मुंबई के सियासी इतिहास में थोड़ा पीछे नजर दौड़ाएं, और 10 साल पहले का दौर याद करें. एक विचार, अगले आधे दशक के लिए अपने भाग्य का फैसला करने जा रहे इस महानगर की हवाओं में तैर रहा था-भीम शक्ति-शिव शक्ति.
शिवसेना ने दलित अधिकार समूहों के साथ कटु रिश्तों के इतिहास को उस समय थोड़ा ताक पर रख दिया. फिर उसने और उसकी सहयोगी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने बीआर अंबेडकर की सियासी विरासत से जुड़ी रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (अठावले) या आरपीआई (ए) के साथ हाथ मिला लिया. और, इस सियासी जुए का असर कुछ हद तक बैलेट बॉक्स में नजर भी आया.
अब फिर, 2022 में आएं और उसी घटना की पुनरावृत्ति का आभास करें. एक बार फिर बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) के चुनाव सिर पर हैं और भीम शक्ति-शिव शक्ति की सुगबुगाहट सुनाई देने लगी है. शिवसेना का उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाला गुट अंबेडकर के पोते प्रकाश अंबेडकर के नेतृत्व वाली वंचित बहुजन अघाड़ी (वीबीए) के साथ बातचीत कर रहा है. उनका कॉमन गोल? भाजपा के साथ आरपीआई (ए) के मूल गठबंधन के बाद जो कुछ भी बचा रह गया है (बहुजन वोट), उसे साधना.
शिवसेना और वीबीए के बीच किसी औपचारिक गठबंधन को लेकर अटकलों को बल तब मिला जब ठाकरे और अंबेडकर ने रविवार को मुंबई के दादर में शिवाजी मंदिर सभागार में Prabodhankar.com के लॉन्च के दौरान एक मंच साझा किया. यह वेबसाइट सेना के संस्थापक बाल ठाकरे के पिता केशव ठाकरे को समर्पित है, जो एक माने हुए लेखक थे और जो प्रबोधंकर के उपनाम से लिखते थे. वह एक समाज सुधारक भी थे और अस्पृश्यता के खिलाफ लड़ाई जैसे कई अहम मुद्दों को उठाते रहे थे.
यह पूछे जाने पर कि क्या उनकी पार्टी ठाकरे गुट शिवसेना सेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के साथ गठबंधन पर विचार कर रही है, अंबेडकर ने दिप्रिंट से कहा, ‘शिवसेना ने बातचीत शुरू की है और हमने भी गठबंधन को लेकर विकल्प खुले रखे हैं. लेकिन गठबंधन किस स्वरूप में आकार लेगा, अभी मुझे नहीं पता. अब ये गठबंधन सिर्फ शिवसेना तक ही सीमित होगा या उससे भी आगे कुछ होगा, ये शिवसेना ही जानती है.’
इस बीच, शिवसेना के राज्यसभा सांसद संजय राउत ने रविवार को दिल्ली में संवाददाताओं से कहा, ‘उद्धव ठाकरे और प्रकाश अंबेडकर का साथ आना देश को नई दिशा दिखा सकता है, और इस दिशा में सकारात्मक कदम उठाए जा रहे हैं.’
माना जा रहा है कि अगर बी.आर. अंबेडकर के पोते के साथ गठबंधन हो जाता है तो ठाकरे को तमाम सांसदों और विधायकों के पार्टी छोड़ने से लगे झटके से उबरने और इसकी भरपाई करने में मदद मिल सकती है. गौरतलब है कि इस साल के शुरू में बगावत के कारण शिवसेना दो-फाड़ हो जाने पर कई सांसद और विधायक शिंदे की अगुवाई वाली बालासाहेबंची शिवसेना में शामिल हो गए थे. राजनीतिक विश्लेषक हेमंत देसाई के मुताबिक, इससे पूर्व मुख्यमंत्री को 2024 के आम चुनाव और विधानसभा चुनावों के दौरान विदर्भ क्षेत्र में बढ़त मिल सकती है.
