सागर – जैसे सड़क पर गाड़ी चलाते हैं तो गड्डे आते है ब्रेक लगाते हैं गाड़ी को कंट्रोल करते हैं और सावधानी से बाजू से निकालते हैं। और मंजिल पर पहुंच जाते हैं ठीक उसी प्रकार जीवन में भटकना नहीं पड़े तो अपने कर्मों को खोदना चाहिए और भरना है तो अपने पापों को भरो यह बात मुनि श्री अजित सागर महाराज ने मूकमाटी महाकाव्य की स्वाध्याय कक्षा में कहीं उन्होंने कहा कि यह मेरा है यह तेरा है इसमें हम पूरा जीवन लगा देते हैं लेकिन आखरी में कौन मेरा है कौन तेरा है यह हमें पता नहीं चलता है मनुष्य पर्याय आपको मिली है तो उसे ऐसा बना लो जिससे तुम ऊपर उठ जाओ ताकि सांसारिक जीवन में भटकना नहीं पड़े।
मुनि श्री ने कहा ज्ञानी का स्वभाव होता है वह दुर्घटना नहीं करें गड्ढे में गिरोगे तो चोट लगेगी देखकर और संभल कर चलोगे तो दुर्घटनाओं से आप बच जाएंगे। लोक व्यवहार की बात है सम्यक दर्शन, समय ज्ञान और सम्यक चारित्र से चलो यानी की देखभाल कर चले यह आपके लिए हितकारी है मूकमाटी महाकाव्य में आचार्य भगवान ने ऋतुओं की बड़ी व्याख्या की है वैसे तो हम तीन ऋतु मानते हैं लेकिन शीत ऋतु में हेमंत ऋतु और शिशिर ऋतु दो-दो माह के लिए आती हैं। ग्रीष्म ऋतु में बसंत के बाद ग्रीष्म चालू होता है इसी प्रकार वर्षा ऋतु में सावन और भादो के बाद शरद ऋतु आती है । मुनि श्री ने कहा कि दीपावली से जैन संवत 2550 शुरू हो रहा है नव वर्ष दीपावली के दिन से प्रारंभ होता है इस ऋतु में हिमपात होता है पानी जम जाता है मतलब पानी विकृति में चला जाता है तुषार पात भी होता है और खड़ी फसले खराब हो जाती हैं ठंडी हवा शरीर में लगती है तो बाण जैसी चुभती है और आप लोग तो एक के ऊपर एक कपड़े पहन लेते है ठंड से बचने के लिए लेकिन दिगंबर मुनि महाराज ठंड सहकर कर्मों की निर्जरा करते हैं। विपरीत परिस्थितियों में भी अपने को अनुकूल बना लेते हैं उन्होंने कहा दूसरों का दुख देखकर आपका हृदय कांप जाए यही अनुकंपा है।