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ध्यान से ही होता है समस्या और समाधान का जन्म : प्रवीण ऋषि

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रायपुर – अपनी तरंगों से परिचित होना, अपनी ही लहरों के चरित्र को जानना, इसे कहते हैं अपनी लेश्या से परिचित होना। प्रभु महावीर ने लेश्या, जिसे औरा या आभामंडल भी कहते हैं, इसे समझने का एक तरीका दिया है। वर्ण, गंध, स्पर्श और भाव का मापदंड दिया है। उक्त बातें उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि ने गुरुवार को लालगंगा पटवा भवन में धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही। लेश्या (औरा) से श्रद्धालुओं को परिचित कराने उपाध्याय प्रवर की विशेष प्रवचन माला चल रही है। इस दौरान उपाध्याय प्रवर ने नीच लेश्या का वर्णन किया। उन्होंने कृष्ण, नील और कपोत लेश्या के बारे में विस्तार से बताया। अब वे उच्च लेश्या का वर्णन कर रहे हैं। उक्ताशय की जानकारी रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने दी। 

समस्या छोड़ समाधान पर ध्यान लगाओ

धर्मसभा को संबोधित करते हुए उपाध्याय प्रवर ने कहा कि समस्या और समाधान ध्यान से जन्म लेते हैं। हम हमेशा समस्या पर ध्यान लगते है, उसके समाधान पर नहीं। मैं क्या कर सकता हूँ, इसे छोड़कर मैं क्या नहीं कर सकता हूँ, यही सोचते रहते हैं। जिस पर ध्यान केंद्रित करते हैं, वह तय करता है कि हमारी लेश्या कौन सी है। जो दुःख पर ध्यान केंद्रित करता है, वह दुखी होता है, जो सुख पर ध्यान केंद्रित करता है वह सुखी होता है। जिस पर हम ध्यान लगाते हैं, वहीं हमारा ज्ञान जाता है और शक्ति जाती है।  आत्मा के चार गुण है ज्ञान, दर्शन, चरित्र और शक्ति। शक्ति के पास विवेक नहीं है। जिसके हाथ में है, उसका ज्ञान जैसा होगा शक्ति वैसे काम करेगी। वहीं ज्ञान: मैं किसको जनता हूँ? मैं दुःख को जनता हूँ, तो अंदर में भावना दुःख की आएगी। दुःख की अनुभूति होगी और शक्ति दुःख में लगेगी। और जहां शक्ति लगेगी वहां विकास होगा। अगर शक्ति दुःख में लगेगी तो दुःख बढ़ेगा। वहीं अगर सुख का ज्ञान होगा तो सुख की भावना होगी, अनुभूति होगी और शक्ति भी वहीं लगेगी। जिसका ज्ञान नहीं होता है, उसकी भावना नहीं होती है। अगर भावना नहीं होगी तो अनुभूति भी नहीं होगी, और शक्ति भी नहीं लगेगी। 

भाव से आयुष का बंद हो जाता है : प्रवीण ऋषि

उपाध्याय प्रवर ने तंदूल मत्स्य का उदाहरण देते हुए बताया कि वह महामत्स्य की आँख में रहता थे। महामत्स्य अपना मुँह खोलता था तो बहुत सारी मछलियां अंदर चली जाती थी, और मुँह बंद करता थे था को छोटी-छोटी मछलियां बाहर आ जाती थीं। तंदूल मत्स्य हमेशा सोचता रहता था कि अगर मैं इसकी जगह रहता तो एक भी मछली बाहर जाने नहीं देता। वह उसी भाव में डूबा रहता था, और इसी भाव के बीच में उसके आयुष का बंद हो गया। जो वह कर नहीं सकता था उसमे अपनी शक्ति लगा दी।इसलिए सातवे नर्क का बंद हुआ। उन्होंने कहा कि संसार में सभी जीवों को कोई सुखी नहीं कर सकता है, यह सत्य है। कई तीर्थंकर आये, लेकिन संसार के सारे जीवों को धर्म से नहीं जोड़ सके। लेकिन वे इसमें ध्यान लगाते हैं कि मैं संसार के सारे जीवों को शासन का प्रेमी बना रहा हूँ। उन्होंने इसकी भावना बहाई, इसपर ध्यान लगाया और शक्ति लगाई। इस शक्ति के बल पर उनका तीर्थंकर नाम कर्म का बंद हो गया। तीर्थंकर जो कर सकते हैं, वो करते हैं। लेकिन जो कर नहीं सकते, उसी पर अपनी श्रद्धा रखते हैं। उन्होंने कहा कि परमात्मा ने शुक्ल लेश्या के लिए एक छोटा सा सूत्र दिया है, ‘दुःख पर ध्यान मत लगाओ’। ऐसा नहीं है कि संसार में दुःख नहीं है, लेकिन दुखी मत हो। सुख में रहते हुए आप अगर सुखी नहीं हुए तो आर्तध्यान शुरू हो जाएगा। हमारा भय भविष्य को लेकर रहता है। जो हमें मिला है वह खो मत जाए, यह सोचकर हम दुखी रहते हैं। ऐसा सोचना अनिष्ट का संयोग है। जब तक आर्तध्यान में रहेंगे कृष्ण, नील कपोत लेश्या चलती रहेगी। दूसरी बात, शिकायत करना बंद कर दें, ये रूद्रध्यान है। सभी को अपने शरीर से शिकायत रहती है, मैं मोटा हूँ, अच्छा नहीं दिखता हूँ। आप शरीर की शिकायत करते हो, दुश्मनी का संबंध बनाते हो। आर्तध्यान और रूद्रध्यान सभी बीमारियों की जड़ है। क्या हो सकता है, इस पर ध्यान लगाओगे तो आर्तध्यान नहीं होगा। शुक्ल लेश्या में जाना है तो दुःख से प्यार करना छोड़ दो। ध्यान लगाना है तो समाधान और सुख पर। अगर समाधान पर ध्यान रहेगा तो समस्या के द्वार नहीं खुलेंगे। घर में समस्या की जानकारी दो, उस पर चर्चा मत करो, चर्चा होगी तो केवल समाधान की। गलती हुई तो उसे सुधारने की चर्चा करो, गलती की नहीं।