फ्लेक्स इंजन तकनीक के मामले में ब्राजील दुनिया में सबसे आगे है. वहां पर कार से लेकर ट्रक तक करोड़ों गाडियों में ईंधन के रूप में फ्लेक्स फ्यूल का इस्तेमाल किया जाता है. इनमें 85 फीसदी तक इथेनॉल और 15 फीसदी पेट्रोल या डीजल का इस्तेमाल होता है. भारत में भी अगले कुछ महीनों के भीतर फ्लेक्स फ्यूल से चलने वाले इंजन को अनिवार्य बनाने की चर्चा चल रही है. ऐसे में सवाल उठता है कि फिलहाल देश की सड़कों पर दौड़ रहे करोड़ों वाहनों का क्या होगा? क्या आने वाले समय में पेट्रोल-डीजल से चलने वाले वाहन धीरे-धीरे खत्म हो जाएंगे? या फिर हम अपने मौजूदा वाहन को भी फ्लेक्स इंजन में कन्वर्ट करवा सकते हैं? आइए जानने की कोशिश करते हैं कि आखिर भविष्य में होने क्या जा रहा है?
एक वेबसाइट bellperformance.com पर फ्लेक्स इंजन को लेकर छपे एक ब्लॉक के मुताबिक ब्राजील में फ्लेक्स इंजन को ई85 के नाम से जाना जाता है. इसका मतलब हुआ 85 फीसदी इथेनॉल से चलने वाला इंजन. जब कोई इंजन ईंधन के रूप में 85 फीसदी तक इथेनॉल का इस्तेमाल करे तभी उसे फ्लेक्स फ्यूल इंजन कहा जा सकता है.
अभी पेट्रोल में इतना फीसदी मिलाया जाता है इथेनॉल
इसी साल 5 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी घोषणा की थी कि अगले पांच साल के भीतर देश में पेट्रोल में 20 फीसदी तक इथेनॉल का मिश्रण किया जाएगा. विश्व पर्यावरण दिवस पर इथेनॉल को लेकर जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत वर्ष 2005 के स्तर की तुलना में 2030 तक कार्बन के उत्सर्जन में 33-35 फीसदी तक की कमी लाना चाहता है. इसके लिए ही पेट्रोल में इथेनॉल को मिलाने का लक्ष्य रखा गया है.
भारत सरकार ने अब 2025 तक पेट्रोल और डीजल में 20 फीसदी तक इथेनॉल के मिश्रण का लक्ष्य तय किया है. मौजूदा समय में पेट्रोल में 8.5 प्रतिशत इथेनॉल का मिश्रण किया जाता है. गौरतलब है कि देश में गन्ने से 87 फीसदी इथेनॉल बनाया जाता है. इससे ईंधन के रूप में इथेनॉल के इस्तेमाल को बढ़ावा देने से किसानों की आमदनी भी बढ़ेगी.
अपनी कार को ऐसे फ्लेक्स इंजन में बदलें
देश और दुनिया में बीते कुछ सालों से बन रही गाड़ियों के इंजन पूरी तरह से फ्लेक्स ईंधन पर चलने के लायक हैं. क्योंकि ईंधन बदलने से इंजन में कोई अमूल-चूल परिवर्तन नहीं होता. पुराने इंजन में फ्यूल सिस्टम के लिए स्टील या कॉर्क गास्केट (Cork gaskets) का इस्तेमाल किया जाता था. ये लंबे समय तक इथेनॉल या पानी के संपर्क में आने पर दिक्कत करते थे. लेकिन आधुनिक इंजनों में फ्यूल सिस्टम के लिए एक अलग धातु का इस्तेमाल होता है. इस कारण इथेनॉल या पानी के कारण इनमें ये दिक्कत नहीं आती. बीते करीब एक दशक से सभी गाड़ियों में ये बदलाव हो चुका है.
फ्यूल इंजेक्शन में बदलाव
दरअसल, अगर आप अपनी मौजूदा कार में 85 फीसदी तक इथेनॉल का इस्तेमाल करते हैं तो फ्यूल सिस्टम को धीरे-धीरे नुकसान पहुंचता है. यह नुकसान धीरे-धीरे होगा और आपको गाड़ी चलाते समय नहीं पता चलेगा. ऐसे में अगर आप नियमित रूप से फ्लेक्स फ्यूल यानी 85 फीसदी तक इथेनॉल की ओर जा रहे हैं तो आपको वाहन के इंजन के इंजेक्टर्स को बदलवाना होगा.
पेट्रोल-डीजल की तुलना में 25 फीसदी कम पावर देता है इथेनॉल
जीवाश्म ईंधन की तुलना में इथेनॉल से 25 फीसद पावर मिलता है. ऐसे में एक पेट्रोल या डीजल इंजन के बराबर ऊर्जा पैदा करने के लिए फ्लेक्स इंजन के कम्बूस्शन चैंबर (combustion chamber) में ज्यादा इथेनॉल की जरूरत पड़ेगी. ऐसे में एक फ्लेक्स इंजन में एक ज्यादा चौड़े इंजेक्टर की जरूरत पड़ती है, जो फ्यूल एयर मिक्चर में 40 फीसदी अधिक लिक्विड फ्यूल डाले. इस तरह कई तकनीकी दिक्कत है जिससे कि आप देश में मौजूद गाड़ियों में फ्लेक्स ईंधन का इस्तेमाल नहीं कर सकते.
तो क्या करें…
अगर आपकी कार में फ्यूल इंजेक्टर हैं, जो करीब दो दशक पुरानी तक सभी गाड़ियों में होता है, तो आपको केवल दो चीज करने हैं. पहला- इसके लिए आपको एक इलेक्ट्रॉनिक कंट्रोल मॉड्यूल की जरूरत पड़ेगी. इसे फ्लयू इंजेक्टर्स और फैक्ट्री फ्यूल इंजेक्टर इलेक्ट्रिकल कनेक्टर्स के बीच लगाया जाएगा. दुनिया की तमाम कंपनियां इसे बना रही हैं. इसके अलावा आपको जो सबसे ज्यादा जरूरी चीज चाहिए वो है फ्यूल सेंसर, जो आपके वाहन में इथेनॉल और पेट्रोल-डीजल का अनुपात पता करे. यह फ्यूल सेंसर को इलेक्ट्रिक कंट्रोल मॉड्यूल से कनेक्ट किया जाएगा. इस सिस्टम आपके ईंधन में इथेनॉल की मात्रा के हिसाब से यह कितना इंधन खपत करना है, यह तय करेगा. अगर ईंधन में ज्यादा इथेनॉल है तो वह उसकी खपत भी ज्यादा करेगा.