Home देश मैनपुरी उपचुनाव: BSP की गैर मौजूदगी में दलित वोटरों को लुभाने के...

मैनपुरी उपचुनाव: BSP की गैर मौजूदगी में दलित वोटरों को लुभाने के लिए क्या-क्या कर रहे हैं अखिलेश

19
0

मुलायम सिंह यादव के निधन से रिक्त हुई मैनपुरी लोकसभा सीट पर 5 दिसंबर को उपचुनाव है. सपा का गढ़ माने जानी वाली इस सीट पर मुलायम की बहू और अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव मैदान में है, जिनके सामने बीजेपी से रघुराज शाक्य ताल ठोक रहे हैं.

मैनपुरी सीट पर बसपा के चुनाव मैदान में न होने से मुकाबला रोचक हो गया है और दलित मतदाता निर्णायक भूमिका में आ गए हैं. ऐसे में अखिलेश यादव सपा के गढ़ और पिता की सियासी विरासत को बचाए रखने के लिए दलित समुदाय को साधने के लिए हर संभव कोशिश में जुट गए हैं.

मैनपुरी लोकसभा सीट पर बीएसपी के प्रत्याशी न उतरने से बीजेपी और सपा दोनों की नजर दलित मतदाताओं पर है. ऐसे में अखिलेश यादव करहल विधानसभा क्षेत्र में सपा कार्यलय का उद्घाटन एक दलित महिला के हाथों से कराया है. अनुसूचित जाति (एससी) समुदाय से आने वाली राजकुमारी रावल ने सपा के चुनावी कार्यलय का फीता काटा. राजनीतिक जानकारों का मानना है अखिलेश ने यह दांव खेलकर दलित और महिला मतदाताओं को रिझाने का प्रयास किया है.

डिंपल यादव के कार्यालय का उद्घाटन करने वाली राजकुमारी रावल करहल नगर पंचायत के निकाय चुनाव में चेयरमैन पद के लिए सपा उम्मीदवार के सामने निर्दलयी प्रत्याशी के रूप में 2 बार ताल ठोक चुकी हैं. हालांकि, राजकुमारी रावल को जीत नहीं मिल सकी है, लेकिन उनकी बेटी वर्तमान में सभासद हैं. इस तरह के करहल के इलाके में राजकुमारी रावल काफी सक्रिय हैं.

माना जा रहा है कि अखिलेश यादव ने दलित महिलाओं के हाथों चुनाव कार्यालय उद्घाटन कराकर एक तीर से कई निशाने साधने की कोशिश की है. उपचुनाव में बसपा की गैरमौजूदगी से सभी के मन में एक ही सवाल है कि मायावती का वोटबैंक किसके साथ जाएंगे. ऐसे में अखिलेश ने दलित समुदाय को साधने के लिए दांव चला है तो दूसरी महिला मतदाताओं को भी जोड़े रखने की कवायद की है.

बता दें कि मैनपुरी सीट पर 2 लाख दलित मतदाता हैं, जिनमें 120 हजार जाटव और 60 हजार कटरिया समुदाय और अन्य दलित 20 हजार हैं. यादव सबसे ज्यादा है, जो सपा के परंपरगत वोटर माने जाते हैं. शाक्य समुदाय से बीजेपी के कैंडिडेट के उतरने से शाक्य समुदाय का झुकाव उसकी तरफ हो सकता है. इसी के चलते मैनपुरी में दलित वोटों की भूमिका निर्णायक हो गई है.

मैनपुरी में बसपा वोट निर्णायक

2019 का लोकसभा चुनाव सपा और बसपा मिलकर लड़ी थी. मैनपुरी सीट पर मुलायम सिंह को 5,24,926 और बीजेपी के प्रेम सिंह शाक्य को 4,30,537 वोट मिले थे. बसपा मैनपुरी सीट पर कभी भी चुनाव नहीं जीत सकी है, लेकिन लगातार 2019 को छोड़कर बाकी चुनाव लड़ती रही है. 2004 और 2009 के चुनाव में बसपा को तीस फीसदी के करीब वोट मिले हैं जबकि बाकी चुनाव में उसे 12 से 17 फीसदी वोट मिलता रहा है. इस तरह से बसपा कभी नंबर दो तो कभी नंबर तीन पर मैनपुरी में रही है.

मैनपुरी लोकसभा सीट पर बसपा का एवरेज वोट 16 फीसदी के करीब है और 2019 के चुनाव में सपा और बीजेपी के बीच महज 11 फीसदी वोटों का ही अंतर रहा था. ऐसे में मायावती का दलित वोटर्स उपचुनाव में निर्णायक भूमिका में हैं. मैनपुरी में दलित मतदाता दो लाख के करीब हैं. यह वोट जिसकी तरफ जाएगा उसके लिए राह आसान हो जाएगी. अखिलेश यादव इसीलिए दलित महिला राजकुमारी रावल से चुनावी कार्यलय का उद्घाटन कराया तो डिंपल यादव के नामांकन में एक दलित को प्रस्तावक भी बनाया गया था.

मैनपुरी सीट पर सपा उम्मीदवार डिंपल यादव के नामांकन में प्रस्तावक आलोक शाक्य, राजनारायण बाथम, एएच हाशमी और तेज प्रताप सिंह यादव रहे. अखिलेश यादव ने डिंपल के प्रस्तावकों के जरिए भी परिवार से लेकर जातिगत समीकरण तक ध्यान रखा गया. प्रस्तावक में शाक्य-दलित-मुस्लिम-यादव समीकरण बनाने की कोशिश की है. इसीलिए चारो जातियों से एक-एक प्रस्तावक रखे गए हैं. इसके अलावा सपा के दिग्गज दलित नेताओं को चुनावी प्रचार में लगा रखा है. मायावती के कभी करीबी रहे स्वामी प्रसाद मौर्य अब सपा में है और अखिलेश ने उन्हें मैनपुरी में दलित और शाक्य मतदाताओं को साधने के लिए जिम्मा दे रखा है.

मैनपुरी सीट पर जातिगत वोट

मैनपुरी सीट पर यादव वोटर्स के बाद सबसे ज्यादा शाक्य वोटर्स हैं. सपा के इस मजबूत गढ़ में यादव वोटरों की संख्या करीब साढ़े चार लाख है जबकि इस सीट पर शाक्य वोटर्स की संख्या करीब सवा तीन लाख है. ठाकुर दो लाख और ब्राह्मण वोटर्स एक लाख है. वहीं, दलित दो लाख, इनमें से 1.20 लाख जाटव, 1 लाख लोधी, 70 हजार वैश्य और एक लाख मु्स्लिम है. सपा इस सीट पर यादव-मुस्लिम समीकरण के सहारे 1996 से लगातार जीत दर्ज कर रही है. यही वजह है कि डिंपल के लिए यह सीट सबसे ज्यादा सुरक्षित मानी जाती है, लेकिन बीजेपी ने रघुराज शाक्य को उतारकर बड़ा दांव चला है. ऐसे में अखिलेश यादव ने डिंपल यादव को जिताने के लिए दिन रात एक कर रखा है.