संसद के मानसून सत्र (Monsoon Session) के दौरान लोकसभा (Loksabha) में सोमवार को केंद्र की मोदी सरकार ने अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) से संबंधित 127वां संविधान संशोधन विधेयक (Constitution 127th Amendment) bill ) पेश किया. सरकार ने विधेयक लाने के लिए ‘उद्देश्यों और कारणों’ में कहा है – सरकार पहले भी संसद में स्पष्ट कर चुकी है साल 2018 में लाया गया एक कानून राज्यों को अन्य पिछड़ी जातियों (ओबीसी) की अपनी सूची रखने से नहीं रोकता है लेकिन अभी एक नया कानून लाया जा रहा है ताकि इसे ‘पर्याप्त रूप से स्पष्ट’ किया जा सके और देश की संरचना को ‘संघीय बनाए रखा जा सके. सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री डॉ वीरेंद्र कुमार ने अन्य पिछड़ा वर्ग से संबंधित ‘संविधान (127वां संशोधन) विधेयक, 2021’ पेश किया.
साल 2018 में पारित कानून का ‘विधायी इरादा’ केवल ओबीसी की केंद्रीय सूची संबंधित था. वहीं नए कानून के संदर्भ में केंद्र ने यह माना की राज्यों की अपनी सूची भी हो सकती है. माना जा रहा है कि इस महत्वपूर्ण विधेयक पर चार घंटे चर्चा हो सकती है. सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण को यह कहते हुए रद्द कर दिया था कि राज्यों को अपनी ओबीसी सूची रखने का कोई अधिकार नहीं है. कोर्ट के निर्णय के परिप्रेक्ष्य में यह अहम विधेयक है. इससे जाट, मराठा और लिंगायत सरीखी जातियों को आरक्षण देने में सरकारों को आसानी होगी.
पक्ष-विपक्ष दोनों सहमत
संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी और विपक्ष के नेता अधीर रंजन चौधरी, विपक्ष द्वारा पेगासस गतिरोध के बीच विधेयक को पारित करने के लिए सहमत होने के बाद, मंगलवार को लोकसभा में एक प्रस्ताव पेश करेंगे जिसमें कहा गया है कि सदन कार्य सलाहकार समिति की रिपोर्ट से सहमत है और संविधान (127वां संशोधन) विधेयक पर विचार और पारित करने के लिए 4 घंटे आवंटित करें. ओबीसी को सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग (SEBC) के रूप में जाना जाता है।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने 5 मई के बहुमत आधारित फैसले की समीक्षा करने की केंद्र की याचिका को खारिज कर दिया था जिसमें यह कहा गया था कि 102वां संविधान संशोधन नौकरियों एवं दाखिले में सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़े (एसईबीसी) को आरक्षण देने के राज्य के अधिकार को ले लेता है. विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों में कहा गया है कि संविधान 102वां अधिनियम 2018 को पारित करते समय विधायी आशय यह था कि यह सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों की केंद्रीय सूची से संबंधित है। यह इस तथ्य को मान्यता देता है कि 1993 में सामाजिक एवं शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्गो की स्वयं की केंद्रीय सूची की घोषणा से भी पूर्व कई राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों की अन्य पिछड़े वर्गों की अपनी राज्य सूची/ संघ राज्य क्षेत्र सूची हैं।
इसमें कहा गया है कि यह विधेयक राज्य सरकार और संघ राज्य क्षेत्र को सामाजिक तथा शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों की स्वयं की राज्य सूची/संघ राज्य क्षेत्र सूची तैयार करने के लिए सशक्त बनाता है. विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों में कहा गया है, ‘यह विधेयक यह स्पष्ट करने के लिये है कि यह राज्य सरकार और संघ राज्य क्षेत्र को सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्गो की स्वयं की राज्य सूची/संघ राज्य क्षेत्र सूची तैयार करने और उसे बनाये रखने को सशक्त बनाता है.’
इसमें कहा गया है कि देश की संघीय संरचना को बनाए रखने के दृष्टिकोण से संविधान के अनुच्छेद 342क का संशोधन करने और अनुच्छेद 338ख एवं अनुच्छेद 366 में संशोधन करने की आवश्यकता है. यह विधेयक उपरोक्त उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये है.