गुजरात में भारतीय जनता पार्टी की रिकॉर्डतोड़ जीत के बाद इस बात को लेकर दिलचस्प चर्चा हो रही है कि पार्टी ने उन इलाक़ों में कैसे जीत दर्ज की जहाँ अच्छी-ख़ासी मुसलमान आबादी है.बीजेपी ने उन इलाकों में भी प्रदर्शन बेहतर किया है जहाँ मुसलमानों की आबादी 20-30 प्रतिशत है, जबकि पार्टी ने इन चुनावों में भी किसी मुसलमान को उम्मीदवार नहीं बनाया था.राज्य में पार्टी के प्रवक्ता यग्नेश दवे ने बीबीसी से बातचीत में दावा किया कि उनकी पार्टी को ट्रिपल तलाक ख़त्म करने और यूनिफॉर्म सिविल कोड का मुद्दा उठाने की वजह से बड़ी तादाद में मुसलमानों को वोट मिले हैं.इन चुनाव में कांग्रेस ने छह और आम आदमी पार्टी ने चार मुसलमान उम्मीदवारों को टिकट दिया था.ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तिहादुल मुसलमीन पार्टी (एआईएमआईएम) के असदउद्दीन ओवैसी ने 13 उम्मीदवार मैदान में खड़े किए थे, जिनमें से दो हिंदू थे.राज्य में केवल एक मुसलमान उम्मीदवार इमरान खेड़ावाला, जमालपुर खाड़िया विधानसभा से चुनाव जीतकर आए हैं और वे कांग्रेस पार्टी से हैं.पूरे गुजरात राज्य में क़रीब नौ प्रतिशत मुसलमान आबादी है और 10 से ज़्यादा ऐसी सीटें हैं, जहाँ आबादी में मुसलमानों की तादाद 20 से 30 प्रतिशत तक है. इनमें से जमालपुर खाड़िया को छोड़कर सभी सीटों पर बीजेपी ने जीत हासिल की है.इनमें वागरा, सूरत पूर्व, भुज, दरियापुर, गोधरा, वेजलपुर, दानीलिमड़ा ,भरूच, लिंबायत, अबड़ासा और वांकानेर सीटें शामिल हैं.
तो क्या मुसलमानों ने बीजेपी को वोट दिया है?
बीबीसी से बातचीत में राज्य में बीजेपी के प्रवक्ता डॉ यग्नेश दवे ने कहा कि मुसलमान वोटरों का प्रतिशत जिन सीटों पर ज़्यादा था, वहाँ पार्टी को जीत की उम्मीद थी.वे बताते हैं, “अहमदाबाद की तीन सीटों जमालपुर, दरियापुर और वेजलपुर में से केवल जमालपुर सीट पर कांग्रेस ने जीत हासिल की है. इसके अलावा गोधरा ऐसी सीट है, जो पिछले 15 साल से कांग्रेस के खाते में ही जा रही थी. इस बार वो भी बीजेपी ने जीत ली है.”गोधरा सीट बीजेपी के नेता चंद्रसिंह कनकसिंह राउलजी ने जीती है.साल 2017 तक गोधरा सीट कांग्रेस के पाले में जाती रही, लेकिन चंद्रसिंह राउलजी के कांग्रेस छोड़ बीजेपी के दामन थामने के बाद ये दूसरी बार है जब बीजेपी को इस सीट पर जीत मिली है. वे 2007 से इस सीट पर चुनाव लड़ते आए हैं.बीबीसी से बातचीत में अहमदाबाद में मौजूद वरिष्ठ पत्रकार अजय उमट कहते हैं कि ये कहना ग़लत होगा कि मुसलमानों ने बीजेपी को वोट दिया है.साथ ही, उनका कहना था कि इन चुनावों में मुसलमान वोटर संगठित दिखे, लेकिन कई विधानसभा क्षेत्रों में निर्दलीय उम्मीदवार खड़े किए गए ताकि मुसलमान वोटों को बाँटा जा सके और इसका फ़ायदा बीजेपी को हुआ.उनके अनुसार, “मुसलमानो में एक तबका आम आदमी पार्टी से भी नाराज़ दिखा क्योंकि आप मुसलमानों के कई मुद्दों पर चुप रही. ऐसे में केवल उन्होंने कांग्रेस को ही वोट किया.”
तो क्या बिलकिस बानो का मामला यहाँ कोई मुद्दा नहीं बना?
बीजेपी के प्रवक्ता डॉ यग्नेश दवे दावा करते हैं कि इन चुनाव में बिलकिस बानो गैंगरेप मामले के दोषियों की रिहाई का मुद्दा ही नहीं था और केवल कुछ राष्ट्रीय चैनल इसे मुद्दा बना रहे थे.वे कहते हैं, “गोधरा के इसी वार्ड के बूथ पर हमें 60 प्रतिशत मत मिले हैं जहाँ ये घटना हुई थी. वहीं मोरबी में हाल ही में हादसा हुआ उसके बावजूद वहाँ लोगों ने बीजेपी का काम देखा और वहाँ भी हमारी जीत हुई.”साल 2002 दंगों में बिलकिस बानो के साथ गैंगरेप और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के दोषी 11 लोगों को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई थी.इन सभी दोषियों को इस साल 15 अगस्त को अच्छे आचरण के कारण गुजरात सरकार ने रिहा कर दिया था. सरकार के इस फ़ैसले की काफ़ी आलोचना भी हुई थी.इस मामले में बिलकिस बानो की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका भी डाली गई है.डॉ यग्नेश दवे कहते हैं कि इन चुनाव में मुस्लिम ही नहीं बल्कि दलित, आदिवासी समुदाय के वोट भी बीजेपी को मिले हैं और इसी वजह से पार्टी की 50 सीटें बढ़ी हैं.साथ ही, वे कहते हैं कि नरेंद्र मोदी का ट्रिपल तलाक़ पर फै़सला, कॉमन सिविल कोड को लाने की बात और साथ ही बीजेपी ने अल्पसंख्यक मित्र भी बनाए, जिन्होंने मुस्लिम बहुल इलाक़ों में काम किया और उसका असर नतीजों पर हुआ है.
‘मुसलमानों ने बीजेपी को वोट दिया कहना ग़लत’
हालाँकि जाने-माने चुनाव विश्लेषक संजय कुमार बीजेपी के इस दावे से सहमत नहीं दिखते और आंकड़ों के ज़रिए अपनी बात समझाते हैं.वे बताते हैं कि गुजरात की कुल विधानसभा सीटों में 12 सीटों पर मुसलमान वोट प्रतिशत 20 फ़ीसदी से ज़्यादा है.इन 12 विधानसभा सीटों में से 10 पर बीजेपी ने जीत हासिल की है.उनके अनुसार 53 सीटें ऐसी हैं, जहाँ मुसलमान वोटरों की संख्या कुल मतदाताओं की 10-20 फ़ीसदी है और इन सीटों में से 50 पर बीजेपी जीती है.लेकिन इसका अर्थ ये बिल्कुल नहीं निकाला जा सकता है कि मुसलमान मतदाताओं ने बढ़-चढ़कर बीजेपी उम्मीदवारों के लिए मतदान किया है.वे कहते हैं कि यहाँ हमें ये देखना चाहिए कि इन विधानसभा क्षेत्रों में केवल 10 से 20 फ़ीसदी मुस्लिम मतदाता है, उसके अलावा बाकी मतदाता हिंदू हैं, जिन्होंने बीजेपी को वोट दिया है.संजय कुमार आँकड़ों को और स्पष्ट करते हुए कहते हैं, “हमारा सर्वेक्षण बताता है कि इन चुनावों में 64 फ़ीसदी मुसलमानों का वोट कांग्रेस को गया है, तक़रीबन 15 प्रतिशत बीजेपी और 12 से 14 फ़ीसदी आम आदमी पार्टी को गया है.”पहले हुए चुनावों से तुलना करें, तो बीजेपी को कमोबेश इतना ही प्रतिशत मुसलमानों का वोट मिलता रहा है, तो बीजेपी की जीत का कारण मुसलमानों के वोट का शिफ्ट होना नहीं, बल्कि ध्रुवीकरण भी है.वे कहते हैं, “बीजेपी जो दावा कर रही है कि उन्हें मुसलमानों का वोट ज़्यादा मिला है, ऐसा नहीं है क्योंकि उनके पैटर्न में कोई बदलाव नहीं दिखता साथ ही बिलकिस बानो का मुद्दा यहाँ बना है इसलिए कांग्रेस को 64 प्रतिशत मत मिले.”संजय कुमार बताते हैं कि पिछली बार भारतीय जनता पार्टी ने 99 सीटें जीती थीं और इस बार 156 जीती हैं तो ऐसे में हर विधानसभा क्षेत्र में बीजेपी को बढ़त मिली है, ये बात सच है लेकिन वह बढ़त मुसलमानों के वोट मिलने से हासिल नहीं हुई है.पिछली बार के मुक़ाबले बीजेपी का वोट शेयर 48 से बढ़कर 52.5 प्रतिशत हो गया, यानी इसमे साढ़े चार फ़ीसदी की बढ़ोतरी देखी गई है.ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल-मुसलमीन के असदउद्दीन ओवैसी ने इन चुनावों में 13 उम्मीदवारों को उतारा और संजय कुमार के मुताबिक़ उन्हें केवल 0.29 प्रतिशत वोट मिले और वे ‘नॉन परफ़ॉर्मर’ साबित हुए.इन चुनाव में एआईएमआईएम के 12 उम्मीदवारों की ज़मानत ज़ब्त हो गई.बीबीसी से बातचीत में कांग्रेस के नेता इमरान खेड़ावाला ने अपनी जीत के बाद कहा कि बहुत से मुसलमान वोट आप और ओवैसी में बँट गए, जिसका ख़ामियाज़ा कांग्रेस को भुगतना पड़ा.खेड़ावाला यहाँ कांग्रेस के नज़रिए से बात कर रहे हैं कि लेकिन ग़ौर से देखने पर ऐसा लगता है कि भाजपा-विरोधी वोटों (ज़्यादातर मुसलमान) के कांग्रेस और आप के बीच बँट जाने का फ़ायदा बीजेपी को हुआ है, लेकिन इसके अलावा भाजपा का अपना वोट शेयर भी बढ़ा है, यही उसकी रिकॉर्डतोड़ जीत का कारण है.