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नवकार मंत्र तभी जीवंत होता है, जब दिल में कोई बैर न हो : प्रवीण ऋषि

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रायपुर – उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि ने कहा कि अगर दुश्मनी जिंदा रहेगी तो नवकार मंत्र जिन्दा नहीं रहेगा। नवकार मंत्र जीवंत तभी होता है जब अंदर में दुश्मनी नहीं रहती है। कोई भी काम दुश्मनी से बिगड़ता है, दुश्मन से नहीं। दुनिया में कोई दुश्मन नहीं होगा, यह संभव नहीं है। लेकिन दुश्मनी नहीं रही तो काम नहीं बिगड़ेंगे। इसलिए किसी भी साधना की पहली शर्त है कि मेरा किसी के प्रति दुश्मनी का भाव नहीं है। दुश्मन प्रभु महावीर के भी थे, हमारे भी हैं। दुश्मनी नहीं रहे, इसका ध्यान रखें। दुश्मन होना कि नहीं होना, ये हमारे हाथ में है। इसलिए मेरा किसी के साथ बैर नहीं है, ये भाव रखना है। अगर बैर भावना नहीं रहेगी तो बैरी तुम्हारा बाल भी बांका नहीं कर सकता। दुश्मन चिंगरी है और दुश्मनी ईंधन है, और अगर ईंधन नहीं रहा तो दुश्मन कुछ नहीं कर सकता। जब कोई दुश्मनी रखता है तो वह विश्व से सहयोग लेने के रास्ते बंद करता है। सहयोग को ग्रहण करना है तो दोस्ती चाहिए। सहयोग का सूत्र है मैत्री और सहयोग लेने के रास्ते बंद करने का सूत्र है दुश्मनी। उक्ताशय की जानकारी रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने दी है। 

गुरुवार को लालगंगा पटवा भवन में श्रीपाल-मैनासुन्दरी की कथा को आगे बढ़ाते हुए उपाध्याय प्रवर ने कहा कि राजा प्रजापाल ने मैनसुन्दरी का विवाह श्रीपाल से करा दिया। पुत्री के मन में कोई बैर की भावना नहीं है। राजा प्रजापाल से रानी नाराज है, सारे कर्मचारी भी नाराज है, लेकिन पुत्री नाराज नहीं है।  मैनासुन्दरी को लेकर श्रीपाल अपने डेरे पर आता है। 700 कुष्ठ रोगियों में तो जश्न मन रहा था। वे ये सोच कर खुश थे कि हमारे राजा को रानी मिल गई, लेकिन श्रीपाल न ख़ुशी मना पा रहा है और न ही गम कर पा रहा है। जो उसने सपने में भी नहीं सोचा था, वो मिला। इस उपलब्धि पर श्रीपाल मैनासुन्दरी से कहता है कि मेरे स्पर्श से भी तुम्हे कुष्ठ रोग हो जाएगा, मैं तुम्हारे योग्य नहीं हूँ। मैं आग्रह करता हूँ कि तुम मुझे छोड़कर किसी योग्य के साथ जीवन बिताओ। यह सुनकर मैनासुन्दरी के आँखों से आंसुओं की धरा बहने लगी। वह बोली कि सूरज का उदय पश्चिम में हो सकता है, समुद्र अपनी मर्यादा छोड़ सकता है, लेकिन एक सती नार सपने में भी परपुरुष की कामना नहीं कर सकती। आप जैसे हो, मेरे अपने हो। आप ये शब्द नहीं बोलें, मैं आपके साथ हूँ। श्रीपाल ने जब ये सुना तो उसने सोचा कि जिस अंधेरे में माँ ने साथ नहीं दिया, उस अंधियारे में मैनासुन्दरी साथ दे रही है। अगले दिन सुबह जब दोनों साथ चलते रहते है, सामने संत नजर आते हैं। दोनों ने उनकी वंदना की, चरणों में बैठे। संत ने मैनासुन्दरी से कहा कि तेरे साथ जो बैठा है, ये अनमोल रत्न है, तेरे हाथ कैसे लगा? मैनासुन्दरी ने संत को अपनी पूरी कहानी सुनाई। उसने दुर्भाग्य का जिक्र नहीं किया, अपने पिता पर भी कोई आरोप नहीं लगाया। संत ने कहा कि ये बहुत जल्द राजा बनेगा। लेकिन संत ने नहीं कहा कि वह ठीक हो जाएगा। मैनासुन्दरी ने संत से पूछा कि ये कैसे ठीक हो जाएंगे। संत ने कहा कि नौपद की आराधना करो, आयंबिल ोली की साधना दी। साल में दो बार करने का शास्त्र बताया। इसका कुष्ठ रोग क्षय हो जाए, ये लक्ष्य रखकर साधना कर । रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने बताया कि श्रीपाल-मैनासुन्दरी का प्रसंग 23 अक्टूबर तक चलेगा। इसके बाद 24 अक्टूबर से 14 नवंबर तक उत्तराध्ययन श्रुतदेव आराधना होगी जिसमे भगवान महावीर के अंतिम वचनों का पाठ होगा। यह आराधना प्रातः 7.30 से 9.30 बजे तक चलेगी। उन्होंने सकल जैन समाज को इस आराधना में शामिल होने का आग्रह किया है।