बड़ौत – अध्यात्मयोगी आचार्य भी विशुद्ध सागर जी महाराज ने ऋषभ सभागार मे त्रि दिवसीय राष्ट्रिय विद्वत अधिवेशन के दूसरे दिन धर्मोपदेश देते हुए कहा कि -आत्मोन्नति के लिए सत्य-संयम के प्रति सजग रहना आवश्यक है। किसी सुप्त, सोते हुए को जगाना सरल है, परन्तु जो सोने का ढोंग कर रहा है उसे जगाना कठिन के साथ असम्भव है। धर्मोपदेश उन्हीं के लिए हितकर है जो आत्म कल्याण के इच्छुक हैं, जिन्हें आत्महित ‘ही नहीं है उन्हें ‘गुरुवाणी’ भी कार्यकारी नहीं है । उपदेशों का सुन लेना, सुना देना सरल और सुलभ है, परन्तु उपदेश – अनुसार आचरण करना दुर्लभ है। उपदेश अनुसार आचरण किए बिना कल्याण संभव नहीं है। विचारों के अनुसार भी होना चाहिए। आकांक्षा की पूर्ति आकांक्षा से नहीं होगी, अपितु आकांक्षा की पूर्ति पुण्य से होगी। साधक साधना में लीन रहता है, वह साधना के बदले किसी वस्तु की कामना नहीं करता है। धर्म का सुफल उत्तम सुख है। धर्म से ही स्वर्ग – मोक्ष प्राप्त होता है।
आचार्य श्री ने कहा कि हे साधक ! यदि तेरा पुण्य अल्प है और आकांक्षायें अधिक हैं तो इच्छित वस्तु नहीं मिलेगी। इसलिए अपनी सामर्थ्य और पुण्य का अवलोकन करो। मित्र! आप अपनी साधना करो, स्वयं में महानता को प्राप्त करो, परन्तु स्वयं को महान दिखाने के लिए दूसरे की निंदा मत करो, क्योंकि दूसरे की निंदासे कभी धर्म की प्रभावना होती ही नहीं है। धर्म प्रपंचों का नहीं, आत्म-साधना का साधन है । हे जीव ! आशाओं का त्याग करो, आशाए कभी किसी की पूर्ण नहीं होती हैं, क्योंकि अनन्त जीव हैं, उनकी अनन्त आसए हैं, असीम आकांक्षायें हैं, पर वस्तु अल्प हैं। आशाओं से निराशा ही मिलने वाली है और कुछ नहीं। विश्व में अनर्थ की कोई जड़ है, तो वह एक मात्र आशा है हे भव्य ! पवित्र साधना से सभी सफलतायें प्राप्त होती हैं, इसलिए व्यर्थ की आशायें मत करो। अपने व्रतों का सम्यक् आचरण करो तो तुम्हारा कल्याण हो जायेगा । गोष्ठी का संचालन पंडित श्रेयांस जैन ने किया।गोष्ठी मे प्रो फूलचंद् प्रेमी वाराणसी, प्रो अशोक कुमार बनारस, प्रो अनेकांत जैन दिल्ली, प्रो श्रेयांस सिंघई जयपुर,डॉक्टर वीर सागर, डॉक्टर शीतल चंद्र आदि ने अपने वि विचार रखे। सभा मे प्रवीण जैन, मनोज जैन,विनोद जैन, वरदान जैन, पुनीत जैन, अनुराग मोहन,दिनेश जैन, धनेंद्र जैन,अशोक जैन,शुभम जैन आदि थे ।