Home धर्म - ज्योतिष चिंता ज्ञान का नाश करती है – आचार्य विशुद्ध सागर

चिंता ज्ञान का नाश करती है – आचार्य विशुद्ध सागर

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रायपुर – आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज ने ऋषभ सभागार मे मंगल प्रवचन देते हुए कहा कि  ज्ञान का नाश करने वाला कोई है, तो उसका नाम चिन्ता है । आपसे अशुभ हो जाए, वो इतना घातक नहीं, जितना घातक उसकी चिन्ता है । अशुभ करने के पहले अशुभ चिन्तन, अशुभ करते समय अशुभ चिंतन और फिर अशुभ करने के बाद अशुभ चिंतन ।अशुभ चिन्तन किए बिना कोई अशुभ कर नहीं सकता है । जो आत्महत्या करता है, वह बहुत पहले से सोचना प्रारम्भ करता है। बार-बार उसके मस्तिष्क में वही चलता है । जैसा होने वाला होता है, वैसी सोच प्रारम्भ हो जाती है । जिनके अन्दर किंचित् भी अशुभ सोच चल रही हो, वे शीघ्र ऊँकार की ध्वनि करें, प्रभु का नाम लें, अपने सोच को बदलें, तुरन्त चिंता का ह्रास होगा ।जैसे आपको सामग्री रखना है तो पहले बर्तन को स्वच्छ करते हो । क्यों? पात्र स्वच्छ नहीं होगा तो वस्तु खराब हो जायेगी । ऐसे ही किसी को ज्ञानार्जन करना है तो सबसे पहले चिन्ता की गंदगी को मस्तिष्क से बाहर करो । चिन्तातुरविद्यार्थी ज्ञानार्जन नहीं कर सकता है। गाय से दूध निकालना चाहते हो तो गाय को पीटो मत, गाय को तंग मत करो । पहले गाय को खिलाओ, गाय को सहलाओ, क्योंकि गाय जितनी खुश होगी उतना अधिक दुग्ध देगी । यदि आप गाय को खुश नहीं कर सके, तो वह पर्याप्त दूध नहीं देगी। ऐसे ही निज को ज्ञान से भरना चाहतेहो तो सर्वप्रथम अपने आपको खुश करना सीखो। अपने आपको चिन्तामुक्त करो । चिन्तामुक्त हो जाओगे तभी तुम अध्ययन कर पाओगे । चिन्ता में लिप्त व्यक्ति पृष्ठ-के-पृष्ठ पढ़ ले, कुछ भी समझ में नहीं आता है, क्योंकि चित्त चिन्ता में डूबा है ।कितने ही पढ़े-लिखे लोग चिन्ता में पड़कर अपने को भी भूल गए। कितने ही उच्च शिक्षा प्राप्त सड़क पर पागलों की तरह भटकते मिल जायेंगे । कारण क्या है ? अधिक पढ़ लिया और नौकरी मिली नहीं, तो पागल हो गए। कारण क्या है? एक मात्र चिन्ता । कितनी दुःख देने वाली है चिन्ता ?सबसे पहले चिन्ता पुरुष की पवित्र – प्रज्ञा, ज्ञान को पकड़ती है । जिनके चेहरे चमकते थे, कण्ठ में सरस्वती का वास था उसमें चिन्ता का अंगारा गिर गया तो उसके ज्ञान- तंतुओं को जला दिया । ज्ञान तंतुओं की रक्षा करना है, तो चिन्तारूपी अंगारों से अपनी रक्षा करना ।

क्या आपने घास-पत्तों की पर्णकुटी देखी है? वह गर्मी में शीतल एवं ठण्डी में उष्ण रहती है । पत्तों की कुटिया बहुत सुन्दर दिखती है । कितनी ही सुन्दर, सुख देने वाली पर्णकुटी हो, लेकिन उस पर्णकुटी का सुखद जीवन कब तक ? जब तक किसी अभागे ने अंगारा नहीं रखा । यदि पर्णकुटी के ऊपर किसी अज्ञानी ने अंगारा रख दिया, तो वह पर्णकुटी कितने समय तक सुरक्षित रहेगी? जैसे पर्णकुटी पर यदि अंगारा रख दिया तो न पर्णकुटी रहेगी और न ही उसमें रहने वाला बचेगा । ऐसे ही यदि आपने चिन्ता का अंगारा अपने अन्दर रख लिया, तो न तो आत्मविशुद्धि बचेगी और न ही ज्ञान-तंतु । यदि आपको विश्व का, देश का, समाज, परिवार और स्वयं का विकास चाहिए है, तो सबसे पहले चिन्ता का अंगारा दूर करो ।संचालन पंडित श्रेयांस जैन ने किया।सभा मे प्रवीण जैन, अतुल जैन,विनोद जैन, धनेंद्र जैन, पुनीत जैन, मनोज जैन, राकेश जैन, सुखमाल जैन आदि थे