रिपोर्ट्स हैं कि केंद्र सरकार (Central Government) सिविल सेवा परीक्षाओं (Civil Services) की तर्ज पर जजों की नियुक्ति के लिए ऑल इंडिया ज्यूडिशियल सर्विसेज जैसी परीक्षा कराने के प्रयास में लग गई है. इस वक्त देशभर में लंबित मामलों की बड़ी संख्या के कारण इस पर दोबारा जोर दिया जा रहा है. हालांकि ये प्रस्ताव कई दशक पुराना है. बड़ी संख्या में न्यायिक क्षेत्र में पद खाली हैं. अक्सर इन खाली पदों पर को भरने की तत्काल आवश्यकता पर भी जोर दिया जाता रहा है.
इस साल के शुरुआती डेटा के मुताबिक देशभर के स्थानीय न्यायालयों में कुल 3.8 करोड़ केस पेंडिंग हैं. अगर इनमें उच्च अदालतों को भी मिला दें तो ये डेटा करीब 4.4 करोड़ हो जाता है. लोवर ज्यूडिशियरी में जजों के करीब 22000 अनुमोदित पद हैं. लेकिन इस साल जुलाई महीने तक देश में करीब 5 हजार जजों की संख्या कम है.
लॉ कमीशन ने की है ज्यादा जजों की संस्तुति, अभी दस लाख जनसंख्या पर केवल 19 जज
रिपोर्ट्स में यह भी कहा गया है कि भारत में प्रति दस लाख आबादी पर 19 जज हैं. जबकि लॉ कमीशन ने इतनी जनसंख्या के लिए 50 जजों की नियुक्ति की संस्तुति की है. इसी वजह से लोवर ज्यूडिशियरी में तेजी से भर्तियां करने पर जोर है. इसी कारण केंद्र एक अखिल भारतीय परीक्षा पर जोर दे रहा है.
सरकार ने संसद को क्या बताया था?
बीते मार्च महीने में केंद्र सरकार ने संसद को बताया था कि ‘ व्यवस्थित ऑल इंडिया ज्यूडिशियल सर्विस’ की अदद जरूरत है जिससे न्याय प्रक्रिया को और मजबूत बनाया जा सकता है. साथ ही परीक्षा से देश में होनहार लोगों का मेरिट पर आधारित सेलेक्शन सिस्टम के जरिए चयन हो सकेगा.
सामाजिक प्रतिनिधित्व के मुद्दे का हो सकेगा समाधान
साथ ही इस अखिल भारतीय परीक्षा के जरिए न्यायपालिका में सामाजिक प्रतिनिधित्व को भी लागू किया जा सकेगा. जिससे समाज के पिछड़े तबके के लोग भी पर्याप्त संख्या में न्यायपालिका का हिस्सा बन सकेंगे. 2018 की एक रिपोर्ट के मुताबिक 12 राज्यों में पिछड़े तबके से केवल 12 प्रतिशत लोग ही न्यायपालिका का हिस्सा हैं. और ये संख्या भारत में ओबीसी जनसंख्या के मुकाबले काफी कम है.
कितनी है दलित आदिवासियों की संख्या?
कानून मंत्रालय ने कहा था कि अगर दलित और आदिवासी तबके की बात करें तो इस 12 प्रतिशत में 14 प्रतिशत हिस्सा ही इस तबके का है. 2011 की जनगणना के मुताबिक देश में दलितों की संख्या 16 प्रतिशत से ज्यादा है.