरो में जब संदेश राजा को दिया तब तीनों मित्रों को बुलाया गया तीनों पहले और दूसरे मित्र ने कहा कि हमने शरण नहीं दी किंतु तीसरे मित्र ने कहा यह मेरा मित्र है और मित्र दुखी है इसलिए मित्रता की लाज रखने के लिए मैंने इसको शरण दी और इसे सहयोग किया।  पहला मित्र जिसने शरण नहीं दी सहयोग नहीं किया वह हमारा शरीर है जो आत्मा का साथ छोड़ देता है, दूसरा मित्र जिसने शरण नहीं दी किंतु सहयोग का वादा किया वह आपके परिवार और सगे संबंधी है जो दिखावटी तौर पर सहयोग करते हैं। सच्चा मित्र तीसरा मित्र जो है वह देव शास्त्र गुरु और रत्नत्रय  धर्म सम्यक दर्शन ,सम्यक ज्ञान, सम्यक चरित्र है ,जो आत्मा का साथ देते हैं इस जन्म में भी देते हैं और आने वाले अनेक जन्म भव में भी साथ देते हैं। आगामी 20 अक्टूबर को आचार्य श्री द्वारा ब्रह्मचारिणी मंजू दीदी को दीक्षा दी जावेगी । दिनांक 14 अक्टूबर आश्विन  कृष्णा  अमावस्या को दिवीय पट्टाधीश आचार्य श्री वीर सागर जी का 66 वा वर्ष अंतर्विलय समाधि दिवस आचार्य संघ सानिध्य में विशेष पूजन द्वारा मनाया जावेगा। आचार्य श्री वीर सागर जी की समाधि सन 1957 जयपुर खानिया जी में हुई।