शिवसेना और दलित पैंथर्स
शिवसेना और उसके संस्थापक बाल ठाकरे के दलित अधिकार समूहों के साथ असहज रिश्तों का एक लंबा इतिहास रहा है. 1970 के दशक में उनके बीच तनाव चरम पर पहुंच गया था, जब राजा ढाले और नामदेव ढसाल के साथ दलित पैंथर्स के बैनर तले दलित एकजुट हो गए थे.
पैंथर्स का कई बार शिवसेना के साथ टकराव हुआ, जिसमें बाल ठाकरे द्वारा मराठवाड़ा यूनिवर्सिटी का नाम बदलकर अंबेडकर पर रखने की उनकी मांग का विरोध किया जाना शामिल है. इस मुद्दे पर शिवसैनिकों और पैंथर्स के बीच शुरू हुई हिंसा काफी समय तक खिंचे नामांतर आंदोलन की वजह बनी और इसकी परिणति 1974 में मुंबई के वर्ली दंगों के रूप में सामने आई.
1980 का दशक आते-आते दलित पैंथर्स के ग्राफ में गिरावट के कारण दलित राजनीति में एक शून्य पैदा हो गया, जिसके साथ ही रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (आरपीआई) में कई गुटों में बंट गई. इनमें से केवल रामदास अठावले-जो फिलहाल राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार में एक केंद्रीय मंत्री है-के नेतृत्व वाला एक समूह ही राजनीतिक उतार-चढ़ाव के बीच अपना अस्तित्व बचाए रह पाया है.
1980 के दशक में शिवसेना और दलित अधिकार समूहों के बीच उस समय फिर टकराव की स्थिति आ गई जब बाल ठाकरे ने बी.आर. अंबेडकर के संपूर्ण लेखन को प्रकाशित करने के महाराष्ट्र सरकार के फैसले का विरोध किया. उनमें हिंदू धर्म विरोधी लेखन भी शामिल था जिसमें अंबेडकर ने भगवान राम की आलोचना की थी. शिवसेना ने किताब पर प्रतिबंध की मांग को लेकर राज्यव्यापी विरोध प्रदर्शन किया लेकिन दलित अधिकार समूहों के दबाव ने ठाकरे को बैकफुट पर आना पड़ा.
राजनीतिक विश्लेषक देसाई के मुताबिक, यह ऐसे अभियान थे जिन्होंने शिवसेना की छवि को ‘दलित विरोधी’ बना दिया.
यह एक ऐसी छवि है जिसे उद्धव ठाकरे ने 2003 के शुरू में त्यागने की कोशिश भी की, जब शिवसेना के कार्यकारी अध्यक्ष के तौर पर उन्होंने दलितों की तरफ ‘सहयोग का हाथ’ बढ़ाया. उन्होंने उस वर्ष मुंबई यूनिवर्सिटी में प्रबोधंकर के चित्र के अनावरण के अवसर पर कहा था कि यदि भीम शक्ति और शिव शक्ति मिलकर काम करें तो महाराष्ट्र शांति और सामाजिक शांति के पथ पर आगे बढ़ सकता है. नौ साल बाद वह इस विचार को बीएमसी चुनाव में गठबंधन के साथ आगे बढ़ाने की कोशिश में जुटे हैं.
और अब, प्रबोधंकर ने अपने पोते को वह ‘साझा कार्य (कॉमन कॉज़)’ पुनर्जीवित करने का एक और अवसर प्रदान कर दिया है.
मुंबई में रविवार को वेबसाइट लॉन्च के मौके पर उद्धव ने कहा, ‘अगर हम एक साथ नहीं आएंगे और लोकतंत्र की रक्षा के लिए नहीं लड़ेंगे, तो हम दोनों को अपने दादा की विरासत पर बात करने का कोई अधिकार नहीं है. समाज में असमानता को देखने के बाद डॉ. बी.आर. अंबेडकर चुप नहीं बैठे. उन्होंने लोगों को एकजुट किया और शासकों के अत्याचार के खिलाफ लड़ाई लड़ी. वहीं, मेरे दादा प्रबोधंकर ने भी समाजिक कुरीतियों के बारे में लिखा और उनके खिलाफ लड़ाई लड़ी.’
अगस्त में मराठा संगठन संभाजी ब्रिगेड के साथ गठबंधन होते-होते अटक जाने के बाद उद्धव ठाकरे की इस पहल को देसाई महाराष्ट्र की राजनीति में एक ‘वैचारिक बदलाव’ के तौर पर देखते हैं. उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि ठाकरे के नेतृत्व वाली सेना अपनी छवि को सुधारने के लिए प्रबोधंकर की विचारधारा की ओर मुड़ने की कोशिश कर रही है.
शिवसेना के उद्धव ठाकरे गुट के मुखर सांसद राउत इस गठबंधन को एक व्यापक रणनीति का हिस्सा मानते हैं. उन्होंने मंगलवार को रिपोर्टर्स से कहा, ‘यह केवल सिविक बॉडी तक सीमित नहीं है, बल्कि महाराष्ट्र और देश में बदलाव लाने की कोशिश का हिस्सा है. प्रकाश अंबेडकर, शिवसेना और राज्य में हमारे अन्य विपक्षी दलों को एक साथ आना चाहिए और यह न केवल महाराष्ट्र के लिए बल्कि देश के लिए एक आदर्श सूत्र हो सकता है.’
प्रकाश अंबेडकर होने की क्या अहमियत है
2018 में प्रकाश अंबेडकर की तरफ से स्थापित वंचित बहुजन अघाड़ी ने असदुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व वाली ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (एआईएमआईएम) के साथ गठबंधन में 2019 का लोकसभा चुनाव लड़ा था. हालांकि, वीबीए को कोई सीट तो नहीं मिली लेकिन इसने राज्य में कुल मतदान के 14 प्रतिशत वोट हासिल किए, और कथित तौर पर कम से कम सात सीटों पर कांग्रेस को नुकसान पहुंचाया.
उसी वर्ष बाद में महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भी वीबीए का प्रदर्शन कमजोर रहा, और कांग्रेस ने कम से कम 25 सीटों पर अपनी हार के लिए इसी पार्टी को जिम्मेदार माना.
देसाई ने बताया कि अंबेडकर का विदर्भ, खासकर अकोला क्षेत्र में काफी असर है, जहां उनकी पार्टी ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना के लिए अपना वर्चस्व बढ़ाने में मददगार साबित हो सकती है.
उन्होंने आगे कहा, ‘कई जगहों पर निगम चुनाव हैं और अगर वीबीए कुछ नगरसेवकों को निर्वाचित करा पाई तो यह उनके लिए अच्छा होगा. साथ ही जोड़ा कि यह बात ज्यादा ध्यान देने वाली होगी शिवसेना के साथ गठबंधन का वीबीए पर क्या असर पड़ता है.
हालांकि, यह गठबंधन महाविकास अघाड़ी (एमवीए) के साथ किस रूप में होगा जिसमें कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) और ठाकरे के नेतृत्व वाली सेना शामिल है, यह अभी स्पष्ट नहीं है.
अंबेडकर ने कहा, ‘मूलत: 2019 के पिछले लोकसभा चुनावों के बाद से ही कांग्रेस-एनसीपी वंचित (वीबीए) को साथ लेने के खिलाफ रही हैं. हमने उनसे कहा था कि हमें वो सीटें दें जो वे हार चुके थे. लेकिन कांग्रेस-एनसीपी के स्वभाव में उदारता नहीं है. लेकिन अब शिवसेना एमवीए के साथ है. तो क्या वे वंचित को एमवीए में शामिल करने को तैयार होंगे या नहीं, अभी तक कोई नहीं जानता.’
उन्होंने आगे कहा कि इस संभावित गठबंधन का समाज पर व्यापक प्रभाव इस बात पर भी निर्भर करेगा कि क्या ठाकरे प्रबोधंकर के हिंदुत्व का पालन करेंगे. उन्होंने कहा, ‘अगर ऐसा है, तो गैर-सवर्ण वर्ग के लिए व्यापक स्तर पर सामाजिक परिवर्तन मुमकिन होगा.’