रायपुर – आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज ने अजितनाथ सभागार मे मंगल प्रवचन देते हुए कहा कि,जिस प्रकारोंकोई धूपबत्ती है, उसकी मर्यादा है, समय की । अपनी मर्यादा के अंतर्गत वह अपनी सुगन्ध छोड़ेगी । यदि उसकी समय की मर्यादा पूरी हो चुकी है , तो राख भर हो जायेगी , सुगन्ध नहीं आयेगी । इसी प्रकार,वीतरागवाणी कहती है कि कर्म की मर्यादा होती है स्थितिबन्ध , प्रत्येक कर्म की स्थिति होती है , स्थितिबन्ध के साथ आपने कोई नवीन कर्म नहीं किया और स्थिति अपनी सत्ता में रखी हुई थी , विपाक नहीं आया और उसके पहले आपने तीव्र पुण्यकर्म कर दिया , तो उसकी स्थिति अपने – आपमें विलीन हो गई । आपने नवीनकर्म का बंध किया , उसकी तीव्रता में वो नवीन कर्म संक्रमित हो गया । फल जो अशुभद्रव्य का था , वो भी शुभद्रव्य के रूप में फलित होने लगा । हे ज्ञानी ! कभी – कभी देखने को मिलता है कि तीव्र पुण्यात्माजीव की बहुत सारी विभूति एकक्षण में विलीन हो गई । कभी ये भी देखते हैं कि बहुत पापीजीव का पाप का द्रव्य था , एकक्षण में विभूति में बदल गया । इसमें भी सिद्धान्त है कमरे में अनाज भरा हो और आग लग जाये , तो राख का ढेर बनेगा कि नहीं ? जो भोजनयोग्य सामग्री थी , वो राख के रूप में फलित दिख रही है । जिस घर में राख पड़ी थी उसमें बहुत – सा गुड़ भर दिया । गुड़ के पिघलने पर राख उसमें मिल गई , ठंड में गुड़ जम गया । राख गुड़ के भाव पर बिक गई सिद्धान्त है कि जिसके शुभ – कर्मांश अधिक होते हैं , तो अशुद्ध – कर्मांश भी शुभकर्मांश में संक्रमित हो जाते हैं । अशुभपाप भी शुभरूप फलित होने लगता है । जब पाप – आस्रव ज्यादा कर लेते हो , तो आप कहते हो कि मैंने जो पहले पुण्य किया था , वह कहाँ गया ? हे ज्ञानी ! आपको मालूम नहीं वो भी अग्नि के साथ राख हो गया , वो भी पाप में संक्रमित हो गया । इसलिये सुख – दुःख का दाता कोई नहीं है । निज ही सुख का घात करता है , वो ही दुःख का कर्ता है।सभा मे मुनि श्री प्रणव सागर जी महाराज ने भी मंगल प्रवचन दिये।सभा का संचालन वरदान जैन ने किया। दीप प्रज्वलन और पाद प्रक्षालन का सौभाग्य विकास कुमार अंकुर जैन को प्राप्त हुआ।सभा मे सुभाष जैन, अशोक जैन, हंस कुमार जैन, सुधीर जैन, जितेंद्र एडवोकेट,विनोद एडवोकेट, विकास जैन, अंकुर जैन, संजय जैन, राकेश जैन, अनिल जैन, अतुल जैन, अमित जैन,विमल जैन आदि उपस्थित थे।