- लालगंगा पटवा भवन में श्रीपाल-मैनासुन्दरी कथा प्रारंभ
रायपुर – उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि ने कहा कि नौपद की आराधना की एक प्रसिद्ध कथा है जो हर व्यक्ति के मन में नमस्कार महामंत्र के प्रति आस्था, साधना और व्यवस्था का सूत्र जागृत करती है। कथा जो चमत्कारी लगती है, लेकिन ये साधना की कथा है, एक विज्ञान है। और उस विज्ञान को खोलने के लिए श्रीपाल-मैनासुन्दरी की कथा है। इस कथा का विज्ञान आप समझ लोगे तो इस कथा को आप अपने जीवन में साकार कर लोगे। कथा सुनने में आनंद आता है, लेकिन कथा को जीवंत करने का अलग सुख है। आप कथा सुनें और इसे अपने जीवन में साकार करने का प्रयास करें। उक्ताशय की जानकारी रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने दी । सोमवार से लालगंगा पटवा भवन में श्रीपाल-मैनासुन्दरी का प्रसंग शुरू हुआ। उपाध्याय प्रवर ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि जिनशासन में साधना और शिष्टाचार (protocol) का विधान है। शिष्टाचार का जो पालन करता है वो सभी दुखों से मुक्त होता है। साधना से कर्मों का नाश होता है, लेकिन शिष्टाचार का उल्लंघन हुआ तो साधना करते हुए भी दुःख का जन्म होता है। शिष्टाचार (समचारी) का पालन नहीं होता है तो जीवन में क्या दुःख आते हैं, उसका उदाहरण है श्रीपाल का जीवन। कथा शुरू करते हुए उपाध्याय प्रवर ने कहा कि सिंहरक राजा की उम्र हो गई थी, लेकिन कोई संतान नहीं थी। उनके छोटे भाई का नाम था अरिगमन। राजा सिंहरक पीड़ा में जी रहा था, लेकिन पुण्ययोग से एक पुत्र का जन्म हुआ जिसका नाम रखा गया श्रीपाल। एक दिन अचानक राजा की मृत्यु हो गई। परिवार का एक शिष्टाचार होता है, कि कोई भी बड़ा फैसला लेने से पहले परिवार की सलाह लेनी चाहिए। रानी कमलप्रभा ने शिष्टाचार का उल्लंघन करते हुए मंत्री से सलाह ली। राजा के छोटे भाई अरिगमन को छोड़ मंत्री से सलाह ली। मंत्री से कहा कि आप श्रीपाल का राज्याभिषेक करें और इसके अभिभावक बनें। 5 साल के श्रीपाल का राज्याभिषेक कर मंत्री उसका अभिभावक बन गया। पूरा मंत्रिमंडल, सेना और प्रजा इस फैसले से दुखी थे।
सबसे ज्यादा दुखी तो अरिगमन था, जिससे पूछे बिना उसकी भाभी ने इतना बड़ा फैसला ले लिया था। मंत्रिमंडल अरिगमन से कहता है कि ये अन्याय है, सिंहासन पर आपको बैठना चाहिए, राज्य की बागडोर आपके हाथों में रहनी चाहिए। पूरी सेना और मंत्रिमंडल अरिगमन के साथ हो जाता है। मंत्री को जब खबर लगती है तो वह रानी के पास दौड़ा-दौड़ा आता है और बोलता है कि युवराज की जान खतरे में है। सेना ने बगावत कर दी है, और वे श्रीपाल की जान लेना चाहते है। आप श्रीपाल को लेकर भाग जाओ। यह सुनकर रानी दर जाती है और श्रीपाल को लेकर महल से भाग जाती है। उपाध्याय प्रवर ने धर्मसभा से पूछा कि इस परिस्थिति का जिम्मेदार कौन है? क्या कारण है कि यह सब रानी और श्रीपाल के साथ हो रहा है? सबसे बड़ा कारण है कि रानी ने शिष्टाचार का उल्लंघन किया। अगर रानी मंत्रिमंडल और सेना को विश्वास में ले लेती तो क्या ऐसा होता? अगर अरिगमन से सलाह लेती तो क्या ऐसा होता? लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी। रानी पर यह भय भारी हो गया था कि सब श्रीपाल के खिलाफ है, और इसकी जान लेना चाहते हैं। रानी श्रीपाल को लेकर महल से भाग गई।श्रीपाल राजा बन गया, और उसने अपनी भाभी-भतीजे को खोजने के लिए सेना रवाना की। लेकिन रानी के मन में यह डर बस गया था कि अरिगमन उनकी जान लेना चाहता है। वह श्रीपाल को लेकर भाग ही रही है। भागते भागते दोनों ने देखा कि सामने से कुष्ठ्रोगियों का एक दल जा रहा है। 700 कुष्ठ्रोगी एक साथ कही जा रहे थे। रानी ने उनसे कहा कि राजा के सैनिक हमारी जान के पीछे पड़े है, आप हमारी मदद करें। उन्होंने कहा कि आप हमारे साथ चलें, हमारे पास आने की कोई हिम्मत भी नहीं करता। यहां पर रानी कमलप्रभा ने दूसरी गलती की । रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने बताया कि श्रीपाल-मैनासुन्दरी का प्रसंग 23 अक्टूबर तक चलेगा। इसके बाद 24 अक्टूबर से 14 नवंबर तक उत्तराध्ययन श्रुतदेव आराधना होगी जिसमे भगवान महावीर के अंतिम वचनों का पाठ होगा। यह आराधना प्रातः 7.30 से 9.30 बजे तक चलेगी। उन्होंने सकल जैन समाज को इस आराधना में शामिल होने का आग्रह किया है।