वैज्ञानिकों के लिए अब तक यह गुत्थी ही थी कि कोरोना का विषाणु (Corona Virus) आखिरकार इंसान की रोग-प्रतिरोधक क्षमता (Immune System) को लगातार कैसे मात दे रहा है. अब तक करीब ढाई साल हो चुके हैं. इतने दिनों बाद भी कोरोना पर काबू नहीं पाया जा सका है. बल्कि वह लगातार अपने रुप बदल-बदलकर हर इलाज, हर टीके (Corona Vaccine) को मात देते हुए दुनियाभर में संक्रमण की लहर-पर-लहर लाए जा रहा है. हालांकि, अब वैज्ञानिकों ने इस गुत्थी को कुछ हद तक सुलझा लिया है. इसमें पाया है कि आज से करीब 10-20 साल पहले सामने आए 2 विषाणुओं ने कोरोना के लिए जमीन तैयार कर दी थी. यानी इस निष्कर्ष के बाद अब यह उम्मीद भी की जा रही है कि शायद जल्द कोरोना का स्थायी इलाज भी ढूंढ लिया जाएगा.
आयरलैंड के डबलिन में स्थित ट्रिनिटी बायोमेडिकल साइंसेस इंस्टीट्यूट (TBSI) के डॉक्टर नाइजेल स्टीवेंसन के नेतृत्त्व में शोधकर्ताओं ने इस दिशा में अध्ययन किया है. इसमें उन्होंने पाया है कि मिडिल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (MERS) और सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (SARS) के विषाणुओं ने मानव की रोग-प्रतिरोधक क्षमता को गंभीर नुकसान पहुंचाया है. इनमें से सार्स का विषाणु 2002 में सामने आया. जबकि मर्स का 2012 में. ये दोनों शक्ल, सूरत में काफी कुछ कोरोना की तरह ही थे. इन विषाणुओं ने न सिर्फ तेजी से संक्रमण फैलाया बल्कि बड़ी संख्या में पीड़ितों की जान भी ली. इतना ही नहीं, जो लोग बच रहे उनके शरीरों में इन विषाणुओं ने ऐसे अवरोध पैदा कर दिए कि जानलेवा विषाणु से लड़ने वाले प्रोटीन (Antiviral Proteins) मानव-कोशिकाओं तक पहुंच ही न पाएं. इस तरह कोरोना के लिए पूरी दुनिया में अपना कहर बरपाने की जमीन तैयार हो गई.
इस तरह नुकसान पहुंचाया सार्स और मर्स ने
वैज्ञानिकों के मुताबिक, मानव कोशिकाओं में ऐसे तमाम प्रोटीन और अन्य तत्त्व होते हैं, जो रोगों से, विषाणुओं से लड़ने की इंसान को ताकत देते हैं. इन रोग-प्रतिरोधक तत्त्वों की संख्या जब निश्चित सीमा से कम होती है, तो लोग बीमार पड़ते हैं. इसके बाद बीमार व्यक्ति को बाहर से इसी तरह के प्रोटींस या प्रतिरोधक तत्त्वों की आपूर्ति की जाती है. दवाओं, टीकों आदि के जरिए. ये भीतर जाकर इंसानी कोशिकाओं में फिर उन प्रोटींस की संख्या बढ़ाते हैं, जो विषाणुओं से मुकाबला करते हैं. मानव शरीर में विषाणुओं से लड़ने वाले इन प्रोटींस को इंटरफेरॉन (Interferon) कहते हैं. लेकिन सार्स और मर्स ने इंसानी शरीरों में ऐसे प्रोटींस छोड़े, जिन्होंने इंटरफेरॉन का रास्ता रोका. उन्हें निष्क्रिय किया. कमजोर किया. इसका कोरोना-विषाणु पूरा फायदा उठा रहा है.
अब उम्मीद कि कोरोना का इलाज हो सकेगा
डॉक्टर नाइजेल इस बारे में कहते हैं, ‘अब चूंकि हम इस निष्कर्ष पर लगभग पहुंच गए हैं कि कोरोना लोगों को बार-बार संक्रमित क्यों कर रहा है, तो इलाज की भी उम्मीद की जा सकती है. कोरोना में भी सार्स (SARS) और मर्स (MERS) की तरह ऐसे प्रोटींस हैं, जो इंटरफेरोन (Interferon) का रास्ता रोकते हैं. उन्हें निष्क्रिय और कमजोर करते हैं. लिहाजा, अब हमें ऐसी दवा तैयार करनी है जो इंटरफेरोन का रास्ता रोकने वाले कोरोना (Corona Virus) के घातक प्रोटींस पर चोट करे. अगर हम ऐसा कर सके, तो कोरोना को मात देने में भी कामयाब हो जाएंगे.’