रायपुर. भारतीय प्रशासनिक सेवा के 1987 बैच के अधिकारी और राजस्व मंडल के अध्यक्ष सीके खेतान शनिवार को 34 साल के सेवाकाल के बाद सेवानिवृत्त हुए। छत्तीसगढ़ के प्रशासनिक इतिहास में यह पहला अवसर था जब दो अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवा के दिग्गज एक साथ सेवानिवृत्त हुए। 1984 बैच के मुदित कुमार और 1987 बैच के सीके खेतान से विशेष बातचीत। सेवानिवृत्ति के अंतिम दिन हरिभूमि से खास बातचीत में सीके खेतान ने कहा, मेरा सेवाकाल शानदार रहा।
मुख्य सचिव नहीं बन पाने के सवाल पर उन्होंने कहा, मुख्य सचिव का पद अब प्रशासनिक क्षमता की जगह राजनैतिक पसंद का पद होने लगा है। इसीलिए मुझे इस बात का अफसोस नहीं है कि मैं मुख्य सचिव नहीं बन सका। मुख्यमंत्री ने जिसे भी चुना अपने हिसाब से उपयुक्त चुना। सीएस नहीं बन पाने को लेकर मेरे मन मे किसी भी तरह मलाल नहीं है। मेरा बैच 126 अधिकारियों का है, जिसमें से 7 ही मुख्य सचिव बन पाए। कुछ भारत सरकार में सचिव भी बने। लगभग 100 अधिकारी इस पद तक नहीं पहुंच पाए। उन्होंने बड़ी सहजता से कहा, 34 साल के सेवाकाल में एकाध वर्ष कोई मुख्य सचिव नहीं बन पाया, तो उसके बाकी सेवा पर कोई असर नहीं पड़ता।
प्रमुख शहरों के मेट्रो रही भूमिका
सीके खेतान ने बताया, उन्हें दिल्ली, कोच्चि, चेन्नई, बैंगलोर और मुंबई की मेट्रो परियोजनाओं के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में काम करने का मौका मिला। ये किसी भी अधिकारी के लिए गौरव की बात है। ऐसा अवसर मिलना भी किसी भी प्रशासनिक अधिकारी के लिए काफी रेयर होता है। इन शहरों के मेट्रो परिचालन में अहम भूमिका रही।
मेट्रो न दिला पाने का अफसोस
श्री खेतान ने बताया, वे छत्तीसगढ़ को मेट्रो दिलाना चाहते थे। इसके लिए काफी मेहनत भी की, लेकिन तत्कालीन सरकार ने इसमें रुचि नहीं दिखाई। इसके अलावा रायपुर में सीवरेज और ड्रेनेज सिस्टम डेवलप करना चाहते थे, लेकिन यह भी नहीं हो पाया। इन दोनों कामों को नहीं करा पाने का हमेशा अफसोस रहेगा। वे कहते हैं, मुझे उम्मीद है आने वाले अधिकारी इस दिशा में जरूर प्रयास करेंगे।
अफगानिस्तान में संसद का निर्माण
श्री खेतान ने बताया, वर्ष 2016 में केंद्र सरकार में प्रतिनियुक्ति पर केन्द्रीय लोक निर्माण विभाग में पदस्थ थे। इस दौरान उन्होंने भारत सरकार के सहयोग से अफगानिस्तान के काबुल में संसद के निर्माण कार्य का सुपरविजन किया। बाद में इसका उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया। ये काफी रेयर मौके होते हैं, जो किसी भी ब्यूरोक्रेट के लिए काफी संतोषजनक होते हैं।
मध्यप्रदेश के ‘कालापानी’ से शुरू किया कार्यकाल, जहां नहीं मिलती थी सब्जी
भारतीय वन सेवा के 1984 बैच के अधिकारी मुदित कुमार सिंह भी शनिवार को सेवानिवृत्त हो गए। सेवाकाल के अंतिम दिन उन्होंने हरिभूमि से खास चर्चा में बताया, वे अपने कार्यकाल से संतुष्ट हैं। उन्होंने भारत सरकार के अलावा मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ राज्य में अपनी सेवाएं दी हैं। इस दौरान उन्हें काफी कुछ अनुभव हुआ। शासन की जो भी नीतियां थी उसे सफल तरीके से क्रियान्वित भी किया। वे अपनी सफलता का श्रेय पूरी टीम को देते हैं। मुदित कुमार ने कहा, मध्यप्रदेश के झाबुआ से अपना सेवाकाल प्रारंभ किया। उस समय यहां काफी चुनौतियां थी। वहां पर सब्जी ब्रेड भी नहीं मिलती थी। तब झाबुआ को मध्यप्रदेश का कालापानी कहा जाता था। मैंने पांच साल वहां सेवा की। तब वहां सूखा राहत काफी चलते थे। इसके बाद झाबुआ को दुग्ध और चारा उत्पादन के क्षेत्र में स्वावलंबी बनाने मेरी टीम ने अथक परिश्रम किया। आज झाबुआ मॉडल राष्ट्रीय अकादमी में भी पढ़ाया जाता है